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भारतीय वायुसेना कर रही S-400 से भी उन्नत Air Defense System निर्माण, Golden Dome और Iron Dome को देगा टक्कर

भारतीय वायुसेना (IAF) ने राष्ट्रीय सुरक्षा को अभेद्य बनाने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। वायुसेना एक ऐसी अत्याधुनिक हवाई रक्षा प्रणाली (Air Defense System) विकसित कर रही है, जो न केवल अमेरिका के Golden Dome और इजरायल के Iron Dome जैसे विश्व-प्रसिद्ध रक्षा तंत्रों को चुनौती देगी, बल्कि रूस के S-400 मिसाइल सिस्टम की क्षमताओं को भी पीछे छोड़ देगी। यह जानकारी एक प्रमुख समाचार स्रोत के हवाले से सामने आई है। यह नई प्रणाली भारत को वैश्विक स्तर पर हवाई रक्षा के क्षेत्र में अग्रणी बनाने का वादा करती है।

ऑपरेशन सिंदूर से मिली प्रेरणा

इस महत्वाकांक्षी परियोजना की नींव 9 मई 2025 को ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पड़ी, जब भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान की ओर से किए गए हवाई हमलों को नाकाम कर अपनी रक्षा क्षमताओं का लोहा मनवाया। इस ऑपरेशन में वायुसेना ने अपनी मौजूदा तकनीकों और रणनीतियों के दम पर दुश्मन के ड्रोनों और मिसाइलों को प्रभावी ढंग से नष्ट किया। इस सफलता ने न केवल भारत की सैन्य ताकत को प्रदर्शित किया, बल्कि एक ऐसी स्वदेशी रक्षा प्रणाली की आवश्यकता को भी रेखांकित किया, जो भविष्य के जटिल खतरों से निपट सके।

नई प्रणाली की खासियतें

वायुसेना की यह नई हवाई रक्षा प्रणाली आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), मशीन लर्निंग और रियल-टाइम थ्रेट एनालिसिस पर आधारित होगी। यह प्रणाली निम्नलिखित विशेषताओं से लैस होगी:

S-400 से आगे, गोल्डन और आयरन डोम को टक्कर

S-400 मिसाइल सिस्टम, जिसे भारत ने रूस से खरीदा है, अपनी लंबी दूरी और मल्टी-टारगेट ट्रैकिंग क्षमता के लिए जाना जाता है। हालांकि, यह नई प्रणाली S-400 की तुलना में अधिक लचीलापन, तेज प्रतिक्रिया और उन्नत ड्रोन रोधी क्षमताएं प्रदान करेगी। विशेषज्ञों का मानना है कि यह प्रणाली अमेरिका के गोल्डन डोम और इजरायल के आयरन डोम की तुलना में अधिक व्यापक और प्रभावी होगी, क्योंकि यह भारत की भौगोलिक और सामरिक जरूरतों के हिसाब से डिज़ाइन की जा रही है।

DRDO और IAF का संयुक्त प्रयास

इस परियोजना में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) की भूमिका अहम है। DRDO के वैज्ञानिक और इंजीनियर वायुसेना के साथ मिलकर इस प्रणाली के प्रोटोटाइप पर काम कर रहे हैं। सूत्रों के अनुसार, प्रोटोटाइप का पहला परीक्षण अगले कुछ महीनों में शुरू हो सकता है। इस सिस्टम को विकसित करने में भारत की निजी रक्षा कंपनियों और स्टार्टअप्स को भी शामिल किया जा रहा है, जो इसे और नवाचारपूर्ण बनाएगा।

वैश्विक मंच पर भारत की स्थिति मजबूत

इस नई हवाई रक्षा प्रणाली के विकसित होने से भारत न केवल अपनी सीमाओं को और सुरक्षित करेगा, बल्कि वैश्विक रक्षा बाजार में भी एक मजबूत खिलाड़ी के रूप में उभरेगा। यह प्रणाली भारत की स्वदेशी रक्षा तकनीक को प्रदर्शित करेगी और अन्य देशों के लिए एक आकर्षक निर्यात विकल्प बन सकती है। रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि यह प्रणाली भारत को हवाई रक्षा के क्षेत्र में विश्व की अग्रणी शक्तियों में शामिल कर देगी।

भविष्य की योजनाएं

वायुसेना और DRDO इस प्रणाली को 2030 तक पूरी तरह ऑपरेशनल करने की योजना बना रहे हैं। इसके साथ ही, इसे नौसेना और थलसेना की रक्षा जरूरतों के साथ एकीकृत करने की भी तैयारी है, ताकि भारत की त्रि-सेवा रक्षा प्रणाली को और मजबूती मिले। इस प्रणाली के विकास में साइबर सुरक्षा और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध की क्षमताओं को भी शामिल किया जा रहा है, जो इसे भविष्य के हाइब्रिड युद्धों के लिए तैयार करेगा।

भारतीय वायुसेना की यह नई हवाई रक्षा प्रणाली भारत की सैन्य शक्ति और तकनीकी प्रगति का प्रतीक है। ऑपरेशन सिंदूर की सफलता के बाद शुरू हुई इस परियोजना से भारत न केवल अपनी रक्षा क्षमताओं को बढ़ाएगा, बल्कि वैश्विक मंच पर एक नई मिसाल कायम करेगा। यह प्रणाली भारत को 21वीं सदी के युद्धक्षेत्र में अभेद्य बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

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