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International Year of Millets 2023: कल के गरीबों का भोजन बना आज के अमीरों का Super Food

International Year of Millets 2023

International Year of Millets 2023

International Year of Millets 2023: “खेतों में फैला है श्यामल/ धूल भरा मैला सा आंचल/ गंगा, यमुना में आँशु जल मिटटी की प्रतिमा उदासिनी/ भारतमाता ग्रामवासिनी” सुमित्रानंदन पंत जी की यह कविता आज भी जीवंत है और कहीं न कहीं इसका श्रेय किसान और कृषि को जाता है. ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योकि भारत गेहूं और चावल के उत्पादन में दुनिया भर में दूसरे स्थान पर आता है. और ना सिर्फ गेहू और चावल नहीं बल्कि कई उत्पादों के उत्पादन में भारत का नाम विश्व के अग्रणी देशों के नामों में शामिल है.

भारत ने रचा कृषि के क्षेत्र में नया इतिहास

वहीं बात अगर वर्तमान परिदृश्य की करें तो भारत कृषि के क्षेत्र में एक नया मकाम हाशिल करते नज़र आ रहा है और यह मुमकिन हुआ है मोटे अनाज के उत्तपादन से. आपको बता दें कि भारत की धरती पर आज विश्व भर का 20% मोटा अनाज उत्पादित होता है और यह दुनिया के कोने कोने तक पहुँचता है. यह आंकड़ा सिद्ध करता है कि कल के गरीबों का अनाज आज के अमीरों का सुपर फ़ूड बन चुका है.

अगर हम आपको मोटे अनाज के सफर की कहानी सुनाएं तो सबसे पहले मोटा अनाज किसानों की खेतों से निकल गरीब और असाहय लोगों के आहार का साधन बना फिर तमाम खूबियों के कारण यह अमीरों के डाइनिंग रूम तक पहुंचा और वर्ष 2023 के आते आते ही इसने अपना पैर भारत में आयोजित हुए G-20 के बैठक तक पसार लिया. और फिर कुछ ऐसा हुआ कि वर्ष 2023 को मोटे अनाज के नाम कर दिया गया यानी वर्ल्ड मिल्लेट्स ईयर.

क्या है मोटा अनाज?

What Is Millets: आपने ज्वार, बाजरा, मक्का, कोदो, प्रोसो इन सभी अनाजों का नाम तो सूना ही होगा! इन सभी अनाजों के समूह को ही सम्मिलित रूप में मोटा अनाज कहते हैं. अंग्रेजी भाषी इसे millets के नाम से भी बुलाते हैं तो कुछ जानकार इसे ‘पोषक अनाज’ का भी नाम देते हैं. अब इस मोटे अनाज का सफर G-20 के वैश्विक पटल तक कैसे पहुंचा इसे समझने के लिए हमें इसकी विशेषताओं को और भारत में हो रहे जलवायु परिवर्तन को समझना होगा क्योकि यह पूरी कड़ी यहीं से जुडी हुई है.

भारत में बढ़ा मोटे अनाज का उत्पादन?

Millets Production In India/ Properties Of Millets: दानों के आकार के आधार पर मोटे अनाजों को दो भागों में बाँटा गया है। पहला मोटा अनाज जिनमें ज्वार और बाजरा आते हैं। दूसरा, लघु अनाज जिनमें बहुत छोटे दाने वाले मोटे अनाज जैसे रागी, कंगनी, कोदो, चीना, सांवा और कुटकी आदि आते हैं।
मोटे अनाजों की खेती करने के अनेक लाभ हैं जैसे सूखा सहन करने की क्षमता, फसल पकने की कम अवधि, उर्वरकों, खादों की न्यूनतम मांग के कारण कम लागत, कीटों से लड़ने की रोग प्रतिरोधक क्षमता।

कम पानी और बंजर भूमि तथा विपरीत मौसम में भी ये अनाज उगाए जा सकते हैं। सल्हार, कांग, ज्वार, मक्का, कोदो आदि में अगर प्रोटीन, वसा, खनिज तत्त्व, फाइबर, कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, फास्फोरस, आयरन, कैरोटीन, फोलिक ऐसिड, जिंक तथा एमिनो एसिड की तुलना गेहूँ, चावल जैसे अनाजों के साथ की जाए तो किसी भी प्रकार से इन्हें कम नहीं आँका जा सकता।
भारत के राजपत्र 13 अप्रैल, 2018 के अनुसार, मिलेट में देश की पोषण संबंधी सुरक्षा में योगदान देने की बहुत अधिक क्षमता है।इस प्रकार मोटे अनाजों में न केवल पोषक तत्त्वों का भंडार है बल्कि ये जलवायु लचीलेपन वाली फसलें भी हैं और इनमें अद्भुत पोषण संबंधी विशेषताएँ भी हैं।

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वरदान सिद्ध हुआ जलवायु परिवर्तन

वर्ष 2022 में अनियमित मॉनसून ने खरीफ फसलों की उपज को बहुत प्रभावित किया जिससे धान और दलहन फसलों की बुआई में बहुत कमी आई. अनियमित जलवायु परिवार्तन ने एक ओर जहां खरीफ फसलों को नुक्सान पहुंचाया तो वहीं दूसरी और यह मोटे अनाज के लिए वरदान सा सिद्ध हुआ क्योकि वर्ष 2021 में मोटे आनाजो की बुवाई जहां 16.93 मिलियन हेक्टेयर में हुई थी वही यह आंकड़ा 2023 में बढ़ कर 17.63 हेक्टेयर तक पहुंच चुका है. आपको बता दें कि वर्तमान में देश में लगभग 50 मिलियन टन मोटे अनाज का उत्पादन होता है.

वर्तमान सरकार की भी रही अहम् भूमिका

Millets In G20 Summit: इन सभी बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए वर्तमान भारतीय सरकार ने भी मोटे अनाज के उत्पान को बढ़ावा देने का निश्चय किया। इस कड़ी में सरकार ने बाजरा को पौष्टिक अनाज के रूप में बढ़ावा देने के लिये राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत 300 करोड़ रुपए के आवंटन की घोषणा की है. इसके अलावा उपज के लिये स्थिर बाज़ार प्रदान करने हेतु सरकार ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली में मोटे अनाज के बाजरा को शामिल भी किया है।

सरकार द्वारा किसानों को बीज, किट और निवेश लागत उपलब्ध कराई गई है, किसान उत्पादक संगठनों के माध्यम से मूल्य शृंखला का निर्माण किया गया है और मोटे अनाजों की बिक्री को बढ़ावा देने हेतु विपणन क्षमता का समर्थन किया गया है।
इन सब के अलावा भारतीय सरकार द्वारा संयुक्त राष्ट्र महासभा को एक प्रस्ताव प्रेषित किया गया जिसमे वर्ष 2023 को अंतरार्ष्ट्रीय बाजरा वर्ष यानी International Year of Millets 2023 के रूप में मनाने की बात कही गयी थी. मोटे अनाज के उत्पादन में भारत की भूमिका को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र महा सभा द्वारा इस प्रस्ताव को स्वीकृति दे दी गयी. जिसके बाद वर्ष 2023 को पूरी दुनिया International Year of Millets 2023 के रूप मना रही है.

आपको बता दें की भारतीय सरकार ने आज से 5 वर्ष पहले ही यानी 2018 में ही राष्ट्रीय बाजरा वर्ष का आयोजन कर चुकी है.
तो शायद अब आपको स्पष्ट हो गया होगा कि मोटा अनाज कैसे किसानो की खेतों से निकल G-२० के वैश्विक पटल तक पहुंचा और अब पूरी दुनिया में इसके कारण भारत की वाहवाही हो रही है.

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