धान की बोआई के बाद कैसे करें खरपतवार नियंत्रण, जानें अनुकूल उपाय

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Weed Control: धान की खेती भारत में कृषि का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो लाखों किसानों की आजीविका का आधार है। धान की बोआई के बाद खरपतवार की समस्या एक प्रमुख चुनौती बनकर उभरती है। खरपतवार न केवल फसल के पोषक तत्वों को अवशोषित करते हैं, बल्कि फसल की वृद्धि और उत्पादकता को भी प्रभावित करते हैं।

परंपरागत रूप से, किसान इस समस्या से निपटने के लिए रासायनिक खरपतवारनाशकों का उपयोग करते हैं या निराई-गुड़ाई जैसे श्रम-प्रधान तरीकों का सहारा लेते हैं। हालांकि, इन दोनों विधियों की अपनी सीमाएँ और दुष्प्रभाव हैं। रासायनिक खरपतवारनाशकों का उपयोग मिट्टी की उर्वरता और किसानों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाता है, जबकि निराई में अधिक समय और लागत की आवश्यकता होती है। ऐसे में, खरपतवार नियंत्रण के लिए पर्यावरण-अनुकूल और किफायती उपायों की आवश्यकता है।

रासायनिक खरपतवारनाशकों के दुष्प्रभाव

रासायनिक खरपतवारनाशकों का उपयोग त्वरित और प्रभावी लग सकता है, लेकिन इसके दीर्घकालिक प्रभाव चिंताजनक हैं। ये रसायन मिट्टी में मौजूद लाभकारी सूक्ष्मजीवों को नष्ट कर देते हैं, जिससे मिट्टी की उर्वरता कम होती है। बार-बार रसायनों के उपयोग से मिट्टी का प्राकृतिक संतुलन बिगड़ता है, और यह भविष्य में फसल उत्पादन को प्रभावित करता है। इसके अलावा, रसायनों के छिड़काव से किसानों के स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ता है। त्वचा, श्वसन तंत्र और अन्य स्वास्थ्य समस्याएँ इन रसायनों के संपर्क में आने से उत्पन्न हो सकती हैं। पर्यावरण पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जैसे जल स्रोतों का प्रदूषण और जैव विविधता का ह्रास।

निराई-गुड़ाई की चुनौतियाँ

निराई-गुड़ाई एक परंपरागत और पर्यावरण-अनुकूल विधि है, लेकिन यह श्रम-प्रधान और समय लेने वाली प्रक्रिया है। छोटे और मध्यम स्तर के किसानों के लिए, जो पहले से ही आर्थिक तंगी का सामना करते हैं, निराई के लिए मजदूरों को नियुक्त करना महँगा पड़ता है। इसके अलावा, समय पर मजदूरों की उपलब्धता एक बड़ी समस्या है। ग्रामीण क्षेत्रों में श्रमिकों की कमी और बढ़ती मजदूरी इस विधि को और भी चुनौतीपूर्ण बनाती है।

पर्यावरण-अनुकूल समाधान

खरपतवार नियंत्रण के लिए पर्यावरण-अनुकूल और किफायती उपायों को अपनाकर इन समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। एक प्रभावी तरीका है एकीकृत खरपतवार प्रबंधन (Integrated Weed Management), जिसमें विभिन्न विधियों का संयोजन किया जाता है।

जैविक खरपतवार नियंत्रण: जैविक विधियों में खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए प्राकृतिक उपायों का उपयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए, धान के खेतों में अजोला (Azolla) का उपयोग न केवल मिट्टी की उर्वरता बढ़ाता है, बल्कि खरपतवारों को भी दबाता है।

फसल चक्र और मिश्रित खेती: फसल चक्र अपनाने से खरपतवारों की वृद्धि को नियंत्रित किया जा सकता है। मिश्रित खेती, जैसे धान के साथ दालों या अन्य फसलों की खेती, खरपतवारों को कम करने में मदद करती है।

मल्चिंग: खेत में जैविक मल्च (जैसे, पुआल या हरी खाद) का उपयोग मिट्टी को ढकने और खरपतवारों की वृद्धि को रोकने में प्रभावी है। यह मिट्टी की नमी को भी बनाए रखता है।

यांत्रिक उपकरणों का उपयोग: छोटे पैमाने पर यांत्रिक उपकरण, जैसे हैंड वीडर, निराई को आसान और कम खर्चीला बनाते हैं। ये उपकरण छोटे किसानों के लिए उपयोगी हो सकते हैं।

जैव-खरपतवारनाशक: कुछ प्राकृतिक जैव-खरपतवारनाशक, जैसे नीम आधारित उत्पाद, रासायनिक विकल्पों की तुलना में कम हानिकारक होते हैं।

किसानों के लिए जागरूकता और प्रशिक्षण

खरपतवार नियंत्रण के लिए किसानों को नई तकनीकों और जैविक विधियों के बारे में जागरूक करना आवश्यक है। कृषि विश्वविद्यालयों, गैर-सरकारी संगठनों और सरकारी योजनाओं के माध्यम से प्रशिक्षण और सहायता प्रदान की जा सकती है। सरकार द्वारा जैविक खेती को प्रोत्साहन और सब्सिडी भी इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम हो सकते हैं।

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