Aatm Manthan :आप कितने भी कर्मठ हों लेकिन एक वक़्त वो भी आयेगा जब आपको थकान महसूस होगी और आपको लगेगा कि अब हम आराम करें और कोई हमारी सेवा करे हालांकि ये सुख सबको नहीं मिलता कि जब हमारा जी न चले या हम थक गए हों तो कोई अपना आकर हमसे कहे कि अब आप बैठो आराम करो, हम आपकी सेवा करेंगे । अब काम करने की बारी हमारी है। कहने को तो ये छोटी सी बात है लेकिन उन लोगों के लिए बहोत बड़ी बात है जो ,जी न चलने के बावजूद बहोत मजबूरी में काम करते हैं ।
हमेशा हम क्यों नहीं रह पाते एक्टिव :-
हम जब तक ही एक्टिव रहते हैं या चुस्ती फुर्ती से अपना काम कर पाते हैं जब तक हमारा स्वास्थ साथ देता है लेकिन जब स्वास्थ्य खराब हो जाता है तब हम उस स्थिति में पहुंच जाते हैं, जब हम अपना काम ,अपनी ज़िम्मेदारी ही ठीक से नहीं उठा पाते ,ऐसे में हम किसी और की ज़िम्मेदारी कैसे उठा पाएंगे तब हमें किसी ऐसे सहारे की ज़रूरत होती है। जिसके हम कोई काम न करें मगर वो हमारे सब काम करे। जो आजकल बहोत कम ही देखने को मिलता है।
क्यों कोई हमारी ज़िम्मेदारी उठाने को तैयार नहीं :-
जाने इसके पीछे क्या वजह है कि आज हमारे बच्चे भी उस वक़्त हमारी ज़िम्मेदारी उठाने से मना कर देते हैं जब हम उनके किसी काम को करने के लायक़ नहीं बचते ये वो वक़्त होता है जब हमें उनकी बहोत ज़रूरत होती है पर उन्हें हमारी ज़रा भी ज़रूरत नहीं होती शायद ये हमारी परवरिश का ही कुसूर है कि वो हमारे सामने खुल के जी नहीं पाते ,उनके लाइफ स्टाइल के बारे में या तो हम जानते नहीं या फिर वो हमें पसंद नहीं इसलिए बच्चे इसे हमसे छुपा ले जाते हैं और बाहर अपनी पसंद की ज़िंदगी जीते हैं और हमारे सामने हमारे पसंद की यानी हमें धोखा देना सीख जाते हैं इसलिए चाह कर भी वो हमें उतना वक़्त नहीं दे पाते ,जितना उन्हें देना होता है इस डर से कहीं उनका ये राज़ न खुल जाए ।
हमारी ज़िद ही तो नहीं है ज़िम्मेदार:-
अपने बच्चों को अच्छे संस्कारों देने के चक्कर में कभी- कभी हम ज़िद पर अड़ जाते हैं और अपने ही मासूम बच्चों को दुख देते हैं ,जो वो चाहते हैं हम वो उन्हें नहीं देते, ये जानते हुए भी कि हर बार बच्चों को आज़ादी देना बुरा नहीं होता ,क्योंकि इससे हमें उनकी पसंद, नापसंद का पता चलता है और जब बेझिझक होकर बच्चे हमारे सामने अपनी पसंद के काम करते हैं तो हम उन्हें सही ग़लत का फर्क भी बता पाते हैं , ग़लत काम करने की आदत बनने से पहले। छोटी उम्र में उन्हें सही रास्ता दिखाना आसान भी होता है । और सही ग़लत की पहचान होने के बाद वो ख़ुशी ख़ुशी हमारी सेवा करने ,हमारा उस तरह ख्याल रखने के लिए तैयार हो जाते हैं जैसे हमने उनका रखा था ,क्योंकि वो हमें अपना अभिभावक ही नहीं अपना पथ प्रदर्शक गुरु भी मानते हैं, जिसने आज उन्हें क़ाबिल बनाया है , उस जगह उस मुक़ाम पर पहुंचाया जहां वो हैं ।
फिर आखिर हम क्यों अपने ही बच्चों को उनकी पसंद की ज़िंदगी नहीं दे पाते, ग़ौर ज़रूर करियेगा इस बात पर फिर मिलेंगे आत्म मंथन की अगली कड़ी में धन्यवाद।