रीवा। रीवा राज्य आजादी से पहले ही जनता के आधीन हो गया था। इसके जो कुछ तथ्य मिलते है उसके तहत महाराज गुलाब सिंह लगातार ब्रिटिश सरकार का विरोध कर रहे थें। जिसके चलते 31 जनवरी 1946 को उन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा राज्याच्युत कर दिया गया और युवराज मार्तण्ड सिंह को रीवा राज्य का शासक बनाये जाने की घोषणा की गई। महाराज मार्तण्ड सिंह का राजतिलक बसन्त पंचमी 6 फरवरी 1946 को किला रीवा के राघव महल में हुआ। दरबार में महाराज मार्तण्ड सिंह ने यह घोषणा किए कि शासन व्यवस्था में जनता का हाथ रहेगा और उनका निजी व्यय राजकीय बजट से अलग रखा जायेगा। साथ ही सर आल्लादी कृष्णास्वामी अय्यर की अध्यक्षता में रीवा राज्य का संविधान बनाने के लिए एक समिति के निर्माण की घोषणा की गई, लेकिन कृष्णास्वामी अय्यर उपलब्ध नही हो पाए। ऐसे में 25 सितम्बर 1946 को एक आदेश फिर जारी हुआ। जिसमें हरीसिंह गौड़ की अध्यक्षता में ‘‘संविधान समिति’’ का गठन किया गया। संविधान समिति में इन्द्र बहादुर सिंह, नर्मदा प्रसाद सिंह, पं0 शम्भूनाथ शुक्ल, कप्तान अवधेश प्रताप सिंह, कर्नल शमसुद्दीन, देवीशंकर खण्डेलवाल एवं अवधबिहारी लाल इस समिति के सदस्य तथा आर. कौशलेन्द्र राव एवं राघवेन्द्र प्रसाद क्रमशः सचिव एवं उपसचिव नियुक्त किये गये।
1947 में घोषित हुआ था रीवा राज्य का संविधान
बनाई गई रीवा राज्य की संविधान समिति ने अपना कार्य 2 अक्टूबर 1946 को प्रारंभ कर, प्रतिवेदन 26 मई 1947 को रीवा दरबार के समक्ष प्रस्तुत किया। गौड़ समिति के प्रतिवेदन पर विचार करने पर 7 अगस्त 1947 को महाराज रीवा ने रीवा राज्य के नये संविधान की घोषणा की। यह संविधान संसदात्मक शासन प्रणाली के सिद्धान्तों पर आधारित था। उसमें द्विसदनीय व्यवस्थापिका और महाराज को सलाह देने के लिए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक मंत्रिमण्डल की व्यवस्था थी। संविधान में यह भी कहा गया था कि, प्रधानमंत्री को व्यवस्थापिका के बहुमत का समर्थन प्राप्त होना चाहिए। संविधान के कुछ अन्य प्रावधानों से स्पष्ट है कि उस समय राज्य में इलाकेदारों और पवाईदारों का बहुत प्रभाव था, क्योंकि संविधान में यह कहा गया था कि व्यवस्थापिका के उच्च सदन में 50 प्रतिशत स्थान इलाकेदारों और पवाईदारों के प्रतिनिधियों के लिए सुरक्षित रहेंगे।
ऐसे बना विंध्य और फिर मध्यप्रदेश
जो तथ्य मिलते है उसके तहत 4 अप्रैल 1948 को बघेलखण्ड और बुन्देलखण्ड की 35 रियासतों को मिलाकर एक नई इकाई ‘‘विन्ध्य प्रदेश’’ के निर्माण की विधिवत घोषणा की गई। रीवा के महाराज मार्तण्ड सिंह विन्ध्य प्रदेश के राज प्रमुख बनाये गये। कप्तान अवधेश प्रताप सिंह के नेतृत्व में मंत्रिमण्डल का गठन हुआ। राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिश के अनुसार 1 नवम्बर 1956 को विन्ध्य प्रदेश, भोपाल, महाकौशल एवं मध्य भारत क्षेत्र को मिलाकर वर्तमान मध्यप्रदेश का निर्माण हुआ।