लगातार दो चुनाव हार चुके नीतीश कुमार सीएम कैसे बने?

Nitish Kumar Political Career

Bihar Political Crisis Live: नीतीश कुमार (Nitish Kumar) एक बार फिर मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे हैं. 2005 में पहली बार सीएम बने नीतीश कुमार अब तक 8 बार मुख्यमंत्री की शपथ ले चुके हैं और नौवीं बार सीएम पद की शपथ लेने की तैयारी में हैं. सीएम पद की शपथ लेने में नीतीश कुमार का रिकॉर्ड है. उन्होंने सीएम रहते हुए पांचवीं बार इस्तीफा दिया है.

Bihar Politics Latest Update; पिछली बार एनडीए से अलग होकर 9 अगस्त 2022 को राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंपा था. इसके बाद राजद-कांग्रेस के साथ मिलकर महागठबंधन की सरकार बनाई और आज फिर 537 दिनों के बाद इस्तीफा दिया है. नितीश कुमार ने 7 दिन के मुख्यमंत्री से लेकर नौवीं बार के मुख्यमंत्री तक का सफर तय किया है. आज नीतीश कुमार के लिए बहुत तरह की बाते कहीं जा रही हैं. हालांकि, उनका सफर इतना आसान नहीं था जितना दिखता है. नितीश कुमार के जीवन में एक ऐसा भी वक़्त आया था जब वो राजनीति छोड़ ठेकेदारी करने का पूरा मन बना लिए थे.

26 साल की उम्र में पहली बार चुनाव लडे लेकिन हार गए

Nitish Kumar Political Career: बात 1977 के विधानसभा चुनाव की है. नालंदा जिले के हरनौत सीट से एक 26 साल का लड़का जनता पार्टी की टिकट से चुनाव लड़ा और हार गया. इस चुनाव में जनता पार्टी ने 214 सीटें जीतीं और 97 सीट हार गई. इन हारी हुई सीटों पर हरनौत भी थी जिस सीट से नितीश कुमार पहली बार विधानसभा चुनाव के राण में उतरे थे. ये वहीं नितीश कुमार थे जो बाद के दिनों में केंद्रीय मंत्री और फिर बिहार के मुख्यमंत्री बने.

नीतीश कुमार को उनके पहले चुनाव में जिस व्यक्ति से हार मिली थी, उसका नाम था भोला प्रसाद जी हां वही भोला प्रसाद जिन्होंने चार साल पहले नीतीश कुमार और उनकी पत्नी मंजू देवी को सफेद कलर की कार में बैठा कर पटना से बख्तियारपुर जो नितीश कुमार का पैतृक गांव है वहां छोड़ा था. नीतीश कुमार पहली हार को भूलकर एक बार फिर 1980 के चुनाव में इसी विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में थे और इस बार उनका सामना था निर्दलीय अरुण कुमार से जिनको भोला प्रसाद का साथ मिला था. लिहाजा दूसरा चुनाव भी नितीश कुमार हार गए.

इस हार से नितीश कुमार इतने निराश हुए की राजनीति छोड़ने का मूड बना लिया था. इसकी सबसे बड़ी वजह ये थी की नीतीश कुमार को यूनिवर्सिटी छोड़ें लगभग 7 से 8 साल हो गए थे और शादी हुए काफी समय हो चूका था. लेकिन, इन तमाम सालों में नीतीश कुमार एक भी रूपया अपने घर ले जाकर नहीं दिए. इन सब बातों से तंग आकर नीतीश कुमार राजनीति छोड़ने का मन बना लिया था. उनका कहना था कि कुछ तो करें ऐसे में जीवन कैसे चलेगा? हालांकि वो ऐसा नहीं कर पाए और राजनीति को ही अपना भविष्य मान लिया। कैसे वो आगे बताएँगे वैसे आपको नीतीश कुमार के छात्र जीवन के संघर्ष की कहानी जानना है तो आप यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं.

आखिरकार विधायक बन ही गए

लगातर दो चुनाव हारने के बाद नितीश कुमार 1985 में नितीश कुमार तीसरी बार फिर से हरनौत से खड़े हुए. इस बार वे लोकदल के कैंडिडेट थे. इस चुनाव में नीतीश कुमार 21 हजार से ज्यादा वोटों से जीते। उन्होंने कांग्रेस के बृजनंदन प्रसाद सिंह को हराया। नितीश कुमार ने आखिरी बार 1995 में विधानसभा चुनाव लड़ा था. हालांकि, उन्होंने बाद में इस सीट से इस्तीफा दे दिया और 1996 के लोकसभा चुनाव में खड़े हुए.

पहले विधानसभा और फिर लोकसभा पहुंचे1985 में पहली बार विधायक बनने के बाद नीतीश 1989 के लोकसभा चुनाव में बाढ़ से जीतकर लोकसभा पहुंचे। उसके बाद 1991 में लगातार दूसरी बार यहीं से लोकसभा चुनाव जीते। नीतीश 6 बार लोकसभा के सांसद रहे हैं। तीसरी बार 1996, चौथी बार 1998, 5वीं बार 1999 में लोकसभा चुनाव जीते। नीतीश ने अपना आखिरी लोकसभा चुनाव 2004 में लड़ा। उस चुनाव में नीतीश बाढ़ और नालंदा दो जगहों से खड़े हुए थे। हालांकि, बाढ़ सीट से वो हार गए और नालंदा से जीत गए। ये नीतीश का आखिरी चुनाव भी था। इसके बाद से नीतीश ने कोई चुनाव नहीं लड़ा है.

अटल बिहारी वाजपई की एंट्री के बाद क्या हुआ?

अटल बिहारी वाजपई के कहने पर पहली बार मुख्यमंत्री बने, उन्ही की तरह नितीश कुमार ने इस्तीफा भी दिया। बात 2000 के विधानसभा चुनाव की है. किउसि भी आर्टि को पूर्ण बहुमत नहीं मिला था. तब नीतीश अटल बिहारी वाजपाई सरकार में कृषि मंत्री थे. चुनाव के बाद अटल जी कहने पर और भाजपा के समर्थन से नीतीश पहली बार 3 मार्च 2000 को बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. हालांकि बहुमत नहीं होने कारन उन्होंने 7 दिन के भीतर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने अटल बिहारी वाजपाई की तरह इस्तीफा देते हुआ कहा था कि मैं जोड़ तोड़ की सरकार नहीं बनाना चाहते। अटल बिउहारी वाजपेयी ने भी 1996 में 16 दिन तक प्रधानमंत्री रहने के बाद यही बात कहते हुए इस्तीफा दिया था.

2004 के लोकसभा चुनाव में नितीश कुमार NDA से अलग होकर लालू प्रसाद यादव करीब आ गए. लालू और नीतीश दोनों UPA-1 में मंत्री बने. लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) रेल मंत्री बने तो नितीश कुमार कोल और स्टील मंत्री बने. लेकिन, नीतीश की नजर में तो वो सात दिन की बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी नाच रही थी. 2005 के विधानसभा चुनाव से पहले वो वापस NDA में आ गए. अक्टूबर 2005 के चुनाव में NDA को बहुमत मिला और नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बन गए.

2013 में एक बार फिर से NDA से अलग हो गए नीतीश

बात उस समय की है जब 2013 में भाजपा ने प्रधानमंत्री उम्मीदवार के तौर पर नरेंद्र मोदी का नाम घोषित कर दिया, तब नाराज नीतीश ने एनडीए छोड़ दिया था. 2015 में नितीश कुमार जदयू, राजद और कांग्रेस के साथ महागठबंधन को बहुमत मिला। राजद ने 80, जदयू ने 71 और कांग्रेस ने 27 सीटें जीतीं नीतीश कुमार सीएम बने और तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम।

जुलाई 2017 में तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) पर भष्टाचार के आरोप लगने पर नीतीश कुमार न सिर्फ महागठबंधन से अलग हुए, बल्कि सीएम पद से भी इस्तीफा दे दिए दिया, 26 जुलाई को नीतीश महागठबंधन से अलग हुए और 27 को NDA के समर्थन से 6वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. नीतीश अब तक 6 बार NDA के समर्थन से और दो बार महागठबंधन के समर्थन से सीएम रह चुके हैं. नीतीश नौवीं बार सीएम बीजेपी के समर्थन से बनेंगे।

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