History of Krishna Janmabhoomi: चाहे खिलजी हो या मुग़ल सभी का एक ही मकसद था और वो यह था कि सिर्फ सनातन धर्म को तोड़कर पूरे भारत में इस्लामीकरण फ़ैलाना। हजारों मंदिरों को तोड़कर उनमें मस्जिद का निर्माण करना उनका मुख्य काम था. राम मंदिर और कृष्ण जन्मभूमि मथुरा भी उनकी इस हरकत से अछूते नहीं रहे. 14 दिसंबर को इलाहबाद हाईकोर्ट ने आदेश दिया है कि श्री कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवादित परिसर का सर्वे कराया जाएगा। कोर्ट ने हिन्दू पक्ष की याचिका स्वीकार करते हुए फैसला दिया कि सर्वे के लिए कोर्ट कमिश्नर नियुक्त किया जाएंगे।
16 नवंबर को अर्जी पर सुनवाई के बाद यह फैसला सुरक्षित कर लिया था. इस विवादित परिसर की 18 याचिकाओं में से 17 पर सुनवाई हुई है. ये सभी याचिकाएं मथुरा जिला अदालत से इलाहबाद हाईकोर्ट में सुनवाई के लिए शिफ्ट हुई थीं. इन याचिकाओं पर 14 दिसंबर को फैसला हुआ है कि परिसर का सर्वे कराया जाएगा। लेकिन हम आपको आज श्रीकृष्ण जन्मभूमि के इतिहास के बारे में बताएंगे।
आज से दसों हजार साल पहले जब दुनिया में असभ्य बर्बर युग चल रहा था, उससे भी कई हजारों साल पहले से अखंड भारत में सनातन सभ्यता का वजूद था, जब बाकी दुनिया के ‘बारबेरियन’ इशारों में बात करना सीख रहे थे, तब भारत में ‘वेद-पुराण’ लिखे जाते थे. भारत की संस्कृति और सभ्यता बाकी दुनिया से सैकड़ों साल आगे थी. गणित, खगोल विज्ञान, तकनीकि विज्ञान और धर्म के मामले में हम सबसे आगे थे. सब कुछ सही चल रहा था. लेकिन भारत में विदेशी आक्रांताओं की घुसपैठ शुरू हुई और जाहिलों ने हमारी सभ्यता को तबाह करना शुरू कर दिया।
क्या था कृष्ण जन्मभूमि विवाद का असली सच
What was the real truth of Krishna Janmabhoomi dispute: द्वापर युग में भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्री कृष्ण की जन्मभूमि मथुरा का इतिहास बड़ा ही भयावह रहा है. इस मंदिर को विदेशी आक्रांताओं ने 3 बार तोड़ा और 4 बार इसका निर्माण कराया गया. जिस जगह पर भगवान श्री कृष्ण की जन्मस्थली है वहां आज से 5 हजार साल पहले ‘कंस’ (श्रीकृष्ण के मामा) का कारागार हुआ करता था. वहीं बाल गोपाल का जन्म हुआ था. कंस के बाद मथुरा पर राजा ‘उग्रसेन’ ने राज किया, जहां कारागार था वहां मुग़ल इस्लामिक आक्रांताओं ने मस्जिद का निर्माण करवाया दिया था.
सबसे पहले कृष्ण जन्मभूमि मंदिर किसने बनवाया था
कंस के कारागार के पास सबसे पहले भगवान कृष्ण का मंदिर (केशवदेव) उनके पपौत्र “ब्रजनाब” ने बनवाया था. यहां पर मिले शिलालेखों में ‘ब्राह्मी लिपि’ लिखी हुई पाई गई है, जिससे साबित होता है कि यहां शोडास के राज्य काल में ‘वसु’ नामक व्यक्ति ने जन्मभूमि पर एक मंदिर और तोरण द्वार सहित वेदिका का निर्माण कराया था.
राजा विक्रमादित्य ने बनवाया था विशाल मंदिर
400 ईसा पूर्व (400 BC) में उज्जैयिनी के ‘महाराजा विक्रमादित्य’ ने जन्मभूमि में बने मंदिर को विशाल आकार दिया था, उस वक्त मथुरा संस्कृति और कला का एक बड़ा केंद्र हुआ करता था. इस दौरान यहां सनातन धर्म के साथ बौद्ध और जैन धर्म का भी विकास हो रहा था. राजा विक्रमादित्य द्वारा बनवाए गए विशाल मंदिर का जिक्र चीनी यात्री ” फाह्यान और ह्वेनसांग” ने भी किया था. तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में ‘मेगस्थनीज’ ने मथुरा को मेथोरा नाम से संबोधित करके इसका उल्लेख किया है. 180 ईसा पूर्व और 100 ईसा पूर्व के बीच कुछ समय के लिए मथुरा पर ग्रीक के शासकों ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से नियंत्रण बनाए रखा. यवनराज्य शिलालेख के अनुसार 70 ईसा पूर्व तक यह नियंत्रण बना रहा. फिर इस पर सिथियन लोगों का नियंत्रण रहा. राजा विक्रमादित्य के बाद यह क्षेत्र कुषाण और हूणों के अधिपत्य में रहा. राजा हर्षवर्धन के शासन तक यह क्षेत्र सुरक्षित रहा.
जब महमूद गजनवी ने आक्रमण किया था
ईस्वी सन 1017-18 में महमूद गजनवी ने मथुरा के समस्त मंदिर तुड़वा दिए थे, लेकिन उसके लौटते ही दोबारा से मंदिर बन गए. मथुरा के मंदिरों के टूटने और बनने का सिलसिला भी कई बार चलता रहा. बाद में इसे महाराजा ‘विजयपाल देव’ के शासन में सन 1150 ई. में ‘जज्ज’ नाम के व्यक्ति बनवाया था. यह मंदिर पहले की अपेक्षा और भी विशाल था, जिसे 16वीं शताब्दी के आरंभ में सिकंदर लोदी ने नष्ट करवा दिया।
मंदिर इतना विशाल कि आगरा से भी नजर आता था
सिकंदर लोदी द्वारा मंदिर तोड़ने के बाद ओरछा के शासक ‘राजा वीर सिंह बुंदेला’ ने खंडहर बन चुके मंदिर को विशाल आकार दिया। कहा जाता है कि यह मंदिर इतना विशाल था कि आगरा से भी दिखाई पड़ता था, लेकिन उस मंदिर पर इस्लामिक जाहिल आक्रांताओं की नजर पड़ गई.
औरंगजेब ने मंदिर तोड़ मस्जिद बनवा दी
सन 1669 में जब क्रूर ‘औरंगजेब’ मुग़ल शासक बना तो उसे मंदिर की भव्यता और भारत की संस्कृति देखी नहीं गई. उसने एक कतार से देश के विशाल प्राचीन वास्तुकला विज्ञान का इस्तेमाल किए गए मंदिरों को तोड़ना शुरू कर दिया। उनमें से एक कृष्ण जन्मभूमि मंदिर भी था. औरंगजेब ने मंदिर तोड़ कर उसमें एक मस्जिद का निर्माण करवा दिया। यहां पर मिले अवशेषों से यह पता चलता है कि मंदिर के चारों ओर विशाल ऊंची दीवार का परकोट मौजूद था.
कब हुई श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की स्थापना
ब्रिटिश शासनकाल में सन 1815 में नीलामी के दौरान बनारस के राजा ‘पटनीमल’ ने इस जगह को खरीद लिया। वर्ष 1940 में जब यहां पंडित ‘मदन मोहन मालवीय’ आए, तो श्री कृष्ण जन्मस्थान की दुर्दशा देखकर काफी निराश हुए. इसके तीन वर्ष बाद 1943 में उद्योगपति ‘जुगुलकिशोर बिड़ला’ मथुरा आए और वे भी श्रीकृष्ण जन्मभूमि की दुर्दशा देखकर बड़े दुखी हुए. इसी दौरान मालवीय ने बिड़ला को श्री कृष्ण जन्मभूमि के पुनर्रुद्धार को लेकर एक पत्र लिखा। मालवीय की इच्छा का सम्मान करते हुए बिड़ला ने सात फरवरी 1944 को कटरा केशव देव को राजा पटनीमल के तत्कालीन उत्तराधिकारियों से खरीद लिया। बिड़ला ने 21 फरवरी 1951 को श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की स्थापना की.
1982 में हुआ वर्तमान मंदिर का निर्माण
श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की स्थापना से पहले ही यहां रहने वाले कुछ मुसलमानों ने 1945 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल की थी. जिसका फैसला 1953 में आया. इसके बाद ही यहां निर्माण शुरू हुआ था. यहां गर्भगृह और भव्य भागवत भवन का पुनर्रुद्धार और निर्माण कार्य आरंभ हुआ, जो फरवरी 1982 में पूरा हुआ.