One Nation One Election: वन नेशन वन इलेक्शन को मोदी सरकार ने मंजूरी दे दी है। मगर अभी इसकी असल परीक्षा बाकी है। इसे अभी संवैधानिक प्रक्रियाओं से गुजरना है. संसद में इसकी परीक्षा होगी, जिसमें पास होने के लिए इसे 2 तिहाई बहुमत चाहिए. फिलहाल सरकार की ओर से तो यही कहा जा रहा है कि हम इसी टर्म में इसको लागू करेंगे.
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आपको बता दे कि ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ प्रस्ताव को मोदी कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है. इसके लिए एक कमेटी गठित की गई थी. पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद चेयरमैन थे. कमेटी ने अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी थी. केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि कैबिनेट ने कमेटी की रिपोर्ट स्वीकार कर ली है. प्रस्ताव को मंजूरी तो मिल गई है लेकिन अभी इसकी असल परीक्षा बाकी है. इसे अभी संवैधानिक प्रक्रियाओं से गुजरना है. इसे संसद में पास होने के लिए 2 तिहाई बहुमत चाहिए. इतना ही नहीं संविधान में एक दो नहीं बल्कि कई संशोधनों की जरूरत होगी।
फिलहाल सरकार की ओर से तो यही कहा जा रहा है कि हम इसी टर्म में इसको लागू करेंगे. आम सहमति बनाने की कोशिश करेंगे. कमेटी की सिफारिशों पर देश में अलग-अलग मंचों पर चर्चा होगी. नई व्यवस्था में पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव होंगे. दूसरे चरण में स्थानीय चुनाव (पंचायत और निगम) होंगे. ये चुनाव पहले चरण के चुनाव के 100 दिन के भीतर होंगे. खैर ये बातें तो हैं प्रस्ताव की. अब जानते हैं इसे कौन-कौन सी परीक्षाएं देनी हैं. साथ ही ये भी जानते हैं कि सत्ता पक्ष और विपक्ष का इस पर क्या कहना है.
संविधान में 5 संशोधन की जरूरत
संविधान का अनुच्छेद-83
आपको बता दे कि संविधान का अनुच्छेद-83 में लोकसभा और राज्यसभा की अवधि और कामकाज का जिक्र है. यह अनुच्छेद संविधान के भाग-V में अध्याय-II का हिस्सा है.अनुच्छेद 83 (1) के अनुसार, लोकसभा अपनी पहली बैठक की तारीख से पांच साल तक रहेगी. हालांकि, राष्ट्रपति के पास इसे भंग करने की ताकत है.
अनुच्छेद 83(2) के प्रावधान के तहत लोकसभा को पांच साल से पहले भंग किया जा सकता है. ऐसा तब होता है जब राष्ट्रपति को लगता है कि सरकार संविधान के हिसाब काम नहीं कर सकती, जब सत्ताधारी पार्टी बहुमत खो देती है.
इसके अलावा अनुच्छेद 83(3) इमरजेंसी की घोषणा के दौरान लोकसभा का कार्यकाल बढ़ाने की भी अनुमति देता है. एक बार में अधिकतम एक साल का विस्तार हो सकता है.
अनुच्छेद 83(4) राज्यसभा से संबंधित है. इसमें कहा गया है कि इस भंग नहीं किया जा सकता. यह स्थायी निकाय है. इसके एक तिहाई सदस्य हर दो साल में सेवानिवृत्त होते हैं. इस तरह भारतीय संविधान का अनुच्छेद-83 संसद के दोनों सदनों की अवधि को लेकर भूमिका निभाता है.
संविधान में 5 संशोधन ही नहीं इस प्रस्ताव को संसद के दोनों सदनों में परीक्षा देनी होगी. लोकसभा और राज्यसभा में इसे पास होने के लिए दो तिहाई बहुमत की जरूरत होगी. इसके बाद भी रास्ता अभी पूरी तरह साफ नहीं होता है. राज्य विधानसभाओं में इस पर सहमति चाहिए. इसके साथ ही देश के चुनाव आयोग को वन नेशन वन इलेक्शन के लिए चुनावी प्रक्रिया में काफी बदलाव करने होंगे.
कोविंद समिति ने क्या कहा
- साल 1951-52 से 1967 तक लोकसभा और राज्यविधान सभाओं के चुनाव साथ कराए गए थे.
- देश के विधि आयोग ने अपनी 170वीं रिपोर्ट में कहा है कि हर साल और बिना उपयुक्त समय के चुनावों के चक्र को खत्म किया जाना चाहिए.
- हमें पहले की प्रक्रिया का फिर से पालन करना चाहिए, जिसमेंलोकसभा और सभी विधानसभाओं के चुनाव साथ-साथ होते थे.
- संसदीय स्थायी समिति ने 2015 में अपनी 79वीं रिपोर्ट में दो चरणों में साथ-साथ चुनाव कराने की सिफारिश की है.
- इन सभी बातों और तथ्यों को देखते हुए देशहित में एक साथ चुनाव कराना जरूरी है.
केंद्र सरकार के सामने मौजूदा चुनौतियां
आपको बता दे कि प्रस्ताव को तो कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है. मगर, उसके सामने अभी कई चुनौतियां हैं. इसमें सबसे बड़ी चुनौती है दो तिहाई बहुमत. सरकार की ओर से कहा गया है कि 47 पार्टियों में 15 को छोड़कर सभी ने इसका समर्थन किया है. समिति को 21 हजार से ज्यादा प्रतिक्रियाएं मिली थीं. इस विषय पर किस राजनीतिक दल ने क्या कहा है, ये जानने से पहले कोविंद समिति की अहम सिफारिशों पर नजर डालते हैं.
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