महाभारत में जब पिता ही बना द्रोपदी के चीर-हरण का कारण

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Mahabharata is a huge religious treatise: महाभारत एक विशाल ग्रन्ध है जो इस दुनिया को जीवन का पाठ, कर्म और धर्म का ज्ञान देता है. लेकिन महाभारत में ऐसी कईु घटनाएं हुई हैं जिसने कहीं न कहीं मानवता की परिभाषा को कलंकित किया है. यूँ तो महाभारत में पांडवों और कौरवों के बीच हुई इस महाभारत के कई कारण हैं लेकिन इसके पीछे एक ऐसी वजह है जिसके बारे में या तो लोगों को पता नहीं है या फिर लोगों ने उस कारण पर चर्चा नहीं की. यदि महाभारत में इस कारण को कारण बनने से पहले ही रोक दिया गए होगा तो शायद महाभारत होती ही नहीं। तो आइये जानते हैं द्रोपदी के चीर-हरण और महाभारत की असली वजह के बारे में.

महाभारत की शुरुआत कैसे हुई

How did the Mahabharata begin?: इतिहास में द्रोपदी के चीर-हरण की वजह द्रोपदी का दुर्योधन को “अंधे का पुत्र अँधा” कहना बताया गया है. लेकिन द्रोपदी का ऐसा कहना उनकी नियति में लिखा था और उनकी नियति लिखने वाले स्वयं उनके पिता थे. ये पूरी महाभारत शुरू होती है द्रोपदी के जन्म से, द्रोपदी यज्ञ के द्वारा जन्मी थी. लेकिन जब उनका जन्म हुआ तब उनके पिता, पुत्री नहीं चाहते थे उन्हें एक पुत्र की चाह थी. पांचाल के राजा “राजा ध्रुपद” को अपने राज्य की रक्षा के लिए एक उत्तराधिकारी चाहिए था, लेकिन उस वक्त उनकी एक ही संतान थी वो थी “शिखंडी” शिखंडी को अम्बा का पुनर्जन्म माना जाता है जो की भीष्म पितामह के मृत्यु का कारण बनती लेकिन वो एक स्त्री थी और युद्ध के मैदान में स्र्तीयो का प्रवेश वाजित था. इसी वजह से राजा ध्रुपद को एक बेटा चाहिए था जो उनके दुश्मन गुरु द्रोणाचार्य का वध कर सके. जिसके लिए उन्होंने महायज्ञ करवाया पुजारिओं ने यज्ञ की अग्नि में आहुति देते वक्त संतान में गुणों की इच्छा रखने की बात कही जिसके अनुसार राजा ध्रुपद ने शूरवीर, पराक्रमी, सुन्दर, बुद्धिमान पुत्र की प्राप्ति के लिए आहुति दी. जिसके फल स्वरुप उन्हें एक पुत्र प्राप्त हुआ जिसका नाम “धृष्टद्युम्न” रखा गया. तभी ईश्वर ने राजा ध्रुपद को प्रसन्न हो कर एक पुत्री भी वरदान स्वरुप मांगने के लिए कहा. जिससे की राजा ध्रुपद क्रोधित हो गए लेकिन ईश्वर की आज्ञा का पालन करना उनका कर्तव्य था.

जब द्रोपती का जन्म बना उसके लिए अभिशाप

When Draupadi’s birth became a curse for her: ईश्वर की आज्ञा के अनुसार राजा ध्रुपद ने पुत्री प्राप्ति के लिए हवन में आहुति देते हुए कहा की मुझे एक ऐसी पुत्री दो जिसके जीवन में सदैव कष्ट हो, पीड़ा हो, उसका चरित्र सदैव साफ़ हो लेकिन फिर भी वह अपवित्र हो, शक्तिशाली और इस दुनिया की सबसे सुन्दर पुत्री हो मेरी, वो हमेशा दूसरों को बल प्रदान करे, मेरी पुत्री के साथ हमेशा अन्याय हो, रानी होते हुए भी दासजीवन जिए. इस समाज में उसे हमेशा ठुकराया जाये और उसके चरित्र पर उंगलि उठायी जाये। ये सारे वरदान राजा ध्रुपद ने अपनी पुत्री के लिए मांगे और तभी अग्नि से निकली एक रूपवती कन्या जिसे यज्ञसेनी नाम दिया गया. ध्रुपद ने अपनी बेटी को द्रोपदी नाम दिया और उसे अपनाने से ठुकरा दिया। ये भी एक बड़ा कारण बना द्रौपदी का भरी सभा में अपमान होने और चीर-हरण होने का जिसेक बाद महाभारत का आरम्भ हुआ.

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