प्रेम को कैसे पहचाने, मिर्ज़ा ग़ालिब की वो चंद लाइनें…

न्याज़िया

मंथन। कहते हैं प्रेम की डगर में ठगी नहीं होती और जहां ठगी होती है वो प्रेम की राह नहीं होती पर अक्सर इस राह में हम खुद को ठगा महसूस करते हैं तो क्या ये प्रेम डगर नहीं ? तो चलिए ज़रा विचार करते हैं ,दरअसल धोखा देना, ठगी करना तिजारत है मोहब्बत नहीं, क्योंकि यहां बराबर का सौदा तो होता ही नहीं पर फिर भी आपको लगे कि आपका महबूब आपसे फरेब कर रहा है तो अपनी सारी मोहब्बत उस पर न्योछावर करते हुए एक बार उसे समझने की कोशिश करें, वो जो चाहता है वो करके देखें क्योंकि जब आपसे आपका महबूब कुछ चाहता है तो ये आपकी मोहब्बत का इम्तहान होता है, लेकिन जब आप अपना सब न्योछावर कर दें और तब भी आपको लगे कि आप छले जा रहे हैं तो ज़ाहिर है ये प्रेम डगर नहीं और अच्छा है कि आप अपनी राह बदल लें और अपने प्यार की भी परख कर लें।

लुत्फ न आए क़ुर्बान होने पे तो

अब ये कैसे जाने कि आप का प्यार ,प्यार ही है कि नहीं, तो मिर्ज़ा ग़ालिब की चंद लाइनें याद कर लीजिए, मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का, उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले, यानि महबूब पे मिट जाना फना हो जाना, यही तो ख्वाहिश होती है। मोहब्बत की अगर वही नहीं तो मोहब्बत कैसी! तो दुखी होना तो लाज़मी है और यहीं निशानी है आपके प्यार में खोट होने की, प्यार वो शेर है जिसमें लोग हर हाल में खुश होते हैं।

क्या है जानना ज़रूरी

जब आप खुद को और अपनी मोहब्बत को पहचान जाते हैं तो फिर कुछ और जानने को बाक़ी नहीं रहता क्योंकि मोहब्बत नाम की चीज़ बार-बार नहीं होती, अगर आपने दिल से किसी को प्यार कर लिया है तो आप किसी को उसकी जगह नहीं दे पाते और जो मिले, जितना मिले आप उससे खुश हो जाते हैं और कहते हैं हां यही प्यार है। ग़ौर ज़रूर करिएगा,फिर मिलेंगे आत्म मंथन की अगली कड़ी में धन्यवाद।

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