पंख होते तो उड़ आती रे…. गाने में मोरनी सी थिरकने वाली संध्या क्या पहले नाचना नहीं जानती थी !

SANDHYA (1)

Biography Of Actress Sandhya :’पंख होते तो उड़ आती रे. ..’ गाना हो या ‘झनक झनक पायल बाजे’ फिल्म संध्या के बेमिसाल डांस के लिए जानी जाती है पर क्या आप जानते हैं की गुजराती ,मराठी और हिंदी फिल्मों में अपने अभिनय और नृत्य से ख़ास जगह बनाने वाली एक्ट्रेस संध्या जब वी शांताराम के पास ऑडिशन देने पहुँची तो वी शांताराम ने उन्हें देखते ही सलेक्ट कर लिया था क्योंकि उनके पिता जी भी थिएटर से जुड़े थे इसलिए उन्होंने भी बचपन से एक्टिंग की थी और वो भी मराठी और गुजराती दोनों में पारंगत थीं, उनका असली नाम विजया देशमुख था पर वी शांताराम ने उनके चेहरे में सुहानी शाम सा सौंदर्य देखा इसलिए नाम दिया संध्या लेकिन फिल्म की शूटिंग को आगे बढ़ाना पड़ा क्योंकि संध्या को बहोत अच्छा डांस करना नहीं आता था तब वी शांताराम ने ही उन्हें डांस की ट्रेनिंग दिलवाई थी वी. शांताराम ने संध्या को  मराठी फिल्म ‘अमर भूपाली’ के लिए कास्टिंग करते समय चुना था।

संध्या ने वी शांताराम की पत्नी के साथ काम किया :-

‘अमर भूपाली ‘ फिल्म के लिए वी शांताराम नए और खूबसूरत चेहरे की तलाश कर रहे थे और इसी फिल्म से 1952 में, संध्या अपने करियर की शुरुआत की थी ,उन्होंने इस फिल्म में एक गायिका की भूमिका निभाई थी। धीरे धीरे संध्या इतना अच्छा डांस करने लगीं कि वी शांताराम ने उनके डांस को केंद्र मानकर ही एक फिल्म बनाने की ठानी ये फिल्म थी ‘झनक झनक पायल बाजे’ और को-एक्टर गोपी कृष्ण से ट्रेनिंग दिलवाई जो कत्थक, भरतनाट्यम नर्तक अभिनेता और आगे चलकर सबसे कम उम्र के नृत्य निर्देशक बने , इस फिल्म के लिए उन्होंने बहोत ज़्यादा खर्च किया इसका सेट वगैरह भी इतना भव्य था कि उन्हें आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा जिसकी वजह से उन्हें अपनी दोनों पत्नियों के ज़ेवर तक बेचने पड़े और इसी वजह से उनकी दूसरी पत्नी जयश्री से उनका मनमुटाव हो गया और दोनों अलग -अलग रहने लगे और कुछ दिनों बाद दोनों ने तलाक़ ले लिया , दूसरी तरफ फिल्म बनकर रिलीज़ हुई तो बॉक्स ऑफिस पर तहलका मच गया इस फिल्म ने चार फिल्मफेयर पुरस्कारों के साथ-साथ ,नेशनल फिल्म अवॉर्ड्स में बेस्ट फीचर फिल्म का पुरस्कार जीता। हर तरफ संध्या की पायल की झंकार गूँज उठी और वी शांताराम के दिल में भी संध्या बस गईं ,और जयश्री से तलाक़ के महज़ चालीस दिन बाद ही वी शांताराम ने संध्या से शादी कर ली ,हालंकि शांताराम के चार बच्चे थे जिनमें जयश्री की बेटी राजश्री भी बड़ी होकर फिल्मों से जुड़ी और खूब नाम कमाया, पर जब संध्या ने शांताराम जी से शादी की तो उनके घर वालों से लेकर फिल्म इंडस्ट्री तक सबने संध्या के साथ बदसुलूकी की ,सबको लगा कि संध्या ने वी शांताराम का घर बर्बाद किया है, इसकी सज़ा संध्या ने खुद अपने आपको दी वो शांताराम के स्टूडियो में ही रहने लगीं उनके परिवार से अलग। कुछ इसी कहानी को बयाँ करती वी शांताराम ने फिल्म बनाई थी , ‘परछाईं’ जिसमें वी शांताराम और उनकी पत्नी जयश्री के साथ संध्या ने खलनायिका का किरदार निभाया था 1953 में अगली फिल्म आई ‘तीन बत्ती चार रास्ता ‘ जिसमें संध्या ने कोकिला नाम की एक ग़रीब लड़की का किरदार निभाया और एक अलग ही चटकीले सौंदर्य में दिखीं । संध्या ने ज़्यादातर शांताराम की ही फिल्मों में काम किया, 1957 की फिल्म ‘दो आंखें बारह हाथ ‘ में  खिलौने बेचने वाली लड़की का दमदार किरदार निभाया। वहीं नवरंग में बेमिसाल अभिनय और नृत्य किया ,फिल्म ‘जल बिन मछली नृत्य बिन बिजली’ में तो उन्होंने सिद्ध कर दिया कि उनके लिए डांस क्या था।

क्यों हुए वी शांताराम संध्या से प्रभावित :-

संध्या, ‘पंख होते तो उड़ आती रे. ..’ , ‘तुम तो प्यार हो सजना…. ‘,‘अरे जा रे हट नटखट …..’ जैसे गानों से लोकप्रिय हुईं उन्होंने 1959 में आई वी. शांताराम की फिल्म ‘नवरंग’ से हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में भी ज़बरदस्त पहचान हासिल की थी. “अरे जा रे हट नटखट” गाने के लिए उन्होंने शास्त्रीय नृत्य सीखा था. दिलचस्प बात ये है कि उस समय कोई कोरियोग्राफर नहीं होता था, गाने में दिखने वाले स्टेप्स खुद संध्या या निर्देशक वी. शांताराम ने तैयार किए थे, वी. शांताराम इस गाने को बहोत ख़ास बनाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने सेट पर असली हाथी और घोड़ों का इंतज़ाम किया था और इन असली जानवरों के बीच संध्या ने बड़ी निडरता से डांस किया था। वो घबराई नहीं, उन्होंने कोई बॉडी डबल भी इस्तेमाल नहीं किया. गाने की शूटिंग से पहले उन्होंने हाथी और घोड़ों से दोस्ती की, उन्हें अपने हाथों से केले और नारियल खिलाए और पानी पिलाया कहते हैं संध्या के इस समर्पण और साहस को देखकर निर्देशक वी. शांताराम बहुत प्रभावित हुए थे। फिर 1961 की फिल्म ‘स्त्री ‘  में अभिनय किया, जो  शकुंतला की कहानी पर आधारित थी जैसा कि महाकाव्य में उल्लेख है कि शकुंतला और उनके पुत्र भरत जंगल में शेरों के बीच रहते थे, इसलिए इस फिल्म में भी शांताराम ने कुछ दृश्यों में असली शेरों को शामिल किया और संध्या ने इसमें भी अपनी बहदुरी का सबूत देते हुए शिद्दत से काम किया वो शेर को क़ाबू करने वाले के पीछे रहकर शेरों के साथ पिंजरे में उतर गयीं और शूटिंग की।

क्या चाहती थीं संध्या :-

संध्या ने ‘सेहरा ‘ जैसी फिल्मों में अपनी अमिट छाप छोड़ी है उनकी आख़िरी प्रमुख भूमिका ‘पिंजरा ‘ में थी जिसमें वो श्री राम लाघू के साथ बहोत ही दमदार किरदार में नज़र आईं थीं हालाँकि ये श्रीराम लागू की पहली फिल्म थी ,जिसके लिए संध्या ने मराठी फिल्म फेयर में बेस्ट एक्ट्रेस का अवॉर्ड जीतकर ,अपने बेमिसाल अभिनय का लोहा मनवाया। मराठी ‘चंदनाची चोली अंग अंग जाली ‘ के लिए भी उन्होंने बेस्ट एक्ट्रेस का अवॉर्ड जीता था ये उनकी अंतिम फिल्म थी लेकिन फिल्म ‘क़रीब’ में भी वो थोड़ी से देर के लिए नज़र आई थीं। अब वो हमारे बीच नहीं हैं 27 सितंबर 1938 को पैदा हुईं संध्या शांताराम , 4 अक्टूबर 2025 को इस दुनिया को छोड़कर चली गईं पर संध्या अपने गुजराती, मराठी और हिंदी फिल्मों में किये नृत्य और हाव भाव के लिए ख़ास तौर पर हमेशा याद आएंगी आप उनके नृत्य और अभिनय को ग़ौर से देखेंगे तो महसूस होगा कि हर ताल पे अंग में बिजली सी थिरकन देने वाली संध्या अगर फिल्म जगत को न छोड़ती तो बहोत आगे जातीं पर शायद अपने आख़री वक़्त में वो बहोत खुश थीं क्योंकि उन्हें बतौर मंज़िल ,शांताराम जी के बच्चों का प्यार मिल गया था।

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