रीवा के इस मंदिर में भगवान के साथ भक्त भी झूले पर होते है सवार, 15 दिन का रहता है उत्सव

रीवा। सावन का महीना उत्सव से भरा होता है। इसकी छठा मंदिरों में बखूबी देखी जाती है। इनमें से रीवा का ऐतिहासिक लक्ष्मण बाग मंदिर शामिल है। जहा वर्षो पुरानी पंरपरा के तहत 15 दिनों तक भगवान को विशेष झूला में विराजमान किया जाता है और उन्हे भक्त झूला झुलाते है। तो वही भक्त मंदिर परिसर में खुदा झूला उत्सव मानते है और वे झूला झूलते है। जिसमें महिलाएं पारंपरिक परिधानों में सज-धज कर भाग लेती हैं और बघेली लोकगीतों के साथ झूला झूलती हैं। ऐसा परंपरा यहां के लोगो के द्वारा बताई जाती है। बताते है कि लक्ष्मण बाग के सावन उत्सव को देखने के लिए दूर दराज के ग्रामीण अंचलों से लोग आते रहे है, हांलाकि यह उत्सव अब चन्द्र लोगो तक ही सीमित रह गया। इसी तरह रीवा किला एवं मुकातिक मंदिर में विराजमान बाकें बिहारी को झूले पर सवार किए जा रहा है। इसके साथ ही धार्मिक आयोजन भी आयोजित किए जा रहे है। मंदिर के पुजारी दीनानाथ शास्त्री ने बताया कि कृष्ण जन्माष्टी तक यह उत्सव जारी रहता है।

चार धाम के देवी-देवताओं के होते है दर्शन

लक्ष्मणबाग में भगवान के चारों धाम के दर्शन होते हैं। यहां महाराजा रघुराज सिंह द्वारा स्थापित भगवान जगन्नाथ और राम जी की होली खेलने की अद्भुत परंपरा भी है. यह मंदिर बघेल राजवंश द्वारा बनवाया गया था और इसका नाम रीवा के आराध्य देव लक्ष्मण के नाम पर रखा गया है। राजपरिवार की ऐसी मंशा रही है कि विंध्य क्षेत्र के लोग किसी कारण वश चारधाम की यात्रा नही कर पाते है तो वे लक्ष्मणबाग में पहुच कर चारधाम में विराजमान भगवान स्वरूप का दर्शन एवं पुण्य लाभ ले सकेगे।

मनाया गया उत्सव

लक्ष्मणबाग में झूला महोत्सव का आयोजन महिलाओं के द्वारा किया गया। जिसमें महिलाओं ने हिदुली, कजली, बघेली लोक गीतों में ठुमकती बहनों ने वृन्दावन जैसा दृश्य सजाया। वर्षो से चली आ रही परंपरा के तहत लक्ष्मण बाग में बहनों ने बांके बिहारी और राधा रानी को झूला झुलाकर अपनी संस्कृतिक धरोहरों को जीवंत रखने में योगदान दे रही है। बहनों ने एक साथ हरियाली तीज श्रावण मास में झूला उत्सव में भाग लेकर अपनी परंपरा को आगे बढ़ाने में अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन कर रही है।

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