The Story Of Afghanistan’s Separation From India In Hindi: अफगानिस्तान भारतीय उपमहाद्वीप और ईरान के बीच एक ऐतिहासिक सेतु रहा है। यह सभ्यता के प्रारंभ से ही भारतीय उपमहाद्वीप के का अहम हिस्सा था। लेकिन तुर्क आक्रमणों के कारण, 10 वीं 12वीं शताब्दी से इसका अलगाव होने लगा था। मध्यकाल में सदियों तक फारसी, तुर्क, मुग़ल और अफगान शक्तियों ने अपने-अपने प्रभाव क्षेत्र में बनाए रखने की कोशिश की। मुग़ल साम्राज्य के शिखर पर यह क्षेत्र काबुल से लेकर कंधार तक उनके अधीन रहा। परंतु 18वीं शताब्दी के मध्य में मुग़ल सम्राट मुहम्मद शाह ‘रंगीला’ और ईरानी शासक नादिर शाह के टकराव और संधियों के बाद अफगानिस्तान फारसी साम्राज्य के अंदर हो गया। बाद में नादिरशाह की हत्या के बाद अहमदशाह दुर्रानी ने फारसियों को पराजित कर अफ़गान कबीलों को इकट्ठा कर स्वतंत्र अफगानिस्तान की नींव रखी। इस तरह अफगानिस्तान हमेशा के लिए भारत से अलग हो गया।
मुग़ल साम्राज्य की शक्ति का पतन
1719 में गद्दी पर बैठे मुहम्मद शाह के समय तक मुग़ल साम्राज्य अपनी पूर्व शक्ति और प्रतिष्ठा को खो चुका था।साम्राज्य में अफसरशाही भ्रष्ट थी। सीमांत प्रांतों पर नियंत्रण ढीला पड़ चुका था। मराठा, सिख और रोहिल्ला ताक़तें अलग-अलग क्षेत्रों में स्वतंत्र होकर शासन कर रही थीं। मुग़ल दरबार विलासिता में डूबा हुआ था, जबकि सीमाओं पर खतरे लगातार बढ़ते जा रहे थे।
नादिर शाह का भारत पर आक्रमण
उधर ईरान में नादिर शाह एक सिपाही से उठकर शहंशाह बना। उसने सफ़वी वंश को हटाकर फारसी सत्ता पर अधिकार जमाया। 1738-39 में कंधार और काबुल पर कब्जा कर लिया जो अब तक मुग़ल साम्राज्य का हिस्सा माने जाते थे। उसके बाद वह उसने अफ़गान विद्रोहियों का बहाना बनाकर अफ़ग़ान मार्ग से भारत की तरफ बढ़ा।
मुग़लों की पराजय और दिल्ली की लूट
1739 में करनाल की लड़ाई में मुग़ल सेना की शर्मनाक हार हुई, और नादिर शाह ने दिल्ली पर चढ़ाई कर दी। दिल्ली की लूट और कत्लेआम नादिर शाह ने दिल्ली पर कब्जा किया और 13 मार्च 1739 को हुए दिल्ली के नरसंहार में हजारों लोगों की जान गई। कोहिनूर हीरा, तख़्त-ए-ताउस, अनगिनत रत्न और खज़ाने के साथ वह लगभग 70 करोड़ की संपत्ति अपने साथ वापस ले गया।
नादिरशाह को समझौते में मिला बड़ा हिस्सा
पर उससे पहले उसने एक राजनयिक समझौता कराया, जिसमें मुग़ल बादशाह ने अफ़ग़ान क्षेत्रों को औपचारिक रूप से ईरान को सौंप दिया। मुग़लों ने काबुल, कंधार, ग़ज़नी, बल्ख जैसे क्षेत्र नादिर शाह को दे दिए। इसके साथ ही अफ़ग़ानिस्तान पर से मुग़ल नियंत्रण हमेशा के लिए समाप्त हो गया। यह एक प्रकार से मुग़लों द्वारा अफ़ग़ानिस्तान का “राजनयिक समर्पण” था।
अहमद शाह अब्दाली का उदय
1747 में नादिर शाह की हत्या हुई। इसके बाद उसके अधीन एक अफ़गान सेनापति अहमद शाह अब्दाली ने अफ़ग़ानिस्तान में दुर्रानी साम्राज्य की स्थापना की। उसने ककई छोटे-छोटे अफ़गान कबीलों को इकट्ठा कर स्वतंत्र अफ़गान राज्य की नींव रखी। अब अफ़ग़ानिस्तान न तो मुग़लों के अधीन रहा, न ही फारसियों के बल्कि वहाँ एक नया स्वतंत्र अफ़ग़ान साम्राज्य खड़ा हो गया।
अब्दाली का भारत पर आक्रमण
अफगानिस्तान में सत्ता स्थापित करने के बाद अब्दाली ने फारसी साम्राज्य के अधीन भारतीय क्षेत्रों अर्थात सिंधु के पश्चिम का क्षेत्र पर अपना दावा किया। इधर दिल्ली की सत्ता के लिए मुग़ल सरदार आपस में ही उलझे हुए थे। रूहेलों के विरुद्ध वजीर सफ़दरजंग ने जहाँ मराठों को बुलाया, तो मराठा शक्ति के दमन के लिए रूहेलों ने अब्दाली। अंततः पंजाब सूबे की चौथ वसूली और मुग़लों की आंतरिक राजनीति ने मराठों और अफगानों के मध्य संघर्ष का कारण बन गया और सेनाएँ 14 जनवरी 1761 को पानीपत के मैदानों में भिड़ गईं।
दुर्भाग्यपूर्ण रहा मराठों को इस युद्ध में पराजय का सामना करना पड़ा। लेकिन अफ़गान भी पीछे लौट गए। कुछ समय तक पंजाब के क्षेत्रों के लिए अफ़गान और सिखों में संघर्ष होते रहे। लेकिन अफ़गान आखिरकर इन क्षेत्रों पर अधिकार में असफल रहे। और रंजीत सिंह के नेतृत्व में सिखों का साम्राज्य स्थापित हुआ। लेकिन अंततः भारतीय उपमहाद्वीप में ईस्ट इंडिया कंपनी के उदय के साथ ही, उसने भारत के लगभग सभी शक्तियों का दमन कर दिया।
अंग्रेजों ने भारतीय प्रशासन
अफगानिस्तान के रणनीतिक महत्व को देखते हुए अंग्रेजों ने सोवियत संघ और ब्रिटिश इंडिया के मध्य एक बफर जोन जैसा था। हालांकि अफगानों और ब्रिटीशर्स की लड़ाई अंग्रेजों के पक्ष में ही रही। लेकिन अंग्रेजों ने अफगानिस्तान पर स्थायी शासन स्थापित करने की कोशिश। उसके बाद अंग्रेज अफ़गानिस्तान पर भारत से ही नियंत्रण रखते रहे। इस तरह से अफगानिस्तान अंग्रेजों के नियंत्रण में रहा। लेकिन 1919 अफ़गान युद्ध के बाद अंग्रेजों का नियंत्रण अफगानिस्तान पर कमजोर हो गया और अफगानिस्तान ने स्वतंत्रता की घोषणा कर दी। 1926 में अंग्रेजों ने अमानुल्लाह खान को अफगानिस्तान का शासक स्वीकार कर लिया।
भारत से कैसे अलग हुआ अफगानिस्तान
लेकिन अफगानिस्तान का भारत से अलगाव नादिरशाह के जमाने में ही हो गया था। मुहम्मद शाह और नादिर शाह के बीच 1739 का समझौता एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना थी, जिसने अफ़ग़ानिस्तान की तक़दीर को हमेशा के लिए बदल दिया। यह समझौता मुग़ल सत्ता के पतन का प्रतीक बन गया और अफ़ग़ानिस्तान के राजनीतिक भूगोल को बदल दिया।