इजराइल-ईरान युद्ध का भारत पर असर: तेल की कीमतों से लेकर व्यापार तक खतरा, भारत की तटस्थ रणनीति बरकरार

Impact of Israel-Iran war on India: शुक्रवार, 13 जून 2025 को इजराइल ने ईरान पर अब तक का सबसे बड़ा हमला (Israel Strikes Iran) किया, जिसमें तेहरान और इस्फहान के पास सैन्य ठिकानों और परमाणु सुविधाओं को निशाना बनाया गया। इजराइली वायुसेना (IDF) ने “ऑपरेशन डेज ऑफ रिकनिंग” के तहत सटीक हमले किए, जिसमें ईरान की S-300 वायु रक्षा प्रणाली और मिसाइल उत्पादन केंद्र क्षतिग्रस्त हुए। इस हमले में ईरान के शीर्ष सैन्य कमांडरों सहित कम से कम 12 लोगों की मौत की पुष्टि हुई। ईरान ने इस हमले को “युद्ध की घोषणा” (Iran Declares War) करार देते हुए जवाबी कार्रवाई की चेतावनी दी। ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खामेनेई ने कहा, “इजराइल को इसकी कीमत चुकानी होगी।” ईरान ने शुक्रवार रात इजराइल पर 50 से अधिक ड्रोन और क्रूज मिसाइलें (Iran Missile Attack) दागीं, जिनमें से ज्यादातर को इजराइली वायु रक्षा ने नष्ट कर दिया। इस बढ़ते संघर्ष (Israel-Iran War) का भारत पर व्यापक असर पड़ने की आशंका है।

भारत को क्या नुकसान हो सकता है?

यह युद्ध भारत की अर्थव्यवस्था (Indian Economy) और सामरिक हितों को कई मोर्चों पर प्रभावित कर सकता है। सबसे बड़ा खतरा तेल की कीमतों (Oil Price Surge) में उछाल का है। भारत अपनी 85% तेल जरूरतों के लिए आयात पर निर्भर है, जिसमें सऊदी अरब, इराक, यूएई और कतर जैसे खाड़ी देश प्रमुख आपूर्तिकर्ता हैं। ईरान वैश्विक तेल उत्पादन का 4% हिस्सा देता है, और यदि इजराइल इसके तेल क्षेत्रों (Iran Oil Fields) को निशाना बनाता है, तो ब्रेंट क्रूड की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल पार कर सकती हैं। इससे भारत में पेट्रोल-डीजल की कीमतें (Fuel Price Hike) बढ़ेंगी, जिससे परिवहन, उत्पादन और उपभोक्ता वस्तुओं की लागत में वृद्धि होगी। विशेषज्ञों का अनुमान है कि तेल की कीमत में 10 डॉलर की बढ़ोतरी से भारत का आयात बिल 12-13 बिलियन डॉलर बढ़ सकता है, जिससे चालू खाता घाटा (Current Account Deficit) 0.3% तक बढ़ेगा।

प्रभावित होने वाले क्षेत्र

  1. ऊर्जा क्षेत्र (Energy Sector): तेल और गैस की कीमतों में वृद्धि से तेल विपणन कंपनियां जैसे बीपीसीएल, एचपीसीएल और आईओसी प्रभावित होंगी। साथ ही, भारत का कतर से आयात होने वाला एलएनजी (LNG Imports) भी होर्मुज जलडमरूमध्य (Strait of Hormuz) के बंद होने से रुक सकता है, जो दुनिया का सबसे महत्वपूर्ण तेल चोकपॉइंट है।
  2. शिपिंग और निर्यात (Shipping and Exports): लाल सागर और स्वेज नहर (Red Sea Crisis) पहले से ही हूती हमलों के कारण बाधित हैं। युद्ध के बढ़ने से जहाजों को केप ऑफ गुड होप के लंबे रास्ते से जाना पड़ेगा, जिससे शिपिंग लागत 15-20% बढ़ जाएगी। इससे भारत के पेट्रोलियम उत्पाद, कपड़ा, और इंजीनियरिंग सामान के निर्यात (Indian Exports) की प्रतिस्पर्धात्मकता कम होगी। अगस्त 2024 में भारत के निर्यात में 9% की गिरावट इसका सबूत है।
  3. शेयर बाजार (Stock Market Volatility): युद्ध के कारण वैश्विक अनिश्चितता बढ़ने से सेंसेक्स और निफ्टी (Sensex and Nifty) में भारी गिरावट देखी गई। 3 अक्टूबर 2024 को सेंसेक्स 2% से अधिक गिरा था, और शुक्रवार को भी बाजार में जोखिम-विरोधी मूड (Risk-Off Mood) दिखा। ऑटोमोबाइल, एविएशन, पेंट, टायर, और सीमेंट जैसे क्षेत्र तेल कीमतों के कारण सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे।
  4. प्रवासी भारतीय (Indian Diaspora): खाड़ी देशों में 90 लाख भारतीय काम करते हैं, जो प्रतिवर्ष अरबों डॉलर की रेमिटेंस (Remittances) भेजते हैं। युद्ध के बढ़ने से उनकी नौकरियां और सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है।
  5. चाबहार बंदरगाह (Chabahar Port): भारत का ईरान में चाबहार बंदरगाह प्रोजेक्ट (India-Iran Project) पहले से ही अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण देरी का शिकार है। युद्ध के कारण यह पूरी तरह रुक सकता है, जिससे अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक भारत की कनेक्टिविटी प्रभावित होगी।
  6. सोने की कीमतें (Gold Prices): अनिश्चितता के कारण सोने की कीमतें 4 अक्टूबर 2024 के 75,694 रुपये प्रति 10 ग्राम से बढ़कर 30 अक्टूबर को 81,850 रुपये तक पहुंच गईं। यह रुझान जारी रह सकता है।

इजराइल ईरान युद्ध में भारत की स्थिति

भारत ने इस संघर्ष में तटस्थ रुख (Non-Aligned Approach) अपनाया है। विदेश मंत्रालय ने 13 जून 2025 को बयान जारी कर दोनों पक्षों से संयम बरतने और बातचीत के जरिए समाधान की अपील की। भारत के इजराइल के साथ रक्षा, प्रौद्योगिकी और कृषि (India-Israel Ties) में मजबूत रिश्ते हैं। भारत इजराइल से 42% हथियार आयात करता है और 2023 के हमास हमले के बाद उसका समर्थन भी किया। वहीं, ईरान के साथ भारत के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध (India-Iran Relations) हैं, और चाबहार बंदरगाह के जरिए सामरिक साझेदारी है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत दोनों देशों के साथ संतुलन बनाए रखेगा, क्योंकि किसी एक का पक्ष लेना भारत के हितों को नुकसान पहुंचा सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी की बैठक में स्थिति की समीक्षा की और क्षेत्रीय स्थिरता पर जोर दिया।

वैश्विक परिदृश्य और चुनौतियां

इजराइल के हमले ने वैश्विक तनाव (Global Tensions) को बढ़ा दिया है। अमेरिका ने इजराइल का समर्थन (US Backs Israel) करते हुए ईरान को “गंभीर परिणाम” की चेतावनी दी, जबकि रूस और चीन ने ईरान का समर्थन (Russia-China Support Iran) किया। यदि यह युद्ध क्षेत्रीय स्तर पर फैला, तो भारत के लिए सामरिक और आर्थिक चुनौतियां (Strategic Challenges) बढ़ जाएंगी। भारत को अपनी तेल आपूर्ति सुरक्षित करने, निर्यात बढ़ाने और प्रवासियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कूटनीतिक प्रयास तेज करने होंगे।


इजराइल-ईरान युद्ध (Middle East Conflict) भारत के लिए एक जटिल चुनौती है। तेल की कीमतों, व्यापार मार्गों और शेयर बाजार पर इसका तत्काल असर दिख रहा है। भारत की तटस्थ नीति (Balanced Diplomacy) और मजबूत विदेशी मुद्रा भंडार (Forex Reserves) इसे अल्पकालिक झटकों से बचा सकते हैं, लेकिन लंबे समय तक युद्ध चलने से आर्थिक विकास (Economic Growth) पर दबाव बढ़ेगा। भारत को इस संकट में शांति और स्थिरता के लिए सक्रिय भूमिका निभानी होगी

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