सीधी। एमपी के सीधी जिला मुख्यालय से तकरीबन 50 किलोमीटर दूर घोघरा गांव में काली माता का मंदिर है। इस मंदिर में ऐसी अनुठी प्रथा है जिसमें बिना किसी मारकाट के मंत्रोचार से बकरे की बलि दी जाती है। मंदिर के पुजारी बताते है कि उनके पिता को वर्षो पहले मां काली का स्वप्न आया और निर्देष प्राप्त हुआ कि किसी भी निर्दोष की हत्या न किया जाए। तब से मां काली के सामने बकरे की पूजा विधि विधान से की जाती है और मंत्रोचार के बीच बकरा बेहोष हो जाता है। कुछ समय बाद जब बकरा दुबारा उठ खड़ा होता है तो उसे जंगल में छोड़ दिया जाता है।
नवरात्रि में भक्तों का पहुचता है सैलाब
घोघरा गांव की पहाड़ी पर यह काली का मंदिर स्थापित है। पहाड़ियों और नदियों से घिरा हुआ यह मंदिर परिक्षेत्र प्रकृति रूप से भी काफी खूबसूरत स्थान है। यू तो इस मंदिर में अक्सर भक्त पूजा-अर्चना करने एवं अपनी मान्यता पूरी करने के लिए पहुचते है, लेकिन नवरात्रि एवं नवदुर्गा में 9 दिनों तक भक्तों का यहां सैलाब रहता है। यह पूरा क्षेत्र मेले में तब्दील रहता है।
मान्यता पूरी होने पर लेकर आते है बकरा
बताया जाता है कि मां काली की अद्रभुद महिमा है। स्थानिय भक्तों का कहना है कि जो भक्त सच्चे मन से प्रार्थना करते है और अपनी मान्यता मां के सामने रखते है। उनकी मानों कामना पूरी होती है। मान्यता पूरी होने पर वे बकरा चढ़ाने के लिए मां के मंदिर में आते है और मंत्रों से बकरे की बलि दी जाती है। इस अद्धभुद बलि प्रथा के सैकड़ो भक्त साक्षी बनते है।
बीरबल ने पाई थी सिद्धि
ऐसा बताया जाता है कि अकबर के दरवारी रहे बीरबल का इस स्थान से गहरा रिश्ता रहा है। वे अपनी बुद्धिमता के लिए सुव्याख्यत थें। मान्यता है कि मुगल दरबार के नवरत्न बीरबल को भी इसी मंदिर में सिद्धि प्राप्त हुई थी। मां काली के आशीर्वाद से उन्हें विशेष शक्तियां मिली थीं, तब से यह स्थान साधना का प्रमुख केंद्र बन गया।