भारत में आजादी से पहले राजघराने अपनी रॉयल लाइफ के बारे में जाने जाते थे, जहाँ राजा-महाराज अपने विभिन्न शौकों के लिए जाने जाते थे, तो महारानियाँ भी कम नहीं थीं, वह भी अपने खूबसूरती और फैशन के लिए जानी जाती थीं, ऐसी ही एक महारानी थीं कूचबिहार की इंदिरा राजे, जो स्टाइल आइकॉन मानी जाती थीं, इंदिरा देवी वह राजकुमारी जिसने ग्वालियर के महाराज से अपनी सगाई तोड़ दी थी। इंदिरा देवी जो राजमाता गायत्री देवी की माँ थीं।
कौन थीं इंदिरा राजे
इंदिरा राजे बड़ौदा की राजकुमारी थीं, वह महाराज सायाजी गायकवाड़ और उनकी दूसरी पत्नी चिमनाबाई की लड़की थीं, उनका जन्म 19 फरवरी 1892 को हुआ था। वह लक्ष्मी विलास महल में पलीं बढ़ी, बहुत यंग उम्र में ही उनकी सगाई ग्वालियर के शासक महाराज माधोराव सिंधिया से हो गई थी, 1911 में हुए दिल्ली दरबार के आयोजन में उनकी मुलाक़ात कूचबिहार के राजकुमार जितेंद्र नारायण से हुई, जो कूचबिहार के शासक राजेन्द्र नारायण के छोटे भाई थे, मुलाक़ात के बाद दोनों एक दूसरे से प्रेम करने लगे और विवाह की योजना बनाई।
पिता थे शादी के खिलाफ
इंदिरा राजे के पिता महाराज सायाजी गायकवाड़ कई कारणों की वजह से इस शादी के विरुद्ध थे, पहला और सर्वप्रमुख था, ग्वालियर के राजा माधोराव के साथ इंदिरा राजे की सगाई हो चुकी थी, दूसरा बड़ौदा बहुत सम्पन्न और बड़ी रियासत थी जबकि उसकी तुलना में कूचबिहार छोटी रियासत थी। जितेंद्र नारायण उस समय शासक भी नहीं थे और भविष्य में इसकी उम्मीद भी नहीं थी, इसके अलावा राजकुमार जितेंद्र नारायण अपनी कैसनोवा इमेज के लिए जाने जाते थे।
इंदिरा राजे ने ग्वालियर के महाराज से अपनी सगाई तोड़ दी
पिता के बहुत समझाने के बाद भी इंदिरा राजे नहीं मानी, वह जितेंद्र नारायण के साथ विवाह के लिए अड़ी ही रहीं, उनके पिता ने बाकी वजहों को तो स्वीकार कर भी सकते थे, लेकिन ग्वालियर से रिश्ता तोड़ने पर वह कतई तैयार थे, क्योंकि इसे उनकी बदनामी होती और एक बड़े राजघराने से संबंध भी खराब होता। इसका भी जिम्मा लिया इंदिराराजे ने जब उन्होंने ग्वालियर के महाराज माधोराव को एक पत्र लिखकर शादी करने से इंकार कर दिया, ग्वालियर के महाराज ने तब एक लाइन का टेलग्राम संदेश भेजा “राजकुमारी के भेजे गए पत्र का क्या मतलब है” दोनों राजघरानों में हलचल मच गई, इंदिराराजे के माता-पिता हैरान थे, हालांकि उनकी परेशानी को समझते हुए ग्वालियर के महाराज ने बहुत ही समझदारी भरा पत्र लिखा, और अंत में खुद को उनका बेटा संबोधित किया। उस दौरका समाज और ऊपर से राजघराने, एक 18 वर्षीय लड़की का विद्रोही स्वभाव चकित करने वाला था। इंदिराराजे के पिता इस बात से बेहद नाराज थे, लेकिन बात बहुत ज्यादा बिगड़ जाने के डर से उन्होंने इंदिराराजे को बड़ौदा छोड़कर चले जाने के लिए कह दिया, और बिना मन से शादी की भी अनुमति दे दी।
लंदन में हुई शादी
इंदिरा के माता-पिता ने शादी की अनुमति तो दे दी, लेकिन शादी में इंदिराराजे के मायके का कोई भी व्यक्ति शामिल नहीं हुआ। इंदिराराजे और जितेंद्र नारायण की शादी 1911 लंदन में ब्राम्हो समाज के रीति-रिवाजों से हुई, जितेंद्र नारायण की माँ सुनीतिदेवी ब्राम्हो समाज के संस्थापक केशबचंद्र सेन की लड़की थीं। शादी के बाद वह अपने पति के साथ लंदन में ही रहतीं थीं, 1913 में कूचबिहार के राजा और जितेंद्र नारायण के बड़े भाई राजेन्द्र नारायण की आकस्मिक मृत्यु हो गई, जिसके बाद जितेंद्र नारायण को राजा बनाया गया।
कम उम्र में हुईं विधवा
जितेंद्र नारायण और इंदिरादेवी की पाँच संतानें हुईं जिनमें तीन लड़कियां और दो लड़के थे, उनकी एक बेटी गायत्री देवी थीं, जिनका विवाह जयपुर के राजा सवाई मान सिंह से हुआ था। महज दस वर्ष ही शासक रहने के हैवी अल्कोहल के कारण 1922 में जितेंद्र नारायण की मृत्य हो गई और बहुत ही कम उम्र में इंदिराराजे विधवा हो गईं, पति की मृत्यु के बाद उनके बेटे जगदीपेंद्र नारायण को शासक बनाया गया, नाबालिग होने की वजह से वह राज्य की संरक्षक बनी, और बहुत ही साहस के साथ राज्य संभाला, हालांकि उनका प्रशासन तो औसत ही माना जाता है, लेकिन वह सोशल लाइफ में बहुत सक्रिय रहीं, बाद में बेटे को पूर्ण राज्यधिकार मिलने के बाद वह यूरोप चली गईं, हालांकि बाद में वह लौट आईं और मुंबई में रहने लगीं, वहीं 6 सितंबर 1968 को उनकी मृत्यु हो गई।
बेहद खूबसूरत और फैशनपरस्त, जूतों में जड़वाती थीं हीरे-मोती
इंदिराराजे बेहद खूबसूरत थीं, बहुत फैशनपरस्त भी मानी जातीं थीं और बेहद लग्जरी लाइफ जीतीं थीं, सिल्क और फ्रेंच शिफॉन को भारत में चलाने के श्रेय उन्हें ही दिया जाता है, यह उस दौर में बहुत महंगी मानी जाती थी, इसके अलावा वे महंगे जूतियों का भी शौक भी रखती थीं और अपने जूतों में महंगे हीरे-मोती जड़वाती थीं, वह इटली की सुप्रसिद्ध कंपनी साल्वातोर फेरोगेमो से अपने जूते डिजाइन करवाती थीं, उन्होंने इस कंपनी को लगभग 100 जोड़ी जूते बनाने का ऑर्डर दिया था।