Rewa Rani Talab Temple| रीवा के रानी तालाब मंदिर का इतिहास, जहाँ पूरी होती है हर मनोकामना

History of Rani Talab Temple of Rewa In Hindi: भारत और हिंदू धर्म में नवरात्रि का पर्व विशेष महत्व का होता है, चैत्रशुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवरात्रि का प्रारंभ होता है, इस समय माँ शक्ति के विभिन्न रूपों की पूजा, व्रत और आराधना व्यापक रूप से की जाती है। देश भर देवी को समर्पित कई मंदिर और शक्तिपीठ हैं, जिनकी बहुत ही ज्यादा धार्मिक मान्यता है, ऐसा ही देवी को समर्पित एक मंदिर मध्यप्रदेश के विंध्य क्षेत्र के रीवा में स्थित है, जिसे रानी तालाब मंदिर कहते हैं। आइए जानते हैं, रानी तालाब मंदिर के इतिहास के बारे में आखिर किसने बनवाया था यह मंदिर।

माँ काली को समर्पित है यह मंदिर

यह मंदिर देवी कालिका को समर्पित है, जो रक्षा और अभय की देवी मानी जाती हैं। जो रीवा रियासत की तत्कालीन महारानी अजब कुंवरि द्वारा संभवतः 450 वर्ष पहले बनवाया गया था। चूंकि यह मंदिर एक तालाब की मेड़ पर निर्मित है, इसीलिए इसे रानी तालाब मंदिर कहा जाता है। इस मंदिर की भी बहुत धार्मिक मान्यता है, यह स्थानीय निवासियों के लोकआस्था का प्रमुख केंद्र है,नवरात्रों में यहाँ लाखों भक्त माँ के दर्शन के लिए आते हैं, रानी तालाब वाली काली माँ को बहुत चमत्कार माना जाता है, माना जाता है जो भी भक्त आस्था से माँ के दर में आते हैं, उसकी हर मुराद पूरी होती है। यहाँ प्रत्येक नवरात्रि को माता के लिए चुनरी यात्रा निकालने और वह चुनरी माँ को समर्पित किए जाने का भी नियम है।

बंजारों ने स्थापित की थी देवी प्रतिमा

लोक कथाओं के अनुसार माता कालिका की यह प्रतिमा लवाना जाति के लोगों द्वारा यहाँ स्थापित की गई थी। उन्होंने यहाँ अपने साथ कुलदेवी की एक प्रतिमा लाए थे, उन्होंने देवी प्रतिमा को यहीं एक वृक्ष के नीचे स्थापित कर दिया, लेकिन जब लवाने जाने लगे और देवी प्रतिमा को उठाने लगे तो वह नहीं उठी, लोकमान्यताओं के हिसाब से उन्होंने समझा देवी यहीं स्थापित होना चाहती हैं, इसीलिए वह देवी प्रतिमा को उसी वृक्ष को छोड़कर आगे बढ़ गए।

कौन होते हैं लवाना

लवाना जाति के घुमक्कड़ प्रवृत्ति के माने जाने बंजारों की एक शाखा हैं, पहले के समय में जो बंजारे नमक का कारोबार करते थे, उन्हें लवाना कहा जाता था, दरअसल नमक को संस्कृत में लवण कहा जाता है, और जो नमक का कारोबार करते थे, उन्हें लवाना कहा जाता था। ये बंजारे गुजरात, राजस्थान और सिंध प्रांत से नमक इकट्ठा करते थे और फिर घूम-घूम कर सप्लाई किया करते थे, चूंकि यह बंजारे थे तो अपने पूरे लाव-लश्कर के साथ चलते थे, इनके साथ इनके पूज्य कुलदेवी और देवताओं की प्रतिमाएं भी होती थीं।

रानी अजबकुँवर ने बनवाया था मंदिर

माना जाता है माँ काली के लिए मंदिर का निर्माण रीवा के तत्कालीन शासक भाव सिंह और उनकी पत्नी महारानी अजब कुंवरि ने करवाया था। माना जाता है इस मंदिर का निर्माण 1670 ईस्वी से लेकर 1675 ईस्वी के बीच करवाया गया था। रानी अजब कुंवरि चित्तौड़ के महाराणा राज सिंह की कन्या थीं, राजपूताना से संबंध रखने के कारण बंजारे महारानी को अपनी बहन माना करते थे, और उनसे राखी भी बँधवाते थे, कहते हैं बंजारों ने रानी के कहने से लोकहित में एक सरोवर खोदा था, कालिका माँ का मंदिर उसी तालाब की मेड़ पर बना हुआ है, इसीलिए उसे रानी तालाब कहा जाता है।

तालाब के बीच बना भगवान शिव का मंदिर

यहाँ तालाब के बीचों-बीच एक मंदिर का निर्माण भी महारानी अजब कुंवरि ने ही करवाया था, यह मंदिर भूतपति भगवान शिव को समर्पित है और पंचायतन शैली में बना हुआ है, माना जाता है महारानी अजब कुँवर बहुत धार्मिक स्वाभाव की थीं, वह भगवान शिव के दर्शन के लिए रोज नाव से जाया करती थीं।

राजपरिवार से आते हैं शृंगार और आभूषण

रानी तालाब मंदिर में स्थित माँ काली रीवा रियासत के राजाओं की कुलदेवी मानी जाती हैं, राजपरिवार की नववधुएं भी प्रथम देवी दर्शन के लिए यहाँ जाती हैं, इसके अलावा रीवा राजपरिवार की परंपरा अनुसार यहाँ उनका कर्णभेदन संस्कार भी सपन्न होता है। महाराज भाव सिंह के समय से ही चलने वाली परंपरा के अनुसार, प्रत्येक अष्टमी और नवमी को देवी के लिए शृंगार सामग्री और स्वर्ण आभूषण रीवा राजपरिवार की तरफ से ही आते हैं।

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