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भारतीय लोकतंत्र के स्याह पक्ष आपातकाल को लगे 50 वर्ष पूर्ण

Indian Emergency Completes 50 Years: 25 जून 1975 की रात जब पूरा देश शांति से सो रहा था, लेकिन दिल्ली के 1 सफ़दरजंग रोड स्थित अपने आवास पर देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी बेचैन होकर जग रही थीं। यही वह रात थी, जब देश में आपातकाल लगाया जा रहा था। आपातकाल जो भारत के लोकतांत्रिक इतिहास पर एक स्याह दाग है। जिसके निशान 50 वर्षों बाद आज भी नजर आ ही जाते हैं। आखिर आपातकाल क्या था और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसे भारत पर क्यों थोपा था।

इंदिरा गांधी ने क्यों लगाया था आपातकाल

1970 के दशक में भारत ने इंदिरा गांधी के नेतृत्व में राजाओं को मिलने वाले प्रिवीपर्स को खत्म किया, पाकिस्तान को हराकर बांग्लादेश के निर्माण में अग्रिम भूमिका निभाई। जिसके कारण इंदिरा गांधी के राजनैतिक सितारे उन दिनों बुलंदी पर थे। लेकिन दूसरी तरफ देश में महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार समेत कई समस्याएँ थीं। जिनके खिलाफ जनता में असंतोष लगातार बढ़ रहा था। जयप्रकाश नारायण अर्थात जेपी के नेतृत्व में विपक्षी दलों और छात्रों ने सरकार के खिलाफ आंदोलन शुरू किया, जिसे ‘संपूर्ण क्रांति’ आंदोलन कहा गया। इसी आंदोलन के कारण कांग्रेस को अपनी बिहार और गुजरात की सरकारों के विरुद्ध भी एक्शन लेना पड़ा था।

इंदिरा गाँधी के ऊपर चुनावों में धांधली का आरोप

इसके अलावा 1971 में इंदिरा गांधी के विरुद्ध रायबरेली से प्रत्याशी रहे समाजवादी नेता राजनारायण की याचिका पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इंदिरा गांधी के 1971 के रायबरेली लोकसभा चुनाव को अवैध घोषित कर दिया था। कोर्ट ने उन पर चुनावों के दौरान सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग का आरोप लगाया और उनकी संसद सदस्यता को रद्द कर दिया। साथ ही उन्हें छह साल तक चुनाव लड़ने से भी रोक दिया गया। यह फैसला इंदिरा गांधी के लिए बहुत बड़ा झटका था। इसके बाद विपक्षी दल इंदिरा गांधी से इस्तीफे की मांग करने लगे और देशव्यापी विरोध प्रदर्शन तेज कर दिए।

कांग्रेस पार्टी में भी पनप रहा था इंदिरा गांधी के विरुद्ध असंतोष

लेकिन बात केवल विपक्ष मात्र की नहीं थी। उनकी खुद की पार्टी में भी असंतोष पनप रहा था, हेमवतीनंदन बहुगुणा, बाबू जगजीवन और युवा तुर्क के नाम से मशहूर रहे चंद्रशेखर समेत कांग्रेस पार्टी के और भी कई वरिष्ठ नेता चाहते थे, इंदिरा गांधी अभी इस्तीफा दे दें। लेकिन इंदिरा गांधी इस्तीफा देना नहीं चाहती थीं, उनके मन में क्या चल रहा था, यह उनके अतिरिक्त और किसी को भी पता नहीं था।

सिद्धार्थ शंकर रॉय और इंदिरा गांधी की मीटिंग

बंगाल के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर राय, जो देश के जाने-माने विधिक विशेषज्ञ भी थे। वह दिल्ली आए थे और बंग भवन में रुके हुए थे। अभी सुबह का ही वक्त था कि उनकी फोन की घंटी बजी, फोन पर इंदिरा गांधी के सचिव आर के धवन थे, जो उन्हें प्रधानमंत्री आवास बुला रहे थे, जहाँ प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, उनका इंतजार कर रही थीं। सिद्धार्थ राय प्रधानमंत्री आवास गए और वहाँ उन दोनों के बीच लगभग 2 घंटे तक देश के राजनैतिक हालातों पर चर्चा हो रही थी, इंदिरा गांधी किसी भी हालात में विपक्ष के सामने झुकना नहीं चाहती थीं। ऊपर से उनको एक और भी डर था, दरसल इंदिरा गांधी को डर था अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन जो उनको बिल्कुल भी पसंद नही करते थे, कहीं वह चिली के राष्ट्रपति की ही तरह उनका तख्ता भी पलट दें। इसीलिए वह इन परिस्थितियों का स्थायी समाधान चाहती थीं। इसीलिए उन्होंने सलाह के लिए बंगाल के मुख्यमंत्री को बुलवाया था।

रॉय ने ही सुझाया था आपातकाल

सिद्धार्थ शंकर रॉय ने इंदिरा गांधी से कुछ वक्त मांगा और चले गए, लगभग 3 बजे वापस आकार उन्होंने इंदिरा गांधी को संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत देश में विदेशी शक्तियों के प्रभाव से देश में आंतरिक अस्थिरता का हवाला देकर आपातकाल लगा सकती थीं। दरसल भारतीय संविधान का अनुच्छेद 352, देश में आपातकाल लगाने की बात करता है। राष्ट्र में आपातकाल उस स्थिति में लगाया जा सकता है, जब देश की संप्रभुता पर कोई आंतरिक या बाह्य खतरा हो। जैसे- देश युद्ध के मुहाने पर हो, कोई बाह्य आक्रमण हो या देश के अंदर कोई आंतरिक विद्रोह पनप रहा हो।

कैबिनेट को बिना बताए लिया फैसला

इंदिरा गांधी आपातकाल लगाने को तैयार हो गईं, लेकिन वह उससे पहले अपने कैबिनेट को भी इस मामले से अवगत नहीं कराना चाहती थीं। इसीलिए वह रॉय के साथ राष्ट्रपति भवन गईं और तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद को देश में आंतरिक अशांति का हवाला देकर उनके हस्ताक्षर से संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर दी गई।

आपातकाल की घोषणा के बाद इंदिरा गांधी ने सुबह 6 बजे अपनी कैबिनेट मीटिंग बुलाई, उसमें उन्होंने देश में आपतकाल लगाने का कारण और गिरफ्तार होने वाले नेताओं के बारे में बताया।

MISA के तहत विपक्षी नेताओं की हुयी गिरफ्तारी

आपातकाल की घोषणा के बाद इंदिरा सरकार ने, मीसा अर्थात मेंटीनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट के तहत बिना मुकदमे के ही विपक्ष के लोगों को गिरफ्तार करने लगी। जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेयी जैसे बड़े नेताओं के साथ ही देशभर में हजारों विपक्षी नेताओं, कार्यकर्ता और कई पत्रकारों को भी जेल में डाल दिया गया। समाचार पत्रों और मीडिया पर सख्त सेंसरशिप लागू की गई। कई अखबारों को सरकारी आदेशों का पालन करना पड़ा, रेडियो, टेलीविजन सबपर सरकार का नियंत्रण स्थापित कर दिया गया।

इंदिरा गांधी ने किया मिनी संविधान संशोधन

इसी बीच प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी सरकार ने 42वें संविधान संशोधन के जरिए बहुत बड़ा संवैधानिक बदलाव किया। इसे मिनी-संविधान भी कहा गया। इसके द्वारा जिससे सरकार और संसद की शक्तियां बढ़ गईं। उस समय उठी हर विरोध की आवाज को देशद्रोह कहा गया। आवाज़ उठाने का मतलब था, केवल जेल। लोकतंत्र की सांसें बंद हो चुकी थीं। माना जाता है उस दौर में सत्ता का असली चेहरा संजय गांधी थे। जिनके निर्देश पर जबरन परिवार नियोजन कार्यक्रम को आक्रामक रूप से लागू किया गया, जिसके तहत कई जगहों पर जबरन नसबंदी करवाई गई। दिल्ली में झुग्गियों पर बुलडोजर चलाया गया।

इंदिरा गांधी की 1977 चुनावों में हुयी बड़ी हार

जैसे कि हमने पहले भी बताया था सरकार ने दावा किया कि देश में अस्थिरता और विदेशी ताकतों का खतरा था, जिसके कारण देश में आपातकाल जरूरी था। लेकिन कई राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि आपातकाल का मुख्य उद्देश्य इंदिरा गांधी की सत्ता को बचाना और विपक्ष को दबाना था। जनवरी 1977 में इंदिरा गांधी ने देश से आपातकाल हटाने और आम चुनावों की घोषणा कर दी, और इसके बाद हुए चुनाव में कांग्रेस और इंदिरा गांधी को जबरजस्त हार का सामना करना पड़ा और विपक्षी दलों के नेतृत्व वाले जनता पार्टी को जीत मिली। आपातकाल भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक विवादास्पद और महत्वपूर्ण घटना थी।आपातकाल ने भारतीय लोकतंत्र पर गहरा प्रभाव डाला था। जिसका असर आज भी महसूस किया जा सकता है।

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