Tons River | टमस नदी के उद्गम की लोककथा

History Of The Tons River: मध्यप्रदेश को नदियों का मायका कहा जाता है, क्योंकि यहाँ से सबसे ज्यादा नदियों का उद्गम होता है। इसी मध्यप्रदेश के विंध्यक्षेत्र से भी नर्मदा और सोन समेत कई नदियों का उद्गम होता है, जो भारतीय सभ्यता और संस्कृति में अत्यंत महत्वपूर्ण रही हैं। विंध्यक्षेत्र को तो आदिमानव की क्रीड़ास्थली होने का भी गौरव प्राप्त है। इसी विंध्य क्षेत्र में एक और नदी प्रवाहित होती है टमस, जिसे पुराणों में तमसा और अंग्रेजी विवरण में टोंस कहा। इस नदी के तट पर भी करीब 2000 हजार साल पहले शुंगकाल में एक नगर आबाद था, जिसके अवशेष भरहुत में आज भी मिलते हैं। इसी टमस नदी के उद्गम को लेकर दो कथाएं यहाँ प्रचलित हैं।

टमस नदी का उद्गम कहाँ से हुआ | Where did the Tamsa River originate

इस नदी का उद्गम मैहर जिले के झुकेही में कैमोर पर्वत के तमसाकुंड से होता है प्रारंभ में यह एक पतली जलधारा के रूप में निकलती है, जो आगे चलकर एक तालाब में आके इकट्ठा होती है, फिर कई खेतों से निकलती हुई, पहले यह एक नाले और फिर नदी का स्वरूप धारण कर लेती है और धीरे-धीरे वह प्रवाहमान होने लगती है। मैहर और सतना जिलों को जमीन को सिंचित करती हुई यह नदी बसामन मामा देवस्थान के निकट पूर्वा में एक जलप्रपात बनाती हुई, रीवा के तराई क्षेत्रों में उतर जाती है, जहाँ पर रीवा पठार की अन्य नदियां बीहर और महाना इत्यादि को अपने साथ-साथ समाहित करती हुई, यह नदी बहुत विशाल हो जाती है, इसका यह स्वरूप हमें रीवा के तराई अंचल में देखने को मिलता है, जब त्योंथर और चाकघाट में इसके पाट मीलों चौड़े हो जाते हैं, आगे चलकर इसमें बेलन नदी भी मिलती है और गंगा-यमुना संगम से करीब चौंतीस किलोमीटर दूर सिरसा नाम के स्थान पर यह नदी, लगभग 264 किलोमीटर लंबी यात्रा करने के बाद यह गंगा में समाहित हो जाती है और आगे सागर यात्रा पर निकल जाती है।

टमस नदी का उद्गम कैसे हुआ | How did the river Tamsa originate

सके उद्गम को लेकर एक कथा बताई जाती है, कि एक बार किसी युग में कोई सिद्ध तपस्वी साधनारत थे, तभी उनका कमंडल लुढ़क गया, जिसमें गंगाजल भरा था, वही जल एक कुंड में इकट्ठा हो गया और उसने नदी का रूप धारण कर लिया।

टमस नदी के उद्गम की लोककथा | Folktale of the origin of the Tamsa River

इसके उद्गम को लेकर एक कथा बताई जाती है, कि एक बार किसी युग में कोई सिद्ध तपस्वी साधनारत थे, तभी उनका कमंडल लुढ़क गया, जिसमें गंगाजल भरा था, वही जल एक कुंड में इकट्ठा हो गया और उसने नदी का रूप धारण कर लिया। लेकिन टमस के उद्गम की एक लोककथा हमें लोककथाओं के माध्यम से पता चलती है, जिसके अनुसार किसी समय गाँव में एक जमींदार किसान रहता था, उसके खेतों में टमसा नाम का एक कोलजनजाति का हलवाहा काम करता था, जिसकी पत्नी अत्यंत सतवंती और पतिव्रता थी। एक बार जमींदार ने पहाड़ से निकलने वाले बरसात के पानी को इकट्ठा करने की गरज से एक मिट्टी का बांध बनवाया, लेकिन बरसात के महीने में बांध बार-बार फूट जाता था, इसीलिए उसे किसी ने नरबलि की सलाह दी, जिसके बाद उसने अपने हलवाहे टमसा की बलि, बांध की मेड़ पर दे दी।

इधर जब देर रात तक टमसा घर नहीं पहुंचा, तो उसकी पत्नी अत्यंत व्याकुल हो गई, वह अपने आस-पास के कुछ लोगों को साथ ले टमसा की तलाश में निकली, खोजते-खोजते जब आधी रात हो गई और टमसा नहीं मिला, इसी दौरान उसे पता चला उसके पति की नरबली दे दी गई है, वह अपने साथियों को साथ ले उस स्थान पर गई और मेड़ पर खड़े होकर विलाप करने लगी और अपने पति को संबोधित करती हुई बोली- अगर तू मेरा सत्य का पति है तो, इस बांध के मेड़ को तोड़ दे और मेरे साथ गंगा में चल, कहते हैं इसके बाद प्राकृतिक चमत्कार हुआ और एक तेज जलधारा आई और बांध फूट गया और वे दोनों पति-पत्नी उसी जलधारा के साथ, गंगा में मिलने के लिए बह चले।

लोककथा के भिन्न स्वरुप

हालांकि इस कथा के और भी कई विवरण मिलते हैं, लोगों द्वारा सुनाए जाते हैं। जिसके अनुसार कैमूर पहाड़ के निकट रहने वाले कोल संप्रदाय के लोगों द्वारा बांध बनाया जा रहा था, तभी बरसात की कच्ची मिट्टी की मेंड़ टमसा के ऊपर धंस गई, जिसके कारण उसकी मृत्यु हो गई और फिर उसके बाद वही नदी के साथ बहने की कहानी। अब इन कहानियों में सच्चाई के इतर लोकोपवाद ज्यादा रहता है, इस तरह की कुछ लोककथा बुंदेलखंड की सुप्रसिद्ध नदी केन के बारे में प्रचलित हैं। इसी तरह की एक गोंड कन्या द्वारा नदी बनने की कहानी नर्मदा नदी के उद्गम से भी संबंधित है।

कई कहानियाँ प्रसिद्ध

क्योंकि पहले के रूढ़िवादी समाज में इस तरह के अंधवविश्वास और कुप्रथाएं प्रचलित थीं। आप सबने भी ऐसे किस्से सुन रखे होंगे, जब महल, तालाब, बांध और पुल इत्यादि को बनवाते समय किसी की नरबलि दे दी जाती थी। यहाँ तक की इस तरह के किस्से आपने अंग्रेजों से संबंधित सुन रखे होंगे, हालांकि इनमें सच्चाई कितनी होती है यह पता नहीं, लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि प्राचीन समय के रूढ़िवादी समाज में इस तरह के अंधवविश्वास और कुप्रथाएं प्रचलित थीं। हमारा उद्देश्य ऐसी कुप्रथाओं को हाइलाइट करना नहीं है, बल्कि लोक में व्याप्त बातों को आप तक पहुंचाना है।

कोल जनजाति के लिए गंगा के समान थी टमस

लेकिन टमस नदी के किनारों पर यहाँ के आदिम निवासी कोल जनजाति के लोग प्राचीन काल से ही बसते रहे हैं, पद्मश्री बाबू लाल दाहिया के अनुसार तो पहले के समय में टमस नदी कोलों के लिए गंगा नदी के समान थी। कोलों द्वारा बनाई गईं लूक और कोलगढ़ी की गढ़ियाँ भी इसी तमस नदी के किनारे ही बनीं थीं। विंध्यक्षेत्र में बहने वाले टमस मात्र केवल नदी नहीं हैं, बल्कि यहाँ के इतिहास और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण आयाम रही है, जिसने युगों की यात्रा की है और निरंतर कर ही रही है।

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