Quit India Movement: 8 अगस्त 1942 की रात मुंबई के गोवालिया टैंक मैदान में लाखों की भीड़ जमा थी। सभा को संबोधित कर रहे महात्मा गांधी ने धीमे लेकिन दृढ़ आवाज में अंग्रेजों से भारत छोड़ने का आह्वान करते हुए। भारतीयों को एक नारा दिया “करो या मरो”, इस एक वाक्य ने भारत में ब्रिटिश सरकार की नींव हिला कर रख दी थी। चूंकि यह आंदोलन अगस्त के महीने में हुआ था, इसीलिए इसे अगस्त क्रांति भी कहते हैं।
भारत छोड़ो आंदोलन शुरू होने की पृष्ठभूमि | Quit India Movement Background
ब्रिटेन ने 3 सितंबर 1939 को जर्मनी के खिलाफ युद्ध की घोषणा की, चूंकि भारत उस समय ब्रिटिश उपनिवेश था, इसीलिए भारत भी युद्ध में स्वाभाविक रूप से शामिल हो गया। हालांकि भारत को युद्ध में शामिल करने से पहले भारत के राजनैतिक प्रतिनिधियों से विचार-विमर्श नहीं किया था। तत्कालीन वायसराय लिनथिनगो ने भारत के युद्ध में शामिल होने का ऐलान कर दिया था। इसके बाद ब्रिटिश भारत के सात प्रांतों की कांग्रेस सरकारों ने मंत्रीमंडल से इस्तीफा दे दिया था।
द्वितीय विश्वयुद्ध के समय ब्रिटेन की खराब स्थिति
लेकिन युद्ध में ब्रिटेन की स्थित डांवाडोल थी, दक्षिणपूर्वी एशिया के मोर्चे पर उसे जापान से लगातार हार का सामना करना पड़ रहा था। भारत पर दिनों-दिन जापान के आक्रमण का खतरा मंडरा रहा था। ब्रिटेन को भय था, कहीं इस परिस्थिति में भारतीयों ने ब्रिटेन का समर्थन नहीं किया या जापान का समर्थन कर दिया।
मित्र राष्ट्रों का ब्रिटेन पर दबाव
इसीलिए उस पर उसके सहयोगी मित्र राष्ट्रों अमेरिका, चीन और सोवियत संघ का दबाव था, कि वह भारत के राजनैतिक प्रतिनिधियों से बात करके, उनसे युद्ध का समर्थन ले। इसके साथ ही ब्रिटेन की मुख्य विपक्षी लेबर पार्टी का भी दबाव भी था, ब्रिटिश सरकार युद्ध के समय भारतीयों का पूर्ण समर्थन प्राप्त करे। स्पेशली अमेरिकन राष्ट्रपति रूजवेल्ट, भारत के स्वतंत्रता के पक्ष में थे, वह चर्चिल से भारत को स्वायत्ता देने के बारे में सोचने के बारे में, कई बार पहले भी बोल चुके थे।
चीन के राष्ट्रवादी नेता का भारत आगमन
योजना के तहत चीन के राष्ट्रवादी नेता च्यांग काई शेक और उनकी पत्नी सूंग मेई लिंग भी भारत दौरे पर आए, भारत की अंग्रेज सरकार ने उनका स्वागत किया। इनके आगमन का प्रमुख उद्देश्य था, भारतीयों को जापान के प्रति आगाह करना और जापानी सेना द्वारा युद्ध के दौरान चीनियों पर नानकिंग में जो अत्याचार हुए। जापानी सेना ऐसा ही व्यवहार भारतीयों के साथ भी कर सकती है।
विंस्टल चर्चिल की क्रिप्स मिशन योजना
खैर इसी सिलसिले में ब्रिटिश सरकार ने मार्च 1942 में, ब्रिटेन के एक वरिष्ठ मंत्री स्टैफोर्ड कृप्स के नेतृत्व में एक दल भारत भेजा, कृप्स द्वारा लीड करने के कारण ही इसे, कृप्स मिशन कहा जाता है। इस मिशन का उद्देश्य था, भारतीय प्रतिनिधियों से बात करना और उन्हें द्वितीय विश्वयुद्ध के लिए ब्रिटिश सरकार के समर्थन के लिए तैयार करना। मिशन को लीड कर रहे स्टैफोर्ड कृप्स लेबर पार्टी से संबंध रखते थे, जो भारत के स्वयात्त शासन के प्रति सहानुभूति रखते थे, लेकिन वह विंस्टल चर्चिल के नेतृत्व वाले गठबंधन सरकार में युद्ध कैबिनेट के सदस्य भी थे। और चर्चिल वास्तव में भारत को जल्दी, स्वयात्तता देने के पक्षधर नही थे।
क्रिप्स मिशन का भारत आगमन
स्टैफोर्ड कृप्स के नेतृत्व में तीन सदस्यीय दल 22 मार्च 1942 को भारत पहुंचा और यहाँ आकर वायसराय से मुलाकात की और इसके बाद भारतीय नेताओं से। लेकिन क्रिप्स मिशन असफल रहा, दरसल इसका कारण था, कांग्रेस द्वारा पूर्ण स्वराज्य की मांग। जबकि क्रिप्स मिशन के प्रस्तावों के अनुसार भारत को कुछ सीमित स्वायत्तता देना ही था। हालांकि आलोचक आरोप लगाते हैं ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टल चर्चिल, भारतीय मामलों के सचिव लियो अमेरी, वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो और कमांडर इन चीफ सर वेवेल भी चाहते थे, कि मिशन असफल हो जाए। चर्चिल ने तो दबाव के चलते मिशन भेजना स्वीकार किया था।
क्यों असफल रहा क्रिप्स मिशन
कृप्स मिशन असफल रहा, क्योंकि इसमें सत्ता स्थानंतरण की उचित और सही व्याख्या नहीं की गई थी। इसीलिए यह मिशन भारतीयों का और कांग्रेस का युद्ध के लिए समर्थन प्राप्त नहीं कर पाया। इसीलिए क्रिप्स मिशन भारतीयों को असमंजस और डांवाडोल स्थित में वापस लौट गया। भारतीय जो अभी तक फासीवाद आक्रमणों की निंदा कर रहे थे, इस मिशन की असफलता के बाद खुद को ठगा महसूस कर रहे थे।
क्रिप्स मिशन से निराश हुए भारतीय
1857 की क्रांति के बाद लगभग 85 सालों बाद 1942 में देश फिर से अकुलाहट महसूस कर रहा था। ब्रिटिश सरकार अपने उपनिवेश भारत और भारतीयों को भी युद्ध में झोंक चुकी थी। और पूर्ण स्वराज्य का अधिकार भी नहीं दे रही थी। देशभर में खाने-पीने की चीजों की कमी थी, इसके बाद भी ब्रिटिश सरकार यहाँ के लोगों के हिस्से का संसाधन युद्ध में खर्च कर रही थी और ब्रिटिश साम्राज्यवाद से आजादी की दूर-दूर तक कोई आशा नहीं थी। ऊपर से लगभग पच्चीस लाख भारतीय सैनिक, ब्रिटिश सरकार के अंदर पूरे दुनिया के विभिन्न मोर्चे पर लड़ रहे थे। और ब्रिटिश साम्राज्यवाद से आजादी की दूर-दूर तक कोई आशा नहीं थी।
कैसे शुरू हुआ भारत छोड़ो आंदोलन
14 जुलाई 1942 को वर्धा में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक हुई, जिसमें भारत छोड़ो आंदोलन का प्रस्ताव पास किया गया। इस आंदोलन की सार्वजनिक घोषणा के पहले 1 अगस्त को कांग्रेस ने तिलक दिवस मनाया गया। 8 अगस्त 1942 को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक मुंबई के ग्वालिया टैंक मैदान में हुई, जिसे अब अगस्त क्रांति मैदान कहते हैं। यहाँ वर्धा समिति द्वारा प्रस्तावित भारत छोड़ो आंदोलन को, पूर्ण स्वराज्य की मांग के साथ ही, कांग्रेस कार्यसमिति द्वारा स्वीकार कर लिया गया। गांधी, पटेल, मौलाना और पंडित नेहरु, समेत बड़े नेता यहाँ इकट्ठा हुए।
महात्मा गांधी ने दिया करो और मरो का नारा
महात्मा गांधी ने यहाँ, बहुत ही ऐतिहासिक भाषण देते हुए पूर्ण स्वराज की मांग की और ना मिलने की स्थिति में “करो या मरो” का नारा दिया। जिसका अर्थ हुआ या तो हम देश को आजाद करवाएंगे या इसी कोशिश में मर जाएंगे। हालांकि कांग्रेस कार्यसमिति आंदोलन को लेकर एकमत नहीं थी, इसके कई सदस्य चाहते थे, विश्वयुद्ध के मुहाने में खड़े होने के कारण आंदोलन छेड़ना अभी सही नहीं है, जबकि गांधी चाहते थे आंदोलन का यही सही समय है, क्योंकि जापान भारतीय सीमाओं तक बढ़ आया है, ब्रिटिश सरकार को अब भारत को पूर्ण आजादी दे देनी चाहिए।
कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं की गिरफ़्तारी
भारत छोड़ो आंदोलन के ऐलान के साथ ही अगले दिन, ब्रिटिश सरकार ने डिफेंस इंडिया एक्ट के तहत महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरु, सरदार वल्लभभाई पटेल, मौलाना आजाद सभी कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। महात्मा गांधी को उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी और कई सहयोगियों के साथ पुणे के आगा खान पैलेस में नजरबंद कर दिया गया। जबकि अन्य बड़े नेताओं को अहमदनगर दुर्ग में रखा गया।
अरुणा आसफ अली ने फहराया तिरंगा
लेकिन कुछ नेता गिरफ्तारी से बच भी गए, उनमें से अरुणा आसफ अली भी थीं, जिन्होंने मुंबई के ग्वालिया टैंक मैदान में तिरंगा फहरा कर क्रांति का बिगुल फूँक दिया और भूमिगत रह आंदोलन को चलाने लगीं। भारत छोड़ो का नारा यूसुफ मेहर अली ने गढ़ा था, जो मुंबई के मेयर रह चुके थे। उन्होंने ही साइमन कमीशन गो बैक का नारा भी दिया था।
कांग्रेस के युवा नेताओं के हाथ में आई कमान
अंग्रेजों ने गांधी समेत कांग्रेस के बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया, प्रेस पर जबरजस्त सेंसरशिप लगा दी। ब्रिटिश अधिकारियों का सोचना था, ऐसा करके वह आंदोलन को फैलने नहीं देंगे। लेकिन उनका यह सोचना गलत था, क्योंकि इस बार बड़े नेताओं के जेल में बंद होने के कारण, इस आंदोलन की कमान जोशीले युवा नेताओं के पास थी। इस आंदोलन के कारण ही सुचेता कृपलानी, जयप्रकाश नारायण, राममनोहर लोहिया, बीजू पटनायक और अच्युतपटवर्धन जैसे युवाओं का उभार हुआ, जो गांधी के एक आह्वान पर आंदोलन में कूद पड़े और आंदोलन को नेतृत्व करने लगे।
महिलाओं की सक्रिय भागीदारी
लेकिन केवल युवा ही नहीं, भारतीय इतिहास में पहली बार, इतनी महिलाओं ने इस आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था, और आंदोलन की बागडोर संभाली थी। उनमें से कई जेल गईं और कई भूमिगत होकर आंदोलन को संभाल रही थीं।
क्रांति में उषा मेहता की भूमिका
धीरे-धीरे यह आंदोलन पूरे भारत भर में फैल गया, यहाँ तक कि सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों तक भी और इसमें रेडियो कांग्रेस की प्रमुख भूमिका थी। जिसको स्थापित किया था, उषा मेहता ने, जो उस समय मुंबई में कानून की पढ़ाई किया करती थीं। लेकिन आजादी के इस आंदोलन में कूद पड़ी थीं।
अंग्रेजों द्वारा आंदोलन का दमन
यह आंदोलन मुख्यतः शांतिपूर्ण ही चल रहा था, हालांकि युवाओं के नेतृत्व के कारण कई जगह आंदोलन उग्र होने की खबरें भी थी। लेकिन अंग्रेजों ने इस क्रांति का बहुत ही क्रूरता से और निर्ममता पूर्वक दमन किया, गोलियां चलाईं, लाठी चार्ज किया, इस दौरान हजारों लोग घायल हुए कईयों की मृत्यु भी हुई। लाखों लोगों को जेल में ठूंस दिया गया। धीरे-धीरे नेतृत्वविहीन हो चुका यह आंदोलन साल खत्म होते-होते खत्म हो गया था, कुछ जगहों तक यह मार्च 1943 तक चलता रहा।
भारत छोड़ो आंदोलन क्यों असफल हुआ | Why did the Quit India Movement fail
लेकिन जिस लक्ष्य के साथ गांधी ने इस महान आंदोलन को शुरू किया था, वह प्राप्त नहीं हो सका, और भारत पूर्ण स्वराज तब उस समय प्राप्त नहीं कर पाया। हालांकि आंदोलन ने आने वाले समय में भारत की आजादी आधारशिला रखी थी। इस बात की पुष्टि वायसराय लिनलिथगो के उस टेलीग्राम संदेश भी होती है, जो उन्होंने तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टल चर्चिल को लिखा था, जिसमें उन्होंने इस आंदोलन के समय सरकार की मजबूरियाँ और परेशानियाँ बताईं थीं।
भारत छोड़ो आंदोलन के परिणाम | Results of Quit India Movement
भारत में जहाँ इस आंदोलन की वजह से आजादी और स्वाययात्ता की मांग ने जोड़ पकड़ा। वहीं इस आंदोलन के समय ब्रिटिश सरकार को समर्थन के कारण मुस्लिम लीग का जबरजस्त उभार हुआ। तो भले ही “भारत छोड़ो आंदोलन” अपने तात्कालिक लक्ष्य को प्राप्त करने में असफल रहा, लेकिन इसके भारत में ब्रिटिश सरकार की जड़ें हिला दीं।