India Russia Defence Pact Hindi News: भारत और रूस के बीच रक्षा संबंधों को नई ऊंचाई देने वाला एक ऐतिहासिक समझौता रूसी संसद ने मंजूरी दे दी है। (India Russia Defence Pact Details) अब दोनों देश एक-दूसरे के सैन्य ठिकानों, हवाई अड्डों और बंदरगाहों का इस्तेमाल कर सकेंगे, जिससे संयुक्त अभियानों में लॉजिस्टिक सपोर्ट आसान हो जाएगा। यह खबर राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के भारत दौरे से ठीक दो दिन पहले आई है, जो 4-5 दिसंबर को होने वाला है। (Putin India Visit) रूसी राज्य सभा (State Duma) ने मंगलवार को ‘रिसिप्रोकल एक्सचेंज ऑफ लॉजिस्टिक सपोर्ट’ (RELOS) नामक इस समझौते को हरी झंडी दिखाई, जो भारत-रूस रणनीतिक साझेदारी का अब तक का सबसे महत्वपूर्ण रक्षा करार माना जा रहा है।
भारत और रूस के बीच सैन्य सहयोग की जड़ें 1971 के युद्ध से जुड़ी हैं, जब सोवियत संघ ने भारत का साथ दिया था। (India Russia Military Ties) आज भी रूस भारत का सबसे बड़ा रक्षा निर्यातक है, जो S-400 मिसाइल सिस्टम, सु-30 एमकेआई {Su-30 MKI} लड़ाकू विमान और ब्रह्मोस मिसाइल जैसे हथियारों की आपूर्ति करता है। इस नए समझौते से भारत पहला देश बन गया है, जो अमेरिका और रूस दोनों के साथ सैन्य इंफ्रास्ट्रक्चर शेयर करने वाला है। (RELOS Agreement) पहले भारत ने अमेरिका के साथ LEMOA, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया जैसे देशों के साथ इसी तरह के लॉजिस्टिक एक्सचेंज पैक्ट साइन किए हैं। रूसी सरकार के मुताबिक, यह करार दोनों देशों की सेनाओं को आपात स्थिति में एक-दूसरे की मदद करने में सक्षम बनाएगा।
भारत-रूस रक्षा समझौते की पूरी जानकारी
Key Details of Indo-Russian Defence Deal: यह समझौता 18 फरवरी को भारतीय राजदूत विनय कुमार और तत्कालीन रूसी उप रक्षा मंत्री अलेक्जेंडर फोमिन के बीच साइन हुआ था। रूसी प्रधानमंत्री मिखाइल मिशुस्तिन ने इसे संसद में पेश किया, और अब मंजूरी मिलने से यह लागू हो जाएगा। (India Russia Reciprocal Logistics Exchange)
- उद्देश्य और दायरा: RELOS पैक्ट का मुख्य मकसद सैन्य लॉजिस्टिक्स को सरल बनाना है। (Military Logistics Support) दोनों देशों की वायुसेना, नौसेना और थलसेना एक-दूसरे के बेस का इस्तेमाल कर सकेंगी – जैसे हवाई जहाजों का रिफ्यूलिंग, warships का डॉकिंग, या कैंप स्थापित करना।
- कवरेज एरिया: हवा (एयरफील्ड्स), समुद्र (पोर्ट्स) और जमीन (सप्लाई पॉइंट्स) सभी शामिल। (Air Sea Land Access) इसमें रिफ्यूलिंग, मरम्मत, स्टॉक रिचार्ज, मेडिकल सपोर्ट, ट्रांजिट और मूवमेंट जैसी सुविधाएं दी जाएंगी। लागत 50-50 प्रतिशत शेयर होगी।
- अवधि और लागू होना: करार की अवधि स्पष्ट नहीं बताई गई, लेकिन यह लंबे समय के लिए है। लागू होने से भारत की इंडो-पैसिफिक रणनीति मजबूत होगी, खासकर रूस के आर्कटिक और पूर्वी साइबेरिया बेस का फायदा मिलेगा। (Indo Pacific Strategy)
- सुरक्षा और गोपनीयता: कोई संवेदनशील डेटा शेयर नहीं होगा; सिर्फ जरूरी लॉजिस्टिक एक्सेस। (Defence Infrastructure Sharing) भारतीय नौसेना प्रमुख एडमिरल दिनेश त्रिपाठी ने भास्कर को बताया, “यह पैक्ट अमेरिका-रूस के बीच किसी सैन्य टकराव का कारण नहीं बनेगा।”
समझौते के प्रभाव और फायदे
यह पैक्ट भारत की रक्षा क्षमता को बढ़ाएगा, खासकर दक्षिण चीन सागर और हिंद महासागर में। (Strategic Partnership Boost) रूस को भी भारत से ब्रह्मोस मिसाइलों का निर्यात बढ़ाने में मदद मिलेगी। हाल ही में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में S-400 सिस्टम ने पाकिस्तान के खिलाफ अपनी प्रभावशीलता साबित की, जिसके बाद भारत पांचवें सिस्टम की डिलीवरी तेज करने की मांग कर सकता है। (S-400 Missile System) रूस ने तीन सिस्टम डिलीवर कर दिए हैं, चौथा युद्ध के कारण लेट है। S-400, जो 2007 में लॉन्च हुआ, लड़ाकू जेट्स, बैलिस्टिक मिसाइलें, ड्रोन और स्टील्थ एयरक्राफ्ट को इंटरसेप्ट कर सकता है।
पुतिन के दौरे पर फोकस SU-57 स्टील्थ फाइटर जेट्स की आपूर्ति पर होगा – रूस का सबसे एडवांस्ड फाइटर। (SU-57 Stealth Jets) इसके अलावा S-500 सिस्टम, ब्रह्मोस मिसाइल का नेक्स्ट वर्जन और संयुक्त warships निर्माण पर चर्चा संभावित है। (BrahMos Missile Upgrade) पुतिन नई दिल्ली में गुप्त लोकेशन पर रहेंगे, जहां SWAT टीम, एंटी-टेरर स्क्वॉड और रूस की 50 सदस्यीय सिक्योरिटी टीम तैनात होगी।
भारत-रूस रक्षा सहयोग डिजिटल इंडिया और मेक इन इंडिया को भी मजबूत करेगा, जहां जॉइंट प्रोडक्शन बढ़ेगा। (Make In India Defence) विशेषज्ञों का मानना है कि यह पैक्ट QUAD और SCO दोनों में भारत की स्ट्रैटेजिक पोजीशन को बैलेंस करेगा। (QUAD SCO Balance)
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