Insurance Company Updated Rules: कागज़ नहीं तो भी मिलेंगे बीमा के पैसे

इंश्योरेंस (Insurance) कितनी जरूरी चीज है ये हमें आपको बताने की जरूरत नहीं. इंश्योरेंस को जरूरत और जिम्मेदारी दोनों ही कह सकते हैं. फिर भले वो लाइफ इंश्योरेंस हो, व्हीकल इंश्योरेंस हो या हेल्थ. आमतौर पर हमारे और आपके पास इंश्योरेंस होता भी है मगर एक जगह गरारी फंस (IRDAI New Rules) जाती है जो है इसकी क्लेम प्रोसेस. हालांकि, कंपनियां क्लेम सेटलमेंट प्रोसेस को मक्खन की तरह बताती हैं. कैशलेस से लेकर तमाम तरह की सुविधाओं का दावा करती हैं ले)किन कड़वी हकीकत यही है कि सेटलमेंट शायद ही टाइम पर होता हो. क्लेम रिजेक्ट होने के एस भी देखने को मिलते ही हैं.

लेकिन आगे आगे शायद आपको इस तरह की समस्या का सामना न करना पड़े. इंश्योरेंस कम्पनियां बेवजह आपका क्लेम भी रिजेक्ट नहीं कर पाएंगी. इतना ही नहीं, क्लेम सबमिट होते ही कम्पनी को उसके सेटलमेंट का टाइम भी उसी समय बताना होगा. Insurance Regulatory and Development Authority (IRDAI) ने इसको लेकर नए नियम लागू किये हैं.

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कागज़ नहीं फिर भी इंश्योरेंस

एक सबसे जरुरी नियम जो उपभोक्ता को बड़ी राहत देगा. अब बीमा कंपनी सिर्फ इस बात के लिए आपका क्लेम कैंसिल नहीं कर सकेगी कि आपके पास कोई कागज़ नहीं है. कहने का मतलब, कई बार कम्पनियां आपसे ऐसे-ऐसे कागजात मांगती है जिसका कोई अता पता भी नहीं होता है. पालिसी दस साल से चल रही होती है और फिर ऐसे में पहले साल कागज जुटाना वाकई में बड़ा सर दर्द होता है. लेकिन अब इस प्रोसेस पर लगाम लगेगी. नार्मल कागज, मसलन आधार या पैन कार्ड ही बहुत होगा. कहने का मतलब,जब आपने बीमा किया तो सारे कागजात तभी आपने चेक किया था फिर अब क्यों इन कागजों के चक्कर में उलझे रहे हैं.

कम्पनीयों को बताना होगा तुरंत टाइम

किसी भी वजह से इंशोरेंस क्लेम करना अपने आप में दुखद ही होता है. ऐसे में उसके सेटलमेंट की टाइम लाइन का पता नहीं होना परेशान कर देता है. क्लेम कर दिया अब मैसेज का इन्तजार करो. कस्टमर केयर को कॉल करने पर वही घिसा पीता जवाबा मिलता है. लेकिन अब बहुत हुई ये टाल मटोल. नए नियम के मुताबिक़. अब कंपनियों को क्लेम सबमिट होते समय उसके सेटलमेंट का टाइम भी बताना होगा. उस तारीख से ज्यादा टाइम लगा तो बीमा कम्पनी को जुर्माना देना होगा. सर्वे इत्यादि का बहाना नहीं चलेगा.

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जितना चलेंगे उतना देंगे

बीमा की भाषा में कहें तो ‘Pay as you drive’ / ‘pay as you go’. मतलब जितना गद्दी चलेगी उतना बीमा लगेगा. ये वाला सिस्टम उन लोगों के बहुत काम का है जिनकी गाड़ी सालभर मी कुछ किलोमीटर ही चलती है. मगर उनको इंश्योरेंस पूरा देना होता है. हालांकि, ये व्यवस्था कुछ सालों से है मगर कम्पनियां इसकी जानकारी अपने आप नही देती है. लेकिन नए नियम के बाद अब बताना ही पड़ेगा. मतलब इंश्योरेंस के समय पहला आप्शन Pay as you drive का होगा और दूसरा नार्मल या कहें comprehensive वाला.

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