Indian History Of 18th Century: 18वीं शताब्दी में मुग़ल साम्राज्य अपनी पतन की ओर अग्रसर था, शासक कमजोर हो चुके थे, लेकिन इसके बाद भी वह कभी-कभी सैनिक अभियान किया करते थे, ऐसे ही मारवाड़ के विरुद्ध एक अभियान का जिक्र सुप्रसिद्ध इतिहासकार सर जदुनाथ सरकार अपनी किताब “फॉल ऑफ़ मुग़ल एम्पायर” में 18वीं शताब्दी के इतिहासकार ‘गुलाम हुसैन खान’ के फ़ारसी ग्रंथ “सियार-उल-मुतखारीन” का रेफ़्रेन्स देते हुए एक घटना का उल्लेख करते हैं, जिसके बाद मुग़ल सेना को मारवाड़ में एक-एक बूंद पानी के तरसना पड़ा।
कमजोर हो चुकी थी मुग़ल सत्ता
हिंदुस्तान में मुग़ल सत्ता का लगातार पतन हो रहा था, औरंगजेब के निधन के बाद ही मुग़लों का पतन प्रारंभ हो गया था उसके बाद कोई भी योग्य बादशाह मुग़ल गद्दी में नहीं बैठ था। केंद्रीय सत्ता के कमजोर होने के कारण देश में कई क्षेत्रीय शक्तियों का उभार हो गया। जिनमें अवध, बंगाल, रूहेलखण्ड और हैदराबाद में मुस्लिम नवाबों का उभार था, जो मूलतः मुगल सूबेदार थे को मुगलों की कमजोरी का फायदा उठाकर लगभग स्वतंत्र हो चुके थे, इसी तरह राजपूताना के राजा भी खुद को स्वतंत्र मानते हुए मुग़ल शासन की अवहेलना करने लगे थे।
क्षेत्रीय शक्तियों में भी सत्ता संघर्ष
जहाँ एक तरफ केंद्रीय मुग़ल सत्ता कमजोर हो गई थी, तो उसी तरह राजपूत राजाओं में सत्ता संघर्ष प्रारंभ हो गया था। मारवाड़ (जोधपुर) के शासक अभय सिंह की मृत्यु के बाद, उनके पुत्र रामसिंह और भाई बख्त सिंह के मध्य उत्तराधिकार के लिए संघर्ष होने लगा। बख्त सिंह का प्रभाव उस समय मुग़ल दरबार में खूब था। मराठों के विरुद्ध उसे गुजरात का सूबेदार बनाया गया था। इसीलिए उसे खुश करने के लिए मुग़ल बादशाह अहमद शाह ने मीरबक्शी सैय्यद सलावत खान को मारवाड़ कूच करने का आदेश दिया। सलावत खान ने इस अभियान के 18 से 20 हजार नए सैनिकों की भर्ती की और अजमेर होता हुआ मारवाड़ पहुँच गया।
युद्ध की स्थिति
मारवाड़ मरू प्रदेश था, यहाँ पानी के स्त्रोत और कुएँ वैसे भी कम थे और जो थे भी उनमें राजपूतों ने कब्जा कर रखा था। दोनों तरफ की सेनाएं एक दूसरे के सामने आकर डट गईं थीं लेकिन युद्ध नहीं हो रहा था। सलावत खान को बख्त सिंह पर भरोसा नहीं था, उस पर उसके डेरे में पानी की कमी हो जाती थी। दूसरे उसके नए नए सैनिक मारवाड़ प्रदेश के धूप और गरम मौसम में खड़े खड़े ही बेहाल हो जाते। इस परिस्थिति में उसने ईश्वरी सिंह से पत्र लिखकर मध्यस्थता करने का अनुरोध किया। मारवाड़ के शासक राम सिंह ने भी जयपुर के शासक ईश्वरी सिंह से मदद मांगी थी। ईश्वरी सिंह को भी लगा अपना प्रभाव बढ़ाने का अच्छा अवसर है, राम सिंह भी समझौते के लिए तैयार थे। लेकिन बातचीत में देरी थी, 10 दिन जब कोई परिणाम नहीं निकला, सलावत खान अधीर हो उठा और बख्त सिंह के समझाने के बाद भी दम्भ के साथ अपनी सेना के हरावल दस्ते को रामसिंह के अग्रभाग पर आक्रमण करने के आदेश दे दिए।
जब राजपूत सेना ने मुग़लों को पिलाया पानी
राजपूत जो अब तक चुपचाप बैठे थे मुग़ल फ़ौजों के नजदीक आने पर गोला बारूद बरसाने लगे। मुग़ल भी जम गए, दोनों तरफ से गोलाबारी होने लगी। लेकिन गर्मी का महीना और मरू प्रदेश धूप और गर्मी मुग़ल सैनिक बर्दाश्त नहीं कर पाए। पीने के पानी के कुओं पर राजपूतों का अधिकार था। बहुत से मुग़ल सैनिक पानी की तलाश में राजपूतों के डेरे में पहुँच गए। राजपूतों ने उदारता के साथ उन्हें और उनके घोड़ों को पानी पिलाया। तृप्त हो जाने पर उन्हें लौटा दिया यह कहकर कि तुममें और हममें युद्ध हो रहा है। मुग़ल सैनिक अपने अपने डेरे में लौट गए, और दूसरे दिन युद्ध करने से इंकार कर दिया। युद्ध स्वतः ही बंद हो गया।
सलावत खान ने संधि कर ली और अजमेर लौट गया। यह मुगलों द्वारा राजपूताना में किया गया अंतिम बड़ा अभियान था जो असफल रहा। कुछ दिन अजमेर में रहने के बाद वह दिल्ली लौट गया। लौटते वक़्त उसने नारनौल का जिला जयपुर को सौंप दिया, जबकि जोधपुर ने अजमेर पर कब्ज़ा कर लिया।