Suraiya’s Birth Anniversary: भारतीय सिनेमा के स्वर्णिम युग में कुछ नाम ऐसे हैं जिन्होंने अभिनय और गायन दोनों क्षेत्रों में अपनी छाप छोड़ी। सुरैया जमाल शेख़, जिन्हें केवल “सुरैया” के नाम से जाना जाता है, ऐसी ही एक बहुआयामी प्रतिभाशाली शख़्सियत थीं। वह न केवल एक प्रतिभाशाली गायिका थीं, बल्कि एक बेहद लोकप्रिय और सशक्त अभिनेत्री भी थीं। जिनकी सरलता, सौम्यता और चेहरे की भावप्रवण अभिव्यक्ति ने उन्हें 1940 और 1950 के दशक में करोड़ों दिलों की धड़कन बना दिया। आइए जानते हैं सुरैया के जीवन से जुड़े कई दिलचस्प किस्से –
देव आनंद और सुरैया की अधूरी प्रेम कहानी
सुरैया और देव आनंद की प्रेम कहानी भारतीय फिल्म इतिहास की सबसे दर्दभरी प्रेम कथाओं में गिनी जाती है। 1948 की फिल्म “विद्या” की शूटिंग के दौरान एक सीन में नाव डगमगाई और देव आनंद ने सुरैया को डूबने से बचाया। वहीं से दोनों के बीच प्रेम पनपने लगा। देव आनंद ने उन्हें एक अंगूठी भी दी थी, जो उन्होंने जिंदगी भर संभाल कर रखी। लेकिन सुरैया की दादी इस रिश्ते के खिलाफ थीं। उनका कहना था कि “मुस्लिम लड़की किसी हिंदू लड़के से शादी नहीं करेगी।” देव आनंद ने सुरैया के घर जाकर रिश्ता माँगने की हिम्मत भी की, लेकिन यह रिश्ता नहीं हो पाया। इसके बाद सुरैया ने कभी शादी नहीं की। जब उनसे एक बार पूछा गया कि “आपने शादी क्यों नहीं की?” तो उन्होंने मुस्कुराकर कहा- “मैंने कभी अपने दिल से देव को निकाला ही नहीं।”
जब नेहरू ने कहा सुरैया के अभिनय की तारीफ
1954 में रिलीज हुई फ़िल्म “मिर्ज़ा ग़ालिब” में, सुरैया ने ‘ग़ालिब की प्रेमिका चौधरी’ का किरदार निभाया था। फिल्म के प्रीमियर के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू ने सुरैया से कहा- “अब हमें मिर्जा ग़ालिब को समझने के लिए किताबें पढ़ने की ज़रूरत नहीं, तुम्हारा अभिनय ही काफ़ी है।” यह एक बहुत बड़ा सम्मान था, और सुरैया के लिए यह उनकी कलाका सर्वोच्च मानक बन गया।
नौशाद ने दी थी गायन छोड़कर अभिनय करने की सलाह
सुरैया ने बहुत छोटी उम्र में ही गायन शुरू कर दिया था और उनकी आवाज़ बेहद मधुर थी। लेकिन जब उन्होंने अभिनय करना शुरू किया, तो उनका अभिनय उनके सुरों से भी ज्यादा बेहतरीन थी। जिसके बाद संगीतकार नौशाद ने उन्हें गायन छोड़कर अभिनय करने की ही सलाह दी। नौशाद की सलाह के बाद ही उन्होंने अभिनय की दुनिया में अपना ध्यान ज्यादा केंद्रित किया।
जब सुरैया को फिल्म में गाने के पैसे नहीं मिले
1942 में रिलीज हुई फ़िल्म “शारदा” के दौरान सुरैया ने किशोरी आवाज़ में एक गीत गाया था, लेकिन उन्हें उस गीत का कोई पारिश्रमिक नहीं मिला। उन्होंने जब इसकी शिकायत निर्माता से की, तो उन्होंने कहा- “तुम्हारा नाम अख़बार में छपा है, ये ही तुम्हारी कमाई है!” लेकिन सुरैया ने तब कहा था- ‘नाम नहीं, मेहनत का दाम चाहिए।’ इस आत्मसम्मान की भावना ने बाद में उन्हें इंडस्ट्री में खूब सफलता दिलाई।
जब सुरैया ने राज कपूर के फिल्म प्रस्ताव ठुकरा दिया
एक बार राज कपूर ने उन्हें अपनी फिल्म में लेने का प्रस्ताव दिया था। राजकपूर और सुरैया बचपन के दोस्त थे। लेकिन सुरैया ने विनम्रता से मना कर दिया, क्योंकि वह तब फिल्मी दुनिया से धीरे-धीरे दूरी बना रही थीं और खुद को बहुत सीमित करना चाहती थीं।राज कपूर ने तब कहा था- “अगर तुम मेरी फिल्म में होतीं, तो मैं तुम्हारे लिए पूरी कहानी बदल देता।”
तन्हाई में बीता शेष जीवन
अपने अंतिम वर्षों में सुरैया मुंबई के मरीन ड्राइव स्थित अपने फ्लैट में अकेली रहती थीं। उन्होंने कभी शादी नहीं की, न ही ज्यादा सार्वजनिक जीवन जिया। वह क्लासिकल संगीत सुनतीं, पुराने खत पढ़तीं और कभी-कभी देव आनंद की फिल्मों के गाने सुनकर खामोशी से मुस्कुरा देतीं।
जब तबस्सुम से बयां किया था अपना दर्द
लोगों से उनकी बात भी बहुत कम होती थी, उनके साथ काम कर चुकी और उनके कारीबियों में शुमार रहीं, तबस्सुम एक बात का जिक्र करती हैं। यह दुखद है कि उन्होंने अपने अंतिम दिनों में दुनिया के लिए अपने दरवाजे बंद कर लिए थे। लेकिन वो मुझसे फोन पर आराम से बात करती थीं। मुझे उनके साथ अपनी आखिरी बातचीत याद है। मैंने उनसे पूछा- “आप कैसी हैं?” उन्होंने बहुत शायराना अंदाज में उत्तर दिया- “कैसी गुज़र रही है सभी पूछते हैं मुझसे, कैसे गुज़रती हूँ कोई नहीं पूछता।