अगर कोई पीछे से 2 बार नाम पुकारे तो पलटना मत वरना…..

the urban legends

हर देश और हर शहर के अपने कोई न कोई अर्बन लेजेंडस (शहरी किंवदंती) होते है, लेकिन कुछ अर्बन लेजेंडस ऐसे होते हैं जो हर जगह मशहूर होते हैं क्यूंकी वे सबसे शक्तिशाली और सबसे खतरनाक होते हैं। आज हम ऐसे ही कुछ शहरी किंवदंती के बारे मे बताएंगे ताकी यदि कभी आपका उनसे गलती से भी सामना हो जाए तो आप पतली गली से निकल जाएं क्यूंकी अगर वो एक बार आपके पीछे पड़ गए तो फिर वो आपको अपने साथ ही ले जाएंगे।

“Bramhrakshas” (ब्रह्मराक्षस)

“ब्रह्मराक्षस” आप सभी ने कहीं न कहीं ये नाम जरूर सुना होगा लेकिन अगर नहीं सुना तो हम बताते हैं “ब्रम्हराक्षस” एक ब्राह्मण की आत्मा होती है, ऐसा ब्राह्मण जिसे तमाम विद्या और मंत्रों का ज्ञान होता है लेकिन मृत्यु के वक्त उसकी कोई इच्छा अधूरी रह गई हो तो ऐसे ब्राह्मणों की आत्मा ब्रह्मराक्षस के रूप में भटकती रहती है, कुछ मान्यताएं तो ऐसी भी है की जब एक ज्ञानी ब्राह्मण अपने जीवनकाल में अपने ज्ञान का अपने मंत्रों का गलत इस्तेमाल करता है तो वह “ब्रम्हराक्षस” बन जाता हैं। ये आत्मा किसी शांत खंडहर जगह और पीपल के वृक्षों मे निवास करते हैं, पर यदि किसी ने उनके स्थान पर शराब, मांस का शेवन किया या फिर उनके निवास पर पेशाब कर दिया तो वे क्रोधित हो जाते हैं, और आपका पीछा तब तक नहीं छोड़ते जब तक आपकी मृत्यु न हो जाए. क्यूंकी वे एक ब्राह्मण की आत्मा है तो उनके सामने कोई भी मंत्र कारगर नहीं है। कई मामले में ये जान ले कर ही शांत होते हैं, इनसे पीछा छुड़वाने की हिम्मत किसी भी तांत्रिक या बाबा में नहीं होती है।

“Karnpisachani”(कर्णपिसाचनी)

“कर्णपिसाचनी” एक ऐसी महिला पिसाचनी है, जो वासना की प्राप्ति और भूत-भविष्य की तमाम जानकारी प्राप्त करने के लिए साधक द्वारा सिद्ध की जाती है, या फिर जानबूज कर किसी को सौंपी जाती है। ये पिसाचनी सिद्धि द्वारा प्राप्त की जाती है, और हर बड़े तांत्रिक के पास ये सिद्धि अवश्य होती है। लेकिन ये भयानक तब हो जाती है जब एक आम आदमी आधे अधूरे ज्ञान के साथ केवल वासना के लिए इसे सिद्ध करने की कोशिश करते हैं। ये पिसाचनी माँ,बहन, प्रेमिका 3 रूपों में सिद्ध की जाती है, लेकिन आम आदमी इसे अक्सर प्रेमिका के रूप मे सिद्ध करता है, लेकिन उनके पास केवल इसे सिद्ध करने का ज्ञान तो होता है, और “कर्णपिसाचनी” एक ऐसी आत्मा है जिसे काबू करना सिद्ध करने से ज्यादा मुश्किल है और यहीं पे आम साधक मात खा जाता है, जिसके बाद कर्णपिसाचनी को साधक के हिसाब से नहीं बल्कि साधक को कर्णपिसाचनी के हिसाब से चलना पड़ता है। जिसके बाद इसका परिणाम साधक की बयावह मौत होती है. कर्णपिसाचनी से पीछा छुड़वाने का एक ही रास्ता है की इसे किसी दूसरे साधक या तांत्रिक को सौंप दिया जाए।

“Kacha Kalwa” (कच्चा कलवा)

“कच्चा कलवा” एक छोटे बच्चे की आत्मा होती है एक ऐसे बच्चे की आत्मा जिसकी उम्र 2 साल के अंदर होती है। अब आप सोच रहे होंगे की ऐसे तो कई बच्चे होंगे जिनकी मृत्यु 2 साल के अंदर हो जाती है तो क्या वे सब कच्चा कलवा बन जाते हैं, तो जवाब है नहीं इसके पीछे एक कारण होता है। हिन्दू धर्म में 2 साल के अंदर से कम उम्र के बच्चों को मृत्यु के बाद दफनाया जाता है. और यहीं से कुछ बच्चों को तांत्रिक द्वारा कच्चा कलवा बनाया जाता है, जहां तांत्रिक उन बच्चों के दफनाए शव को बाहर निकालते हैं फिर तांत्रिक क्रियाओं द्वारा उनकी आत्मा की सिद्धि करते हैं तब जा कर वो बच्चा कच्चा कलवा बनता है। क्यूंकी ये आत्मा एक बच्चे की होती है, इस लिए ये बड़ी ही शरारती होती है, और इसे लोगों को परेशान करने से ज्यादा उन्हे जान से मारने मे मज़ा आता है। इस लिए कई ऐसे लोग हैं जो तांत्रिकों के पास अपने बुरे मंसूबे ले कर जाते हैं और मासूम लोग के पीछे कच्चे कलवे को छोड़ देते हैं।

“chalawa”(छलावा)

“छलावा” एक ऐसी एंटीटी है जिसका कोई निश्चित स्थान नहीं होता है, यह आपको सड़क पर चलते किसी खाली जगह पर, पहाड़ों में, पानी वाली जगहों में कहीं भी मिल सकता है, लेकिन इसे पहचानना मुश्किल है क्युकी ये कई रूप ले सकता जैसे- खरगोश, आम इंसान और दूसरे जानवर लेकिन इसका मकसद एक है वो है आपको छलना और किसी भी तरीके से आपकी जान लेना, अगर ये इंसानी रूप में है तब तो इसकी पहचान की जा सकती है क्युकी ये नाक के बल बोलता है, और ये ऐसी जगह पर मिलेगा जहां आस पास लोग न हो रास्ता पूरा सुनसान हो तब ये अपना खेल खेलता है। इससे बचने का एक ही उपाय है वो है इसे इगनोर करना क्युकी ये 2 बार आवाज़े लगाता है अगर अपने दोनों बार इगनोर किया और पीछे पलट कर नहीं देखा तब तो आप सेफ हैं लेकिन अगर अपने पीछे पलट कर देख लिया तब तो ये आपको छलेगा और आपको मार देगा। तो याद रहे अगर आप किसी सुनसान जगह पर जा रहे हैं और किसी ने 2 बार आपको पीछे से बुलाया तो आपको तब तक रिस्पॉन्स नहीं करना है जब तक तीसरी बार आवाज न आए।

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