History Of Sugar In India: भारतीय शर्करा का शक़्कर से लेकर चीनी तक का सफर

History Of Sugar In Hindi

History Of Sugar In India In Hindi | हम भारतीयों की गुड मॉर्निंग चाय के बिना होती नहीं है और चाय बिना मिठास के हमें फीकी लगती है। चाय को मीठा बनाने की जिम्मेदारी है चीनी पर। चीनी जिसे शक्कर भी कहते हैं और अंग्रेजी में इसे शुगर कहा जाता है। इसके अविष्कार का श्रेय हम भारतीयों को ही जाता है। लेकिन हमने भूरी शक़्कर का अविष्कार किया था, जो खांड की डली के रूप में होता था। डली से टुकड़ों और फिर दानेदार और भूरी से सफ़ेद होने का इसका इतिहास बहुत रोचक है। 18वीं शताब्दी तक इसका व्यापारिक महत्व बहुत था और यह महंगी भी होती थी, जिसके कारण इसे ‘सफ़ेद सोना’ कहा जाता था।

मिठास से भरी शक़्कर का प्रारंभिक इतिहास | Shakkar Ka Itihas

शक़्कर या शर्करा का अविष्कार आज से लगभग 2500 से 3000 वर्ष ईसा पूर्व भारतीयों ने किया था। सबसे पहले गन्ने के रस से गुड़ और उसी को परिष्कृत करके भूरी शक्कर(खांड) बनाई गई। ईसापूर्व लिखे गए आचार्य चरक के आयुर्वेदिक ग्रंथ ‘चरक संहिता’ के ‘इक्षुवर्ग’ के अनुसार शक़्कर रूखी, कै और अतिसार को नष्ट करती है और शरीर में जमें हुए कफ़ को बाहर निकालती है। एक और भारतीय ग्रंथ कौटिल्य के अर्थशास्त्र में गुड़ और खांड समेत पांच तरह की शक़्कर बनाने का जिक्र है।

यहीं से यह तकनीकी पूर्व में चीन और पश्चिम में फारस और मिस्र होते हुए भूमध्यसागर तक पहुँच गई। ‘नेचुरलिस हिस्टोरिका’ के नाम से विश्वकोश लिखने वाले प्राकृतिक इतिहासकर और दार्शनिक ‘प्लिनी’ ने लिखा था “शक़्कर अरब में भी बनती है, पर भारतीय शक़्कर बेहतर है। यह एक बेंत(गन्ना) से प्राप्त होने वाली शहद है, जो दाँतों के बीच में सिकुड़ता है।”

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शक़्कर की विश्वयात्रा

पर्शियन में इसे शाकर, अरब में शुक्कर बोला गया। 12वीं शताब्दी में यह फ्रांस पहुँची जहाँ इसे शुक्रे बोला गया और अंग्रेजी में बना यह शुगर। यानि कि पूरे विश्व में इसका नामकरण शर्करा के अनुसार ही हुआ, अंग्रेजी के शुगर का भी प्रादुर्भाव यही शर्करा शब्द है। फिर भारत में इसे चीनी क्यों बोला जाता है?

7वीं शताब्दी में शक़्कर व्यापारियों के माध्यम से पर्शिया होते हुए मध्यएशिया पहुँच गई थी, यूरोप यह पहुंची 11वीं शताब्दी में, तब तक यह भूरी ही थी। मिस्र में इसका बहुत शोधन करके इसे और परिष्कृत कर मिश्री जैसे बनाया गया। व्यापारियों और यात्रियों के माध्यम से शक्कर चीन थांग राजवंश के समय ही पहुँच गई थी। 7वीं शताब्दी में चीन के सम्राट तायज़ॉन्ग ने गन्ने की खेती और उत्पादन में अपनी रूचि दिखाई। चीनी डाक्यूमेंट्स के अनुसार चीन ने भारत में सम्राट हर्ष के समय में दो दल भेजे थे शक़्कर उत्पादन की विधि जानने के लिए। मार्को पोलो के अनुसार 13वीं शताब्दी के चीन के सम्राट कुबलई खान ने मिस्र से कारीगर बुलवाए शक़्कर बनाने की विधि जानने के लिए। चीनियों ने ही शोधन और परिष्कृत करके सफ़ेद और दानेदार शक़्कर का प्रादुर्भाव किया। फिर मुग़लकाल में व्यापारिक माध्यम से यह भारत आई, सफ़ेद और दानेदार यह शक़्कर चीन से आने के कारण उत्तरभारत में चीनी बन गई।

और फिर मीठी शक़्कर का इतिहास कड़वा हो गया

विद्वानों के अनुसार शेष दुनिया को 15वीं शताब्दी तक शक़्कर के मिठास की जानकारी नहीं थी। मीठे के नाम पर उन्हें फल और शहद ही पता था। स्पष्ट था विश्वभर में इसके कारोबार की गुंजाइश थी। यूरोपियन ने यहाँ भी अवसर देखा। और सबसे पहले पुर्तगाली व्यापारियों ने गन्ने की खेती करवाना प्रारंभ किया। कैरिबियन क्षेत्र को शक़्कर के उत्पादन के लिए उपयुक्त पाया गया, पास में ही जंगल में भरपूर ईंधन भी था। बस कमी थी मजदूरों की, इसके लिए वह पश्चिमी अफ्रीका आए और वहाँ के लोगों को दास बनाकर कैरिबिया लाने लगे, दासों के आने का यह सिलसिला जारी ही रहा जिसके कारण 1505 में वहाँ शुगर श्रमिकों की एक कॉलोनी बन गई। पुर्तगालियों ने 20 सालों में ऐसे ही दासों के बूते हेती और डॉमिनिक रिपब्लिक से लेकर ब्राजील तक लगभग ऐसी ही शुगर कॉलोनी स्थापित कीं। अब पुर्तगालियों की देखा-देखी स्पेन, फ्रांस, डच और ब्रिटिश व्यापारियों ने भी अपने दासों के बल पर कैरिबियन द्वीप, ब्राजील, गुयाना और सूरीनाम इत्यादि में अपने शुगर उपनिवेश स्थापित किए। आगामी 300 वर्षों तक शक्कर ऐसी ही बनती रही।

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भारत में परिष्कृत शक़्कर का आगमन

भारत में पहली शक़्कर मिल और उसकी तकनीक आई मुग़लकाल में। 1610 में कोरोमंडल तट के मसूलीपट्टनम और पेटापोली में पहली शुगर मिल अंग्रेज व्यापारी कैप्टेन हिप्पोन द्वारा स्थापित की गई। 1612 में दूसरी मिल अंग्रेज व्यापरी कैप्टेन डाउटन ने सूरत में स्थापित की। यह परिष्कृत चीनी प्रारंभ में बहुत महंगी मानी जाती थी, सामान्य लोगों द्वारा बहुत कम ही प्रयोग की जाती थी। तब यहाँ के लोगों द्वारा गुड़ बहुतायत में प्रयोग किया जाता है। भारत में चीनी बहुत दिनों तक राशन के दुकानों में प्राप्त होती थी। लेकिन धीरे-धीरे यह जनसामान्य में प्रचलित हो गई।

चीनी गुणकारी भी है

जैसा हमने पहले भी जिक्र किया था, भारतीय ग्रंथों में शक़्कर के आयुर्वेदिक उपयोग का जिक्र मिलता है। इसका ऐसी जानकारी मिलती है यूरोप सहित विश्व के कई देशों में इसका प्रयोग दवा के तौर पर भी किया जाता था। आज भी कुछ किया जाता है। चोट लगने के बाद इसका उपयोग घाव से रक्तस्त्राव बंद करने के लिए भी होता है। दुबले इंसान का वजन बढ़ाने में सहायक होती है। लो बीपी को बढ़ाकर सामान्य करने में भी मददगार होती है।

चीनी का सेहत पर दुष्प्रभाव

लेकिन आज की रिफाइन्ड चीनी में न विटामिन्स हैं और न मिनरल्स, हाँ इसमें कैलोरी जरूर बहुत मिलती है जिसके कारण मोटापा बढ़ता है। खून में शुगर की मात्रा ज्यादा हो जाने से, इन्सुलिन की प्रतिरोधक क्षमता पर असर होता है, जिसके कारण मधुमेह (डायबिटीज) की बीमारी भी होती है। यह बीमारी सेहत के लिए अत्यंत घातक होती है। इसके कारण बीपी समेत कई बीमारियाँ हो जाती हैं, यह आँखों के रौशनी को प्रभावित करती है। इसके अत्यधिक सेवन से दिमाग में डोपामाइन नाम का एक हार्मोन्स भी स्त्रावित होता है, जो नशे की ही तरह मीठे की लत भी लगा सकता है।

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फुर्सत की सलाह

चीनी अगर सही मात्रा में उपयोग की जाये तो यह जीभ का स्वाद बढ़ा कर फीलगुड वाला अनुभव देती है। इसी तरह हमारी जिंदगी में भी थोड़ी सी मिठास हमें जिंदगी में फीलगुड का अनुभव करवाएगी। इसीलिए जिंदगी हो या चाय उसमें मिठास का संतुलन होना ही चाहिए।

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