Indian History| शिवाजी महाराज और मिर्जा राजा जयसिंह के बीच कैसे थे संबंध

Shivaji Maharaj And Mirza Jai Singh Story In HIndi: इतिहास में शिवाजी महाराज को लेकर कई कहानियाँ प्रचलित हैं, उनमें से ऐसी ही एक कहानी है, शिवाजी महाराज और आमेर के राजा मिर्जा जयसिंह को लेकर, जिसमें राजा जयसिंह पर कई आरोप मढ़े जाते हैं, पर आज आईए जानते हैं, इन कहानियों और किवदंतियों से इतर उनके बीच संबंधों के इतिहास की।

शिवाजी महाराज ने स्वतंत्र मराठा सत्ता की रखी नींव

शिवा जी महाराज ने दक्कन में स्वतंत्र मराठा सत्ता की नींव रखी थी, जिसके कारण उनके युद्ध दक्किनी सल्तनत के सुल्तानों और मुग़ल साम्राज्य से हुए, लेकिन शिवाजी महाराज बार-बार मुग़लों को हराते रहे, यहाँ तक कि औरंगजेब ने जब अपने मामा शाइस्ता खान को दक्कन का वायसराय नियुक्त किया था, यों उसकी भी वहाँ बुरी दुर्गति हुई, इसके अलावा शिवाजी महाराज ने मुग़लों के प्रमुख व्यापारिक केंद्र सूरत की लूट की थी, अफजल खान को भी मारा था।

जब औरंगजेब ने मिर्जा राजा जय सिंह को शिवाजी महाराज के विरुद्ध भेजा

औरंगजेब शिवाजी महाराज को दबाना चाहता था, क्योंकि शिवाजी महाराज उसके दक्षिण अभियान के लिए एक बहुत बड़ा रोरा था, जिसके बाद औरंगजेब ने सबसे अनुभवी जनरल जयसिंह को दक्कन का वायसराय बना कर भेजा, जयसिंह को बहुत अनुभवी माना जाता था, उन्होंने काबुल और बल्ख से लेकर बंगाल तक और सुदूर दक्षिण तक अभियान किया था। दक्षिण जाकर मिर्जा जयसिंह ने शिवाजी महाराज के सारे विरोधियों को साम-दाम-दंड-भेद की नीति से अपनी तरफ मिला लिया, और शिवाजी महाराज पर लगातार दबाव बनाते रहे, जिसके बाद शिवाजी महाराज-मिर्जा राजा जयसिंह के बीच एक संधि हुई, जिसे पुरंदर की संधि कहते हैं। पुरंदर की संधि के बाद शिवाजी महाराज, राजा जयसिंह के साथ बीजापुर अभियान पर भी गए थे, लेकिन बीजापुर के असफल अभियान के बाद, औरंगजेब ने शिवाजी महाराज को आगरा बुलवाया।

जब शिवाजी ने की आगरा यात्रा

मिर्ज़ा राजा जयसिंह के विश्वास पर ही शिवाजी महाराज ने आगरा यात्रा की थी। राम सिंह ने तब शिवाजी महाराज का बार-बार पक्ष लिया था। कुछ रेफ़्रेन्स राम सिंह द्वारा शिवा जी महाराज के आगरा से निकालने में भूमिका की तरफ पर्याप्त इशारा करते हैं। शिवा जी महाराज की असफल आगरा यात्रा का कारण, बादशाह के मामा शाइस्ता खान का परिवार था, जो शिवा जी के विरुद्ध औरंगजेब को बार बार भड़का रहा था, दूसरा बादशाह की बहन थी, जो सूरत का व्यापार भी नियंत्रित करती थी।
जबकि शिवाजी महाराज का पक्ष लेने वालों में तब का मुग़ल वजीर जफ़र खान था।

शिवाजी महाराज ने पत्र लिखकर जताया था शोक


दक्षिण के असफल अभियान और मुगलों की दरबारी राजनीति के बाद औरंगजेब ने राजा जयसिंह को उत्तरभारत लौट आने को कहा, लेकिन वापसी के ही रास्ते में बुरहानपुर में उनकी मृत्यु हो गई, कुछ स्त्रोतों के अनुसार उनकी मृत्यु जहर देने से हुई थी, कहने वाले तो यहाँ तक कहते हैं, संभवतः उन्हें साजिश के तहत दिया गया था। जयसिंह की मृत्यु के बाद शिवाजी महाराज ने उनके पुत्र राम सिंह को पत्र लिखकर शोक जाहिर किया था। मिर्ज़ा राजा को उन्होंने पितृतुल्य कहा था। मारवाड़ के शासक जसवंत सिंह को लिखे गए एक पत्र में लिखकर शिवा जी महाराज ने यह बात कही थी, पहले जयसिंह थे जो मेरे खैरख्वाह थे।

जब छत्रपति शाहू ने लिखा था पेशवा के भाई को पत्र

शिवा जी महाराज और आमेर के शासक मिर्ज़ा राजा जयसिंह की मध्य सम्बन्ध बहुत अच्छे थे, यह परम्परा आगे भी चलती रही। इस बात की पुष्टि एक पत्र से भी होती है, जो शिवाजी महाराज के पोते छत्रपति साहू ने, शाहूजी छत्रपति संभाजी के पुत्र थे। मालवा पर अभियान कर रहे मराठा सरदारों को लिखा था। बाद के दौर पेशवा दफ़्तर और सतारा राजाओं के पत्रों को सम्पादित किया गया था। सुप्रसिद्ध इतिहासकार सर जदुनाथ सरकार ने वहीं से रेफ़्रेन्स दिया अपनी किताब ‘फॉल ऑफ़ मुग़ल एम्पायर’ में, इस पत्र वाली घटना का यह अंश वहीं से उद्धृत है।

क्या लिखा था पत्र में

दरसल जब मराठे मालवा पर अभियान कर रहे थे, तो सवाई जयसिंह जब मालवा के सूबेदार बने, सवाई जयसिंह को इतिहास में जयसिंह द्वितीय भी कहा जाता है, उन्होंने जयपुर की स्थापना की थी, वह मिर्जा राजा जयसिंह के परपोते थे। छत्रपति शाहू ने यह पत्र पेशवा के भाई चीमा जी और मालवा में मराठा सरदारों उदाजी और मल्हारराव होल्कर को पत्र लिखकर यह निर्देशित किया था। ” जयसिंह उज्जैन प्रान्त में आ गया है, दोनों परिवारों के पुराने संबंधों को देखते हुए, मैत्री का व्यवहार करें। अगर जयसिंह मांडू के किले की मांग करें तो दे दिया जाए। “

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