Site icon SHABD SANCHI

सरभंग आश्रम का इतिहास : अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा रामपथ गमन का अहम हिस्सा

History of Sarbhanga Ashram : रग रग में राम के दूसरे सीजन में हम आपको चित्रकूट के हर उस पावन स्थल पर लेकर गए जिन्हे मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने अपने चरणों से पवित्र बना दिया । हमनें कामदगिरि पर्वत की कहानी सुनाई , तुलसीदास रचित रामचरित मानस की मूल प्रतियां दिखाईं, हम आपको उस स्थान पर भी लेकर गए जहां श्री राम और भरत के मिलाप से चट्टानें पिघल गईं, उस गुफा के दर्शन कराए जहां तुलसीदास को श्री राम ने दर्शन दिए, हमने आपको स्फटिक शिला की गाथा सुनाई और गुप्त गोदावरी के रहस्य के बारे में बताया, सती अनुसुइया के तप को जाना और हनुमान धारा के महत्त्व के बारे में बताया। हम उस स्थान पर भी गए जहां श्री राम, विश्राम करते थे और भरत कुंड के पवित्र जल के बारे में बताया जिसके स्पर्ष मात्र से रोग दूर हो जाते हैं . चित्रकूट स्थान ही ऐसा है जो यहाँ जाए जो राम नाम में रम जाए इसी लिए तो श्री राम ने वनवास के 14 वर्षों में लगभग 12 वर्ष यहीं बिताए। चित्रकूट से वापस लौटने पर हमारा मन भर आया, लेकिन हमें अपने अलगे पड़ाव की तरफ भी तो बढ़ना था. तो हम भी राम पथ गमन पर निकल पड़े और विंध्य की धरा में मौजूद हर उस स्थान तक पहुंचने का प्रयास किया जिनका अस्तित्व श्री राम से जुड़ा हुआ है.

रग – रग में राम के पिछले एपिसोड यहां क्लिक करके देखें

सरभंग आश्रम की कहानी

Story Of Sarbhanga Ashram : चित्रकूट से प्रस्थान करने के बाद श्री राम शरभंग आश्रम पहुंचे। शरभंग दक्षिण भारत के गौतम कुलोत्प्न्न एक प्रसिद्द महर्षि थे. उन्होंने ही उत्तर की आर्य सभ्यता का प्रचार दक्षिण के जंगली क्षेत्रों में किया था. वे ये बात जानते थे कि वनवास के दौरान श्री राम एक दिन उनके आश्रम में जरूर आएंगे इसी लिए तो उन्होंने ब्रह्मलोक जाने की बजाय यहीं श्री राम की प्रतीक्षा करना चुना।

चित्रकूट का इतिहास रामायण से भी पुराना है यह हमेशा से महाऋषियों की तपोस्थली रही है. लेकिन त्रेताकाल में राक्षशों और दानवों ने इस पवित्र स्थल की पवित्रता को खंडित करने के लिए ऋषियों को मारना शुरू कर दिया। दानवों का प्रकोप इतना बढ़ चुका था कि उन्होंने ऋषियों की अस्थियों का पहाड़ बना दिया था. महर्षि शरभंग के ब्रह्मलोक न जाने और श्री राम की प्रतीक्षा करने का कारण यही था कि वे प्रभु रघुवीर के द्वारा दानवों का वध कर पृत्वी को राक्षसों से मुक्त करने का प्रण दिलाना चाहते थे. जब श्री राम राक्षस विराध का वध कर सरभंग मुनि के आश्रम में दर्शन के लिए पहुंचे तो ऋषि सरभंग विलाप करने लगे और कहा – जात रहेउँ बिरंचि के धामा। सुनेउँ श्रवन बन ऐहहिं रामा। चितवत पंथ रहेउँ दिन राती। अब प्रभु देखि जुड़ानी छाती इतना कहते हुए उन्होंने श्री राम से उनकी भक्ति का वरदान लिया और प्रणाम करते हुए योगाग्नि से आत्मदाह कर दिया। शरभंग ऋषि और उनकी श्री राम से हुई भेंट के बारे में इस वीडियो में आप सब कुछ जान सकते हैं.

इस कहानी को यहां वीडियो में देखिये

शब्द साँची राम पथ गमन के उस हर पावन स्थल की कहानी जनाने और सुनाने का प्रयास कर रहा है. हमें उम्मीद है आपको ये वीडियो पसंद आया होगा।

Exit mobile version