अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) द्वारा भारत पर 25% टैरिफ लगाने की घोषणा के बाद भारत सरकार ने इस चुनौती से निपटने के लिए कमर कस ली है। केंद्र सरकार ने प्रमुख आर्थिक मंत्रालयों को निर्देश दिए हैं कि वे 25 अगस्त को होने वाली व्यापार वार्ता से पहले उन क्षेत्रों में रियायतों की सूची तैयार करें, जिन्हें अमेरिका के साथ व्यापार समझौते में पेश किया जा सके। यह कदम ट्रंप प्रशासन के भारत से रूस के साथ तेल और रक्षा आयात को लेकर लगाए गए अतिरिक्त “दंडात्मक” टैरिफ के जवाब में उठाया गया है।
Trump tariffs, trade negotiations, India-US deal: भारत सरकार ने इस बार जवाबी टैरिफ लगाने के बजाय रणनीतिक रियायतों पर ध्यान केंद्रित किया है। सूत्रों के अनुसार, मंत्रालयों को ऊर्जा, रक्षा खरीद और चुनिंदा क्षेत्रों में टैरिफ कम करने के प्रस्ताव तैयार करने को कहा गया है। भारत ने पहले ही अमेरिकी आयात के 55% पर टैरिफ कम करने की पेशकश की थी, लेकिन ट्रंप प्रशासन व्यापक टैरिफ कटौती और गैर-टैरिफ व्यापार बाधाओं को हटाने की मांग कर रहा है।
विशेष रूप से, भारत कृषि, डेयरी और ऑटोमोबाइल जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में रियायतें देने से बच रहा है, क्योंकि ये क्षेत्र देश की अर्थव्यवस्था और स्थानीय उत्पादकों के लिए महत्वपूर्ण हैं। दिल्ली के ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव जैसे थिंक टैंक का कहना है कि भारत ने इन क्षेत्रों में अपनी “लाल रेखा” बनाए रखकर एकतरफा समझौते के जाल से बचने में सफलता पाई है।
ट्रंप ने भारत को अपने शीर्ष व्यापारिक साझेदारों में गिना था, लेकिन धीमी प्रगति ने वाशिंगटन में नाराजगी बढ़ाई है। भारत ने सतर्क रुख अपनाते हुए सीमित रियायतों की पेशकश की है, ताकि आर्थिक विकास और घरेलू उद्योगों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। विशेषज्ञों का कहना है कि ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने जल्दबाजी में अमेरिका के साथ समझौते किए, जो उनके लिए नुकसानदेह साबित हुए। भारत इस गलती से बचने की कोशिश कर रहा है।
चीन के साथ अमेरिका की व्यापार वार्ता में प्रगति ने भारत पर दबाव बढ़ा दिया है, क्योंकि चीन को रूसी तेल आयात पर छूट और BRICS देशों पर प्रस्तावित 10% अतिरिक्त टैरिफ में राहत मिल सकती है। भारत सरकार का लक्ष्य अक्टूबर तक समझौते को अंतिम रूप देना है, लेकिन सकारात्मक वार्ता होने पर यह समयसीमा पहले भी हो सकती है।
इस बीच, भारतीय स्टॉक मार्केट में उतार-चढ़ाव देखा गया है, और विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि लंबे समय तक अनिश्चितता भारत की आर्थिक वृद्धि को प्रभावित कर सकती है। सरकार की रणनीति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ट्रंप के बीच संभावित शीर्ष-स्तरीय बातचीत पर टिकी है, जो इस समझौते को अंतिम रूप दे सकती है। यह स्थिति वैश्विक व्यापार में भारत की रणनीतिक स्थिति को और मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकती है।