Holi Skin Care Tips : 14 मार्च को देश भर में अबीर और ग़ुलाल के साथ होली खेली जाएगी। रंगों के साथ हंसी-ठिठोली करने वाले इस त्यौहार है, इस इस पर्व में त्वचा और स्वास्थ्य का खास ध्यान रखना पड़ता है। बाज़ारों में मिलने वाला रंग केमिकल युक्त होता है, जिससे स्किन अलर्जी होने का खतरा रहता है। ऐसे में त्वचा का ध्यान रखना जरुरी होता है। जब आप होली पर रंग खेलने के लिए निकले तो पूरी तैयारी के साथ जाएं। आपको कुछ टिप्स को फ़ॉलो करना है, जिससे होली के रंग से आपके स्वास्थ्य पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा।
होली में केमिकल युक्त रंगों से बचे| Holi skin precautions
लोग होली का बेसब्री से इंतज़ार करते है। बड़े हो या छोटे सभी को होली पसंद हैं। ख़ासकर रंग खेलने का दिन तो सबसे अलग होता है। होली के दिन लोग सुबह से ही एक दूसरे पर रंग डालने लगते हैं। रंग की ख़ुशी में डूबे लोग एक-दूसरे को खूब रंग लगाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि बाज़ारों में केमिकल युक्त रंग भी मिलते हैं, जो त्वचा को तो नुकसान पहुँचाते ही हैं साथ ही स्वांस संबंधी समस्या भी उत्पन्न कर देते हैं। बाजार में सस्ते और भड़कीले रंग जल्दी लोगों को आकर्षित करते हैं, यही रंग हानिकारक होते हैं।
हर्बल रंगों से ही खेले होली | Harbal Colour kaise pehchane
मेडिकल कॉलेज के चर्म रोग विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. युगल राजपूत ने होली के रंगों को लेकर लोगों को सावधान रहने की सलाह दी है। उन्होंने कहा कि होली खेलने से परहेज न करें लेलिन रंगों को खरीदते समय सावधानी बरतें। हर्बल ग़ुलाल और अबीर ही खरीदे, जिससे त्वचा को नुकसान न हो। इसके आलावा होली खेलने से पहले त्वचा की सही देखभाल जरूर करें।
होली खेलने से पहले जरूर करें ये काम
होली खेलने से पहले शरीर में मॉइस्चराइज़र (नारियल का तेल, सरसो का तेल, जैतून का तेल या फिर कोई कोल्ड क्रीम) लगा सकते हैं। जिससे कि होली खेलने के बाद शरीर पर लगे रंग को आसानी से छुड़ाया जा सके। अमूमन ऐसा भी देखा गया है कि लोग होली खेलने के बाद अपनी त्वचा को कई बार साबुन और डिटेरजेंट से धोकर रंग साफ करने की कोशिश करते हैं। ऐसा करने पर त्वचा और भी ज्यादा सूख जाती है। साथ ही साबुन में मौजूद केमिकल से हमारी त्वचा को काफी नुकसान पहुंचता है। रंग छुड़ाने के लिए दही का प्रयोग लाया जा सकता है। साथ ही सांस की बीमारी से जूझ रहे मरीजो को रंगों से दूरी बनाकर रहने की आवश्यकता है क्योंकि आमतौर पर रंग उड़ता हुआ नाक के रास्ते शरीर मे प्रवेश करता है। जिससे रोगियों को सांस लेने में काफी दिक्कतें आने लगती है।
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