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नालंदा विश्विद्यालय का इतिहास: आखिर क्यों जलाया गया?

हाल ही में 19 जून को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार में स्थित विश्व प्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय का उद्घाटन किया और भारत के शिक्षा के स्तर को और आगे ले जाने का प्रोत्साहन दिया.प्रधानमंत्री मोदी ने लिखा-

‘नालंदा विश्विद्यालय भारतीय शिक्षा के लिए बहुत खास क्षेत्र है और हमारा इससे अतीत का नाता है।”

जब भारतीय अच्छी शिक्षा की बात करते है तो हमेशा ज़बान पर विकसित देशो की ऑक्सफ़ोर्ड ,एम आई टी ,स्टैनफोर्ड जैसी बड़ी-बड़ी यूनिवर्सिटीज़ का नाम आता है. इसमें भारत की किसी विश्वविद्यालय का नाम नहीं आता है लेकिन अगर हम इतिहास के पन्नों को पलटें तो जानेंगे कि दूसरे देशों या और भी ज्यादा केंद्रित बात करें तो पश्चिमी देशो को अच्छी शिक्षा और अनेक विधाओं का ज्ञान। ये सब भारत की विश्वविख्यात, सबसे प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की ही देन है.दुःख की बात है कि इस ज्ञान का इस्तेमाल वो तो कर रहे हैं लेकिन हम नहीं।

नालंदा विश्विद्यालय का इतिहास

History of Nalanda University: विश्वविख्यात नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना आज से लगभग 1500 साल पूर्व दुनिया के सबसे पहले आवासीय विश्वविद्यालय के रूप में सम्राट कुमार गुप्त ने करवाई थी.विश्वविद्यालय का परिसर 450 एकड़ में फैला हुआ था, जिसमे 11000 से भी ज्यादा कक्षाएं थीं. यहाँ 10000 से ज्यादा विद्यार्थी और 2000 से अधिक आचार्य थे। छात्रों को प्रवेश के लिए प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण करनी होती थी और ये शिक्षा सिर्फ भारत तक सीमित नहीं थी बल्कि चीन ,जापान, अफ्रीका ,ईरान ,अरब ,मंगोलिया आदि देशो के विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करने के लिए यहाँ आते थे। नालंदा विश्वविद्यालय में कई शास्त्रो जैसे संस्कृत, ज्योतिष विद्या, खगोलीय विद्या ,चिकित्साशास्त्र ,तर्कशास्त्र, विज्ञान, दर्शनशास्त्र, धर्मशास्त्र, व्याकरण, मनोविज्ञान,गणित ,वास्तुविद्या,बौद्धशिक्षा आदि जैसे 108 से अधिक विषयों की शिक्षा दी जाती थी। विश्वविद्यालय में 4 मंजिला ईमारत में रत्नासागर ,रत्नोदधि और रत्नरंजक नाम के 3 भव्य पुस्तकालय थे जहाँ कई विषयों और शास्त्रों की 90 लाख से ज्यादा पुस्तकें, धार्मिक ग्रन्थ और असीम ज्ञान का भंडार शामिल था।

नालंदा विश्विद्यालय नाम के इस बौद्ध मठ में विद्यार्थियों के लिए मुफ्त शिक्षा के साथ रहने और खाने की भी व्यवस्था थी क्योकि नालंदा के आस पास के 100 गाँव यहाँ की शिक्षा के लिए कर देते थे जिससे छात्रों को ये सारी सुविधाएं उपलब्ध कराई जा सकें.

ह्वेनसांग का भारत आगमन

5 वीं शताब्दी से लेकर 11 वीं शताब्दी तक नालंदा विश्विद्यालय अपने चरम पर था उसी बीच  ह्वेनसांग भारत में बौद्ध धर्म के ज्ञान के लिए चीन से भारत आया उसने भारत के लेह लद्दाख तथा अन्य जगहों के साथ  नालंदा का भ्रमण किया जहाँ उसने कई शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया और नालंदा विश्विद्यलय की 15000 से ज्यादा दर्शन, मनोविज्ञान,धनुर्विद्या ,चिकित्साशास्त्र,धर्म जैसे विषयो की किताबो को लेकर वापस चीन लौट गया. ह्वेनसांग नालंदा विश्विद्यालय से इतना प्रभावित हुआ था कि उसने चीन पहुँच कर नालंदा विश्वविद्यालय के ऊपर 1 किताब लिखी जिसका नाम si yu ki [the buddhist record of the western word] था। आज यह किताब ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में मौजूद है।

क्यों जलाया गया नालंदा विश्विद्यालय?

12 वीं शताब्दी में खिलजी साम्राज्य का सेनापति था बख्तियार खिलजी, जिसने दिल्ली से बिहार तक अपनी हुकूमत कायम कर ली थी. हुकूमत के इसी समय में जंग के बाद उसकी तबीयत बहुत ख़राब हो गयी जिसको कोई भी हकीम वैद्य ठीक नहीं कर पा रहे थे. उसे सलाह दी गयी अब केवल 1 शख्स ,नालंदा विश्विद्यालय के चिकित्साशास्त्र के प्रमुख राहुल श्रीभद्र ही उसको स्वस्थ कर सकते हैं पर ये बात बख्तियार खिलजी पसंद नहीं आयी.उसे ये बात नहीं पची कि उसको कोई हकीम नहीं ठीक कर पा रहे है और कोई हिन्दू है जो उसकी तबीयत ठीक कर सकता है. उसने नालंदा जा कर आचार्य के सामने एक चुनौती रखी कि आचार्य उसे बिना दवा के ठीक करे। आचार्य ने खिलजी को एक कुरान दी और रोज़ उसे पढ़ने को बोला। खिलजी उस कुरान को पढ़ता रहा और कुछ दिनों बाद उसने महसूस किया की वो ठीक हो रहा है.जब खिलजी ने इसकी वजह का पता लगाया तो उसे मालूम हुआ की आचार्य ने उसकी कुरआन पर दवा लगा दी थी और जब खिलजी पढ़ते समय थूक लगाकर पन्ने पलटता तो दवा उसके शरीर में चली जाती। ये वजह जान कर खिलजी को बहुत गुस्सा आया. कई हकीमो की लाख कोशिशों के बाद भी वो ठीक नहीं हो रहा था पर आचार्य ने उसकी तबियत ठीक कर दी,इस बात पर बख्तियार खिलजी ने ईर्ष्या में सारे विश्विद्यालय में आग लगवा दी.इसमें छात्र,आचार्य समेत पूरा विश्वविद्यालय जल कर खाक हो गया

विश्विद्यालय की इमारते 3 महीनो तक जलती रही और उसमे मौजूद ज्ञान के स्त्रोत और किताबे 6 महीनो तक जलती रहीं। उस रोज़ बख्तियार खिलजी के उस घमंड और जलन की आग ने सारे विश्विद्यालय को जलाकर इतिहास में भारतीय शिक्षा सभ्यता,और साहित्य पर बहुत बड़ी चोट दी थी।

भारत को नालंदा विश्विद्यालय के इतिहास का ज्ञान कब हुआ?

बख्तियार खिलजी ने विश्विद्यालय को इस तरह खाक करवाया था की 19 वीं शताब्दी तक किसी भारतीय को विश्विद्यालय के अस्तित्व के बारे में मालूम ही नहीं चला। ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में मौजूद ह्वेनसांग की लिखी किताब si yu ki [the buddhist record of the western word] में नालंदा विश्विद्यालय के सन्दर्भ में पता चला जिसके बाद वहां की खुदाई चालू करवाकर नालंदा विश्विद्यालय की खोज शुरू की गयी। अभी तक विश्विद्यालय का 10% हिस्सा खोजा जा चुका है।

अगर आज नालंदा विश्वीविद्यलय अस्तित्व में होता तो

वास्तव में नालंदा विश्विद्यालय अगर आज अस्तित्व में होता तो भारत कभी किसी साम्राज्य की हुकूमत का गुलाम नहीं बनता. अच्छी शिक्षा के लिए भारत का कोई भी व्यक्ति विदेशो की युनिवर्सिटीज़ की तरफ कभी नहीं जाता। शिक्षा के दम पर अन्य देश खुद को विकसित बना कर बैठे हैं उसमे से ज्यादातर शिक्षा नालंदा विश्विद्यालय की किताबो की देन है. अगर आज भारतीयों के भाग्य में नालंदा विश्विद्यालय की सारी शिक्षा होती तो भारत के विश्वगुरु बनने का सपना बहुत पहले ही पूरा हो चुका होता। विश्विद्यालय के किताबो के भंडार से भारतीय शिक्षा इतनी अच्छी होती की बड़े बड़े देश खुद भारतीय शिक्षा के सामने नतमस्तक होते।ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में हुए इतने बड़े नुकसान के बाद भारत चाँद और मंगल गृह तक जा चुका है. अगर इतनी बड़ी भारतीय धरोहर जीवित होती तो भारत एक अद्वितीय देश होता। नालंदा महाविहार के अवशेषों को 2016 में यूनेस्को ने वैश्विक धरोहर की सूची में शामिल कर लिया है

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