Quit India Movement In Rewa: वर्ष 1942 में जब अंग्रेजों के विरुद्ध भारत छोड़ो आंदोलन की चिंगारी पूरे देशभर में शोला बनकर सुलग रही थी, उसी समय रीवा और विंध्यक्षेत्र में भी एक क्रांति अंगड़ाई ले रही थी, जो आगे चलकर भारत छोड़ो आंदोलन के साथ मिलने वाली थी। एक ओर जहाँ देश महात्मा गांधी के “करो और मरो” के नारे से गूँज रहा था। तो वहीं दूसरी तरफ रीवा में भी कुछ पहले से ही, यहाँ की प्रजा अपने लोकप्रिय और यशस्वी नरेश महाराज गुलाब सिंह की राज्य वापसी के लिए आंदोलन कर रही थी, जिन्हें अंग्रेज सरकार द्वारा झूठे अभियोग में फंसाकर रीवा राज्य से बाहर निर्वासित कर दिया गया था और राज्य पर प्रत्यक्ष रूप से अंग्रेजों का नियंत्रण हो गया था।
विंध्य में भारत छोड़ो आंदोलन | Quit India Movement in Vindhya | Quit India Movement in Rewa
यहाँ की बघेलखंड कांग्रेस कमेटी, महाराज की वापसी और उत्तरदायित्व सरकार की बहाली के लिए आंदोलन कर ही रही रही थी, कि उसी समय राष्ट्रीय पटल पर भारत छोड़ो की आवाज सुनाई दी, जिसने रीवा में राजा वापसी के आंदोलन रूपी यज्ञ में घी का काम किया, जिसके कारण रीवा और विंध्य में आंदोलन बहुत ही तीव्र और उग्र हो गया। भारतीयों ने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के ज़रिए अंग्रेज सरकार की नींव हिला दी थी, जिसके वजह से अंग्रेजों को आगे चलकर कुछ वर्षों बाद भारत से जाना पड़ा था। भारत छोड़ो आंदोलन जिसे, जो देश की आजादी के लिए हुआ आखिरी महान आंदोलन माना जाता है, इसे अगस्त क्रांति भी कहते हैं।
रीवा के अतिलोकप्रिय नरेश महाराज गुलाब सिंह
रीवा के महाराज गुलाब सिंह अत्यंत लोकप्रिय और यशस्वी नरेश थे। 1922 से लेकर 1942 तक के उनके शासनकाल के दौरान रीवा रियासत में, कई जनहितैषी और सामाजिक सुधार के कार्य हुए। इस दौरान रीवा में शिक्षा का भी काफी विस्तार हुआ था। महाराज ने स्वयं आदिवासियों और दलितों के साथ, एक ही पंगत में बैठकर सहभोज किया, उन्होंने गोंड जनजाति के लोगों को सिंह की उपाधि दी। लिहाजा यहाँ की प्रजा का उनसे बेहद लगाव था। उनके कार्यों में कहीं ना कहीं महात्मा गांधी का बेहद प्रभाव प्रतीत होता था।
महाराज गुलाब सिंह से नाराज पवाईदार वर्ग
उस समय यहाँ पर राजनैतिक दल के नाम पर केवल कांग्रेस थी, कांग्रेस देश में उत्तरदायी शासन की मांग कर रही थी। और इससे ही जुड़ा था, यहाँ का सबसे ज्यादा प्रभावशाली पवाईदार वर्ग। यह वर्ग महाराज गुलाब सिंह द्वारा लागू किए गए, नए पवाई रुल्स से बहुत नाराज था। कहते हैं रियासत के कुछ पवाईदार कांग्रेस से जुड़े होने के बाद भी, अंग्रेजों के पास महाराज की शिकायत किया करते थे, कि वह राज्य में गांधी और कांग्रेस से प्रभावित होकर कार्य कर रहे हैं।
महाराज गुलाब सिंह पर झूठा अभियोग | Background of Quit India Movement in Rewa
1937 में महाराज गुलाब सिंह के पर्सनल स्टाफ़ के एक सदस्य उमाप्रसाद की गोली लगने से मृत्यु हो गई थी। कुछ दिनों बाद एक और स्टाफ सदस्य शंकर प्रसाद भी गोली के शिकार हुए थे। ब्रिटिश सरकार ने षड्यन्त्र के तहत, इसके लिए महाराज गुलाब सिंह को दोषी माना और अभियोग लगाकर 11 फरवरी 1942 को प्रशासनिक अधिकार छीन लिए। लेकिन यही नहीं इसके साथ ही महाराज को राज्य से बाहर चले जाने का आदेश दिया। इसके साथ ही उन्हें संयुक्त प्रांत अर्थात आज के उत्तरप्रदेश और राजपूताना अर्थात राजस्थान में भी प्रवेश की मनाही कर दी गई।
महाराज की रीवा से निकासी | Exile of Rewa Maharaj during Quit India Movement
आदेश के सात दिन बाद ही 18 फरवरी को महाराज गुलाब सिंह की रियासत से दुःखद रवानगी हो गई। उनके बदले ब्रिटिश सरकार ने मेजर एल. डब्ल्यू. उल्ड्रिज को रीवा का प्रशासक बनाकर भेजा। यह पहली बार नहीं था, इससे पहले भी अंग्रेज सरकार महाराज गुलाब सिंह पर प्रशासनिक अनियमयता का भी आरोप लगा चुकी थी। जैसा कि हमने पहले भी इस बात का जिक्र किया था, राज्य के कुछ पवाईदारों ने पहले भी उनकी शिकायत ब्रिटिश सरकार से की थी, क्योंकि नए पवाई रूल्स के कारण राज्य का सामंत वर्ग महाराज से कुछ नाराज चल रहा था।
राजा की खबर सुन प्रजा हुई आक्रोशित
तो जैसे ही राज्य की प्रजा को इस घटना के बारे में पता चला, वह भाव-विह्वल हो गई। क्योंकि महाराज गुलाब सिंह बहुत ही जनप्रिय और सुधारवादी नरेश थे। यहाँ शहर के बाजार बंद हो गए, छात्रों ने स्कूल और कॉलेज बंद करने घोषणा कर दी। यहाँ का समस्त कार्य ठप्प पड़ गया। जैसे-जैसे ही यह खबर राज्य के दूरस्थ क्षेत्रों और ग्रामीण अंचलों तक पहुंची, वैसे-वैसे लोग अपने महाराज के लिए उद्वेलित होने लगे और अंग्रेज सरकार के प्रति आक्रोश यहाँ बढ़ने लगा।
राजा वापसी के लिए प्रजा के प्रयास
रीवा नगरवासियों ने जानकी पार्क में, रीवा के वरिष्ठ नागरिक डॉ राम प्रसाद के सभापतित्व में एक बड़ी सभा का आयोजन किया। जिसमें यह प्रस्तावित किया गया, प्रजा की ओर से एक हस्ताक्षर युक्त अपील वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो के पास भेजी जाए, जिसमें महाराज को रीवा वापस बुलाने की मांग की जाए। इसके साथ ही तत्कालीन भारतीय मामलों के सचिव और चेम्बर ऑफ प्रिंसेस के अध्यक्ष नवानगर के महाराज जामसाहब दिग्विजय सिंह जड़ेजा को भी टेलीग्राम से तार भेजने का निश्चय किया गया। योजनानुसार आगे हस्ताक्षर अभियान चलाया भी गया और करीब 1 लाख 18 हजार लोगों के दस्तखत और अंगूठे वाली अपील 22 मार्च को वायसराय को भेजी गई। लेकिन इसका परिणाम कुछ नहीं निकला। लिहाजा यहाँ की प्रजा अपने राजा को वापस बुलाने के लिए छटपटाने लगी।
रीवा स्टेट पीपुल्स रिप्रेजेंटेटिव का किया गया गठन
महाराज को वापस बुलाने के लिए उस समय “रीवा स्टेट पीपुल्स रिप्रेजेंटेटिव” का भी गठन किया गया। चूंकि उस समय यहाँ केवल एक ही राजनैतिक दल कांग्रेस सक्रिय थी, इसीलिए उसने महाराज गुलाब सिंह को वापस बुलाने के लिए आंदोलन करने का निश्चय किया। विरोधस्वरूप रीवा, सतना, उमरिया, शहडोल, सीधी, मनगवां, गुढ़, कोतमा, ब्यौहारी, अमरपाटन समेत रियासत के प्रमुख स्थानों पर बाजार बंद रहे, विद्यार्थियों ने भी हड़ताल की और स्कूल और कॉलेज बंद रहे। रियासत भर में सार्वजनिक जनसभाओं का आयोजन हुआ। कांग्रेस के स्थानीय नेताओं ने इस आंदोलन में बढ़-चढ़ के हिस्सा लिया, जातीय और धार्मिक संगठनों ने भी सभा करके महाराज के रीवा वापसी की मांग की।
समाचार पत्रों ने की ब्रिटिश सरकार की निंदा
महाराज रीवा के संबंध में हुई कार्यवाई के विरोध में कई समाचार पत्रों ने लेख लिखकर इस घटनाक्रम की निंदा की, रीवा के साप्ताहिक पत्र ‘प्रकाश’ में लेख लिखकर इस कार्यवाई को ब्रिटिश सरकार और रीवा राज्य के बीच संधि का उल्लंघन बताया गया। रीवा के बाहर के भी कुछ समाचार पत्रों इलाहाबाद से निकलने वाले ‘भारत’, दिल्ली से निकालने वाले मुनादी और देशदूत इत्यादि समाचार पत्रों ने, भी इस मामले की रिपोर्टिंग की। ‘भारत’ में तो कप्तान अवधेश प्रताप सिंह के दो लेख भी प्रकाशित हुए।
मनाया गया रीवा दिवस
25 मार्च को राज्य में और राज्य के बाहर जहाँ रीवा के युवा बहुत ज्यादा थे, उदाहरणस्वरूप इलाहाबाद में, वहाँ ‘रीवा दिवस’ मनाया गया। सम्पूर्ण बाजार इत्यादि को बंद कर प्रभात और सांयकालीन फ़ेरियाँ निकाली गईं। पूरे रीवा राज्य में कई जगह सार्वजनिक सभाएं आयोजित की गईं, और सबकी मांग एक ही थी, रीवा महाराज की वापसी हो। उसी दिन पीपुल्स रिप्रेजेंटेटिव कमेटी द्वारा यह निर्णय भी लिया गया, कि रीवा से एक प्रतिनिधि मंडल दिल्ली जाकर वायसराय से मिलेगा और इसके साथ ही वह क्रिप्स मिशन के प्रमुख स्टैफोर्ड क्रिप्स से भी मुलाकात की कोशिश करेगा।
रीवा से प्रतिनिधिमंडल गया दिल्ली
अतः रीवा के वरिष्ठ नागरिक डॉ रामप्रकाश के नेतृत्व में 31 मार्च को 51 सदस्यीय प्रतिनिधि मंडल दिल्ली भी गया और 12 अप्रैल को असफल होकर लौटा। हालांकि इस दौरान रीवा महाराज की वापसी के लिए प्रयास होते रहे, सभाएं और जुलूस इत्यादि भी निकलते रहे, लेकिन अंग्रेजी सरकार के कान में जूं तक नहीं रेंगी। रीवा राज्य के लोग अंदर ही अंदर उबल रहे थे, लेकिन नियति के सामने मजबूर थे। हालांकि ब्रिटिश सरकार ने राजा वापसी के इस आंदोलन के विरुद्ध कुछ कार्यवाइयाँ की, लेकिन फिर भी कठोरता नहीं बरती, इसीलिए आंदोलन की धारा तीव्र हो नहीं पा रही थी।
बघेलखंड कांग्रेस कमेटी ने दिया राजा वापसी आंदोलन को समर्थन
इसी बीच कांग्रेस द्वारा इस आंदोलन से जुड़ने के कारण इस आंदोलन में राष्ट्रीय भावना भी बढ़ी, 16 मई 1942 को रीवा में वरिष्ठ कांग्रेसी नेता राजभानु सिंह तिवारी द्वारा रीवा में स्वराज्य और उत्तरदायी सरकार की मांग की गई। परिणामस्वरूप लाल यादवेन्द्र सिंह और शंभूनाथ शुक्ल सहित कांग्रेस के सभी प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। आगे चलकर जुलाई में लाल महावीर सिंह समेत कई और कांग्रेस नेताओं को भी गिरफ्तार किया गया।
देशभर में शुरू हुआ भारत छोड़ो आंदोलन
अभी तक राजा वापसी के लिए चलने वाला यह आंदोलन जिसे ब्रिटिश सरकार महत्वहीन समझ रही थी। लेकिन इसी समय संयोगवश इसे एक राष्ट्रीय आंदोलन का साथ मिल गया। देशभर में भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत हो चुकी थी। मुंबई के ग्वालिया टैंक मैदान से महात्मा गांधी ने भारत-छोड़ो का आह्वान करते हुए “करो या मारो” का नारा दिया, लेकिन इसके अगले ही दिन, भारत की ब्रिटिश सरकार ने डिफेंस इंडिया एक्ट के तहत महात्मा गांधी समेत कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं को बंदी बना लिया। जिसके कारण आंदोलन की कमान जोशीले युवाओं के हाथ में आई, स्कूल और कॉलेज इत्यादि में भी आंदोलन की तैयारी होने लगी।
स्थानीय कांग्रेस नेताओं की गिरफ्तारी
9 अगस्त को रीवा में भी एक विशाल सार्वजनिक सभा का आयोजन किया गया, परिणामस्वरूप प्रशासन ने बघेलखंड कांग्रेस कमेटी को गैर-कानूनी घोषित कर दिया और कांग्रेस के दफ्तर को अवैध घोषित कर दिया। रीवा में उसी दिन लाल मर्दन सिंह और राजमणि प्रसाद को गिरफ्तार किया गया। अगले दिन 10 अगस्त को रीवा के कांग्रेस नेता राजभानु सिंह तिवारी और सतना के अवधबिहारी लाल को गिरफ्तार कर लिया गया।
रीवा के लोग बढ़-चढ़ कर ले रहे थे आंदोलन में हिस्सा
इसी दिन रीवा वासियों ने रीवा दिवस मनाया, रैलियाँ निकालीं और सभाएं भी की गई। शैक्षणिक संस्थान और बाजार भी बंद रहे। रीवा के दरबार कॉलेज और मार्तंड स्कूल के साथ ही, राज्य के अन्य हाई स्कूल के विद्यार्थियों ने जुलूस निकाला। विष्णुकांता देवी के नेतृत्व में रीवा की महिलाओं ने भी एक रैली निकाली, जिसमें चंपा देवी, कृष्णाकुमारी, दरयाई बाई और राजकुमारी देवी समेत कई महिलाएं शामिल हुई थीं।
कांग्रेस कमेटी ने की उत्तरदायी शासन की मांग
रीवा के जानकी पार्क में 11 अगस्त को हुई एक सार्वजनिक सभा में इटावा कांग्रेस कमेटी के वरिष्ठ सदस्य पं. ज्योति शंकर मिश्रा का भाषण हुआ, जिसमें रीवा महाराज की शीघ्र वापसी और राज्य में उत्तरदायी शासन स्थापित किए जाने की मांग की गई। इसके अगले ही दिन रीवा प्रशासन द्वारा लाल कमलेश्वर सिंह, लाल कृष्णपाल सिंह, भैरवदिन मिश्रा, महावीर प्रसाद भट्ट, सुदर्शन प्रसाद, विष्णुकांता देवी, और राजकुमारी देवी समेत सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया।
विंध्य के युवाओं के प्रेरणास्त्रोत ‘लाल पद्मधर सिंह’
इसी दौरान रीवा के लाल पद्मधर सिंह जो इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पढ़ा करते थे, तिरंगा रैली निकालते समय 12 अगस्त को अंग्रेजों की गोली का शिकार हुए। उनकी शहादत की खबर रीवा में 14 अगस्त को लगी। इस खबर ने यहाँ के लोगों को बहुत ज्यादा प्रभावित किया, लिहाजा इस खबर ने आंदोलन को और भी ज्यादा उग्र कर दिया। यहाँ के लोग बढ़-चढ़कर आंदोलन में हिस्सा ले रहे थे और ‘करो या मरो’ के नारे के साथ अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए कहने लगे।
सैकड़ों लोगों की गिरफ्तारी
रैलियों और सभाओं में अंग्रेजों के विरुद्ध जबरदस्त आवाजें उठ रही थी, लिहाजा रीवा के अंग्रेजी प्रशासन ने भी आंदोलन का क्रूरता के साथ दमन किया। अगस्त के अंत तक राज्य के हजारों लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया था। गिरफ्तार होने वाले लोगों में- महाराज गुलाब सिंह के निजी सचिव बक्शी गया प्रसाद, गोविंदनारायण सिंह, लाल देवेन्द्र सिंह, मृत्युंजय प्रसाद, तुलसी नाई, मोहन लाल जैन, रीवा से बाहर पढ़ने वाले छात्र लाल चंद्रकांत सिंह बघेल और लाल उदयवीर सिंह तथा शहडोल से राजमणि और बाबू रूपचन्द्र भी शामिल थे। रियासत के अंदरूनी हिस्से में भी उस दिन बहुत सारी गिरफ्तारियाँ हुईं थीं।
विंध्य की महिलाओं ने लिया बढ़-चढ़ आंदोलन में हिस्सा | Role of women in Quit India Movement of Rewa
इस आंदोलन में महिलाएं भी पीछे नहीं थीं। हरौल नर्मदा प्रसाद सिंह की अनुजवधू अर्थात लाल महावीर सिंह पत्नी चंपा देवी उनमें से प्रमुख थीं, जिन्होंने अपनी बहन कृष्णाकुमारी के साथ मिलकर इस आंदोलन में हिस्सा लिया और जेल गईं। कृष्णाकुमारी बघेलखंड कांग्रेस कमेटी के प्रमुख नेताओं में से एक लाल यादवेन्द्र सिंह की पत्नी थीं। चंपा देवी के बारे कहा जाता है, जब भारत छोड़ो आंदोलन में वह जेल गईं, तो वह अकेली नहीं गईं थीं, बल्कि अपनी सात साल की बेटी को अपने साथ लेकर गईं थीं क्योंकि उनके घर में कोई भी बच्ची को संभालने वाला नहीं बचा था।
पंडित शंभूनाथ शुक्ल की पहली गिरफ्तारी
हालांकि गिरफ्तारियों का सिलसिला रीवा में मई के महीने में ही शुरू हो गया था, जब कांग्रेस कमेटी राजा वापसी के लिए आंदोलन कर रही थी। सर्वप्रथम 16 मई को पंडित शम्भूनाथ शुक्ल को गिरफ्तार किया गया था। लेकिन अगस्त में हुई इन गिरफ्तारियों ने रियासत के सभी जेलों को भर दिया था। विंध्य के सभी बड़े नेता अब तक गिरफ्तार हो चुके थे या भूमिगत होकर आंदोलन को गति दे रहे थे। जिसके कारण अब आंदोलन की जिम्मेदारी छात्रों और युवाओं पर आ गई, जिसके कारण यह आंदोलन और भी ज्यादा तीव्र और उग्र हो गया।
मार्तंड स्कूल के प्राचार्य का छात्रों को आंदोलन का मार्गदर्शन
इन छात्रों को नेतृत्व और निर्देश दे रहे थे, मार्तंड स्कूल के देशभक्त प्राचार्य कुंवर सूर्यबली सिंह, जो छात्रों के बीच अत्यंत लोकप्रिय थे। परिणामस्वरूप रीवा प्रशासन ने उन्हें और उनके छोटे भाई अविनाशचंद्र सिंह को गिरफ्तार कर क्षेत्र में धारा 144 लगा दी। लेकिन नवयुवक उत्साही छात्रों ने धारा 144 की परवाह ना करते हुए एक विशाल जुलूस निकाला, छात्रों का नेतृत्व यमुना प्रसाद शास्त्री कर रहे थे। मोहन सिंह कर्चुली, वीरेंद्र सिंह, चंद्रप्रताप तिवारी, गुरुरत्न सिंह, रविशंकर नागर, सुरसरि प्रसाद और दिनेश प्रसाद समेत सैकड़ों छात्र इस रैली में शामिल हुए।
पुलिस ने किया छात्रों पर लाठीचार्ज | Role of Rewa students in Quit India Movement
छात्रों को तितर-बितर करने के लिए, रीवा के प्रशासक मेजर उल्ड्रिज के आदेश पर पुलिस ने छात्रों पर जबरजस्त लाठी चार्ज किया, कुछ छात्रों की गिरफ्तारियाँ भी हुई। लाठीचार्ज में कई छात्र घायल भी हुए, जिसमें यमुना प्रसाद शास्त्री प्रमुख थे। कुछ दिनों बाद कुछ विधार्थी, रीवा से सतना वेंकट हाई स्कूल में, विद्यार्थियों को आंदोलन के लिए जागृत करने के लिए गए, लेकिन पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिए गए। इन छात्रों में एक दिनेशचंद्र पांडे भी थे, जिनकी जेल में ही मृत्यु हो गई, जिसके परिणामस्वरूप यहाँ के छात्र और ज्यादा उग्र हो गए।
उग्र छात्रों ने रीवा रिकार्ड रूम में लगाई आग
परिणामस्वरूप रीवा राज्य के अंग्रेज प्रशासक ने रियासत के सभी स्कूल और कालेजों को बंद कर दिया। इसके साथ ही रीवा से निकलने वाले साप्ताहिक समाचार पत्र प्रकाश के संपादक ‘ठाकुर अर्जुन सिंह’ को भी छात्रों के प्रदर्शन को बढ़ावा देने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया, इसके साथ ही और भी कई छात्रों, शिक्षकों, पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया। लेकिन इन कार्यवाइयों से यह आंदोलन थमा नहीं बल्कि छात्र और भी ज्यादा उग्र हो गए। छात्रों के समूह ने रीवा के रिकॉर्ड रूम में आग लगा दी, सतना और शहडोल में सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया, कई जगह छात्र पुलिस वालों से भिड़ भी जाते थे।
नेतृत्व विहीन हो चुका था आंदोलन
इस आंदोलन के दौरान कई लोग गिरफ्तार हुए, कईयों को राज्य से बाहर कर दिया गया और बहुत सारे लोग पुलिस बर्बरता का शिकार हुए, लेकिन आंदोलन चल ही रहा था और इसके साथ ही अंग्रेजों का दमनचक्र भी बदस्तूर जारी था। लेकिन अक्टूबर आते-आते आंदोलन कुछ धीमा हो चुका था, कारण यह था कि बड़े नेताओं की तो पहले ही गिरफ्तारी हो चुकी थी, इसीलिए यह अब कुल मिलाकर नेतृत्वविहीन जोशीले युवाओं का आंदोलन बन के रह गया था।
राष्ट्रीय स्तर में ख़त्म हो चुका था भारत छोड़ो आंदोलन
प्रारंभ में रीवा का यह आंदोलन, प्रजा द्वारा अपने राजा को वापस बुलाने की भावुक भावना थी। लेकिन कुछ महीनों बाद इसमें ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन भी मिल गया, जिसके कारण यहाँ का युवा विद्यार्थी वर्ग राष्ट्रीय आंदोलन से प्रभावित हुआ था। लेकिन जैसा कि सर्वविदित है राष्ट्रीय नेताओं के गिरफ़्तारी के बाद, पूरे देश में यह आंदोलन नेतृत्वविहीन और धीमा हो चुका था, इसके साथ ही यह अपने पूर्ण स्वराज्य के लक्ष्य को प्राप्त करने में भी असफल रहा। इसीलिए वर्ष 1943 तक यह आंदोलन लगभग खत्म हो चुका था।
रीवा महाराज की हुई रीवा वापसी
इधर रीवा महाराज गुलाब सिंह पर बैठाए गए अभियोग ने भी अपना कार्य पूरा कर लिया था। महाराज को वायसराय ने पत्र लिखकर सूचित कर दिया था, कि वह कुछ शर्तों के साथ रीवा लौट सकते हैं। हालांकि महाराज ने तब ये शर्ते स्वीकार नहीं की थीं। लेकिन आगे चलकर 1943 में उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया था। जिसके बाद 25 जुलाई 1944 को नागपंचमी को उनकी वापसी हुई थी। जिसके बाद बने नए प्रशासन ने लाल यादवेन्द्र सिंह और शंभूनाथ शुक्ल समेत सभी बड़े नेताओं को जेलों से मुक्त किया गया। आगे चलकर रीवा महाराज गुलाब सिंह ने रीवा में उत्तरदायी शासन की घोषणा की।