Parenting Tips In Hindi | टीनएज बच्चों की परवरिश, पैरेंट्स के लिए एक चुनौतीपूर्ण दौर होता है। ये वो समय होता है,जब बच्चे न सिर्फ शारीरिक और मानसिक बदलावों से गुजर रहे होते हैं बल्कि वे अपनी पहचान, स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता की खोज में भी रहते हैं। ऐसे में माता-पिता और बच्चों के बीच सामान्य बातचीत में दूरी बढ़ने लगती है। जिससे गलतफहमियां बढ़ जाती हैं और रिश्ता तनावपूर्ण हो सकता है। लेकिन, यदि माता-पिता थोड़ा सा नजरिया बदलें, बच्चों को सुनने और समझने की कोशिश करें, तो एक मजबूत, भरोसेमंद और दोस्ताना रिश्ता कायम किया जा सकता है। इस गाइड में हम जानेंगे कि कैसे पैरेंट्स अपने टीनएज बच्चों के साथ एक हेल्दी, खुला और पॉजिटिव रिश्ता बना सकते हैं जो न सिर्फ आज बल्कि जीवनभर मजबूती से उनके साथ बना रहे।
क्यों ज़रूरी है दोस्त जैसा रिश्ता
टीनएज में बहुत सारे चेंजेज होते हैं जो न केवल शारीरिक बदलाव हैं बल्कि मानसिक और भावनात्मक होने के चलते बच्चे के स्वभाव, मस्तिष्क और चरित्र पर भी बदलाव लाते हैं इसे हार्मोनल चेंज से हम सभी जानते हैं लेकिन इसके प्रभाव के प्रति बहुत कम अभिभावकों हैं जो अपने टीनएजर्स बच्चों को सही दिशा दे पाते हैं और इस दौरान हर बात के लिए बच्चों को जिम्मेदार ठहराने वाले पैरेंट्स अपने बच्चों से दोस्ताना रवैया नहीं बना पाते।
अकेलापन और साथी का साथ
इस उम्र में बच्चे अक्सर खुद को अकेला या खुद को पहचानने की कोशिश करते हैं। जिसमें वे बार-बार शीशे में खुद को देखना, बार-बार कपड़े बदल कर देखना जैसी हरकतें करते हैं लेकिन पैरेंट्स अधिकतर डांट डपटकर उनके इस रवैए को पागल करार देते हैं जिससे बच्चे उनसे छिपकर रहने लगते हैं। ऐसी स्थिति में घर या बाहर का कोई भी , किसी का भी साथ उनके अकेलेपन का या तो साथी बन सकता है या वो किसी ग़लत चक्कर में भी पड़ सकते हैं इसलिए टीनएजर्स के अकेलेपन का साथी बनना जरूरी है।
फ्रेंडली पैरेंट्स से खुल कर बात करेंगे बच्चे
टीनएज बच्चों में आने वाले बदलावों पर से बच्चों का रहन-सहन ही नहीं बल्कि उनका टेस्ट, उनके बात करने का तरीका व पसंद भी अचानक बदल जाती है ऐसे माता-पिता या परिवार के हर सदस्य को उनके अंतर्मन व आवश्यकता को बिल्कुल उनके नजरिए से समझें,उनके हर निर्णय का न सिर्फ स्वागत व सम्मान बल्कि उनकी समझदारी को एप्रिशिएट भी करें ताकि अपके माता-पिता की जगह उन्हें एक दोस्त नजर आए और वो हर बात पर न सिर्फ आपसे खुलकर बात करें बल्कि अपने अंदर चल रही हर बात सबसे पहले आपके साथ शेयर करें।
- दोस्ताना रिश्ते का पहला कदम भरोसा
- विश्वास की कड़ी से करें शुरुआत
- बच्चों की बातों को जज न करें।
- उनकी प्राइवेसी का सम्मान करें।
- जब वो कोई गलती करें, तो उन्हें डांटने की बजाय समझाएं।
- बात चीत से खुलेंगे बंद दरवाजे
- रोज़ कुछ समय उनके साथ बिताएं, बातें करें।
बदलाव के बाद जानें उनकी पसंद-नापसंद।
मोबाइल और सोशल मीडिया की आदतों पर करें खुली चर्चा,न टोकाटाकी,न गाइड करें।
एक जैसा सबका हो फैमिली डिसिप्लिन
नियम ज़रूरी हैं लेकिन सिर्फ बच्चों पर नहीं सब पर एक जैसा लागू हो, खुद भी फॉलो करें , बच्चों के न करने पर समझाकर लागू करें। घर के छोटे बड़े फैसले बच्चों की सलाह लेकर बनाएं,घर के नियमों में भी उनकी मर्जी शामिल करें ताकि उन्हें अपनाने में बच्चों आसानी महसूस करें। सबसे महत्वपूर्ण बच्चों को चुनने के लिए विकल्प जरूर दें,जैसे समय पर सोना या समय पर उठना जो उन्हें सही लगे उसपर फोकस करें।
बच्चों की रुचि को बनाएं अपना इंट्रेस्ट
चाहे वो गेम्स हों या म्यूज़िक,आर्ट हो या सोशल मीडिया की दुनियां उनके साथ बने रहने के लिए आपका उसी दिशा में बने रहना जरूरी है। उनके हर शौक को अपनाएं फिर उसके नफा-नुकसान पर बात करें।
खुद का ईमानदार होना सबसे ज़रूरी
जब पैरेंट्स अपनी गलतियां स्वीकारते हैं तो बच्चों में भी ऐसा करने की गुड हेबिट संस्कार के रूप में घर करती है। बच्चों की उदासीनता पर परवाह करें।ख़ुशी पर भी खुशी से, खुशी का सबब जरूर पूछें।
बच्चे की साइलेंस को भी न सिर्फ समझें बल्कि मैं तुम्हारी हर बात समझती या समझता हूं कहना न भूलें ये महत्वपूर्ण असर करने वाला वाक्य है।
वर्किंग पैरेंट्स ले काउंसलर की हेल्प
अगर रिश्तों में लगातार तनाव है,तो काउंसलर की मदद लें। काउंसलिंग कोई कमजोरी नहीं, समझदारी है जो इस संवेदनशील मामले का निदान बन सकती है।
विशेष :- दोस्ती से ही मजबूत होता है रिश्ता
टीनएज बच्चों के साथ दोस्ताना रिश्ता बनाने में समय, समझदारी,धैर्य और खुले मन की जरूरत होती है। एक बार ये रिश्ता मजबूत हो जाए, तो आगे की जिंदगी में हर मुश्किल आसान लगती है और ता-जिंदगी रिश्ता मजबूत होता जाता है।