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Makar Sankranti 2024: जानें मकर संक्रांति के धार्मिक और वैज्ञानिक कारण

makar sankranti

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मकर संक्रांति को पूरे देश में अलग-अलग नामों से जाना जाता है. कहीं पर इसे मगही कहते हैं तो कहीं माघे संक्रांति। उत्तर भारत में इसे मकर संक्रांति या खिचड़ी के नाम से जाना जाता है. गुजरात में उत्तरायण, पंजाब में लोहड़ी, उत्तराखंड में उत्तरायणी और केरल में पोंगल के नाम से जाना जाता है.

Makar Sankranti 2024: मकर संक्रांति इस वर्ष 15 जनवरी को मनाई जाएगी। इस दिन सभी ग्रहों के राजा सूर्य देव धनु राशि से निकल कर मकर राशि में प्रवेश करेंगे। सूर्य का एक राशि से दूसरी तक जाना संक्रांति कहलाता है. यह समय सौर मास कहलाता है. वर्ष भर में कुल 12 संक्रांतियां होती हैं लेकिन मकर संक्रांति का महत्व सबसे ज्यादा है. पौष मास में जब सूर्यदेव उत्तरायण होकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तो इस अवसर को देश के अलग-अलग राज्यों में भिन्न-भिन्न नामों से त्योहार के रूप में मनाया जाता है.

मकर संक्रांति का मुहूर्त

Makar Sankranti Muhurt: 15 जनवरी की सुबह 6 बजकर 47 मिनट से शुरू होकर शाम 5 बजकर 40 मिनट तक ही इसका मुहूर्त है. सूर्य का उदयकाल 15 जनवरी को पड़ रहा है, इसलिए 15 जनवरी को ही मकर संक्रांति मनाई जाएगी।

Why is Makar Sankranti celebrated: भारतीय पंचांग की सभी तिथियां चंद्रमा की गति के आधार पर निर्धारित की गई हैं, लेकिन मकर संक्रांति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है. इस दिन स्नान-दान करना शुभ माना जाता है. साथ ही खरमास का समापन हो जाता है और एक मास से जिन शुभ कार्यों पर रोक लगी होती है वो फिर से शुरू हो जाते हैं.

मकर संक्रांति का वैज्ञानिक महत्व

Scientific importance of Makar Sankranti: सभी ग्रहों के राजा सूर्य देव 12 राशियों को प्रभावित करते हैं, लेकिन कर्क व मकर राशि में इनका प्रवेश अत्यंत महत्वपूर्ण है. इन दोनों राशियों में सूर्य देव का प्रवेश छः माह के अंतराल में होता है. वैज्ञानिक नजरिए की बात करें तो पृथ्वी की धुरी 23.5 अंश झुकी होने के कारण सूर्य छः माह तक पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध के निकट होता है और शेष छः माह दक्षिणी गोलार्द्ध के निकट होता है.

मकर संक्रांति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्द्ध से निकट यानी उत्तरी गोलार्ध से अपेक्षाकृत दूर होता है, जिसकी वजह से उत्तरी गोलार्द्ध में रातें बड़ी और दिन छोटा होता है. इसी समय सर्दी का मौसम होता है. वहीं मकर संक्रांति से सूर्य का उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आना शुरू हो जाता है, इसलिए इस दिन से उत्तरी गोलार्द्ध में रातें छोटी और दिन बड़े होने लगते हैं साथ ही ठंड भी कम होने लगती है.

मकर संक्रांति का धार्मिक महत्व

Religious importance of Makar Sankranti: कहा जाता है कि महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था. जब वे बाणों की शैया पर लेटे हुए थे, तब वे उत्तरायण के दिन की प्रतीक्षा कर रहे थे. उन्होंने मकर संक्रांति की तिथि पर ही अपना देह त्यागा था. ऐसा माना जाता है कि जिन लोगों की मृत्यु मकर संक्रांति के दिन होती है उनकी आत्मा सीधे देवलोक चली जाती है, उसे नर्क के द्वार पर नहीं भेजा जाता है. साथ वह पुनर्जन्म के चक्र से छुटकारा पा जाता है.

ऐसा भी बताया जाता है कि उत्तरायण के दिन ही गंगा जी राजा भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं. महाराज भगीरथ ने इसी दिन अपने पूर्वजों के तर्पण किया था. इसलिए कहा जाता है कि मकर संक्रांति में गंगा स्नान, सूर्य की उपासना और दान करने से पुण्य होता है. मकर संक्रांति के दिन चावल, तिल, और गुड़ से बनीं चीजें खाई जाती हैं जो कि स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होती हैं.

कई नामों से जानी जाती है

Different names of Makar Sankranti: मकर संक्रांति को पूरे देश में अलग-अलग नामों से जाना जाता है. कहीं पर इसे मगही कहते हैं तो कहीं माघे संक्रांति। उत्तर भारत में इसे मकर संक्रांति या खिचड़ी के नाम से जाना जाता है. गुजरात में उत्तरायण, पंजाब में लोहड़ी, उत्तराखंड में उत्तरायणी और केरल में पोंगल के नाम से जाना जाता है.

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