History of Katchatheevu Island/कच्चाथीवू द्वीप का इतिहास: भारत और श्रीलंका के रिश्ते रामायणकाल से जुड़े हैं. दोनों देश एक दूसरे से ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, व्यापारिक बंधनों से बंधे हैं. लेकिन दोनों देशों के बीच पड़ने वाले 35 किलोमीटर के समुद्री फासले के बीचो बीच बना एक द्वीप (India Sri Lanka Katchatheevu Island Controversy) भारत और श्रीलंका के रिश्ते में दरार डालने का काम करता है. आज देश पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi Katchatheevu Island) के एक गलत फैसले का भुक्तभोगी बना है. भारत जिसे देशवासी अपनी माँ कहते हैं ये इन नेताओं के लिए सिर्फ एक जमीन के टुकड़े से ज्यादा कुछ नहीं था. नेहरू-गांधी परिवार देश को अपनी पैतृक विरासत मनाता था जिन्होंने उत्तर में कश्मीर तो दक्षिण में कच्चाथीवू द्वीप (When Katchatheevu Island Became Part Of Sri Lanka) दूसरे देशों को खैरात में बांट दी.
आज भारत से एक बार फिर से कच्चाथीवू द्वीप श्रीलंका (Katchatheevu Island Controversy In Hindi) से वापस लेने की मांग की जा रही है. पीएम मोदी श्रीलंका (PM Modi Sri Lanka Katchatheevu Island) दौरे पर गए हैं और इस दौरे से पहले 2 अप्रैल को तमिलनाडु में कच्चाथीवू द्वीप वापस लेने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पास हुआ जिसमे भाजपा ने भी समर्थन किया। अब केंद्र पर यह दबाव है कि वह श्रीलंका से उसने नाम हो चुका भारत का कच्चाथीवू द्वीप वापस लेले।
कच्चाथीवू द्वीप कहां है
Where Is Katchatheevu Island: भारत और श्रीलंका के बीच 35 किलोमीटर का समुद्री क्षेत्र है. रामेश्वरम से 19 किलोमीटर और श्रीलंका के जाफना से Katchatheevu Island की दूरी 16 किलोमीटर है. दोनों देशों के बीच कई द्वीप है जिनमे से एक Katchatheevu Island है. जिसका क्षेत्रफ़ल 285 एकड़ है.
कच्चाथीवू द्वीप का इतिहास
History Of Katchatheevu Island: ऐसा बताया गया है कि 14वीं शताब्दी में समुद्र के अंदर एक ज्वालामुखी का विस्फोट हुआ था. उसी विस्फोट से Katchatheevu Island वजूद में आया था. 17वीं सदी में एक राजा हुआ करते थे ‘रघुनाथ देव किलावन’ (Raghunath Dev Kilavan). उन्होंने खुद को रामनाद साम्राज्य का राजा घोषित किया था. कच्चाथीवू द्वीप, रामनाद साम्राज्य का हिस्सा था. तब इस द्वीप को लेकर श्रीलंका और भारत में कोई विवाद नहीं था. दोनों देशों के मछुआरे इसी द्वीप में जाल सुखाने के लिए आते थे।
जब अंग्रेजों का शासन हुआ तो रामनाद साम्राज्य भी मद्रास प्रेसिडेंसी (Madras Presidency) का हिस्सा बन गया. 1902 में रामनाद साम्राज्य के राजा को अंग्रेजों ने कच्चाथीवू द्वीप दे दिया। यहां के राजा लोगों से मालगुजारी का पैसा वसूलने लगे और कुछ हिस्सा अंग्रेजों को भी देने लगे. 1913 में भारत सरकार के सचिव और रामनाथपुरम के राजा के बीच एक समझौता हुआ, इसमें कच्चाथीवू को तब की सीलोन यानी श्रीलंका के बजाय भारत का हिस्सा बताया गया।
1921 में पहली बार कच्चाथीवू को लेकर दोनों देशों के बीच विवाद हुआ. दोनों देशों में अंग्रेजों का शासन था इसी लिए विवाद पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। लेकीन दोनों देशों ने बीच सीमा विवाद बढ़ता गया.
श्रीलंका को कैसे मिला कच्चाथीवू द्वीप
How did Sri Lanka get the Kachchatheevu Island: देश आजाद हो गया, अंग्रेजों ने भारत को चारों दिशाओं से सीमा विवाद में फंसा दिया। उत्तर में चीन, पश्चिम में पाकिस्तान, पूर्व में बांग्लादेश (तब का पाकिस्तान) और दक्षिण में श्रीलंका। चूंकि भारत के लंका से रिश्ते अच्छे थे इसी लिए देश सीमा विवाद का निपटारा चाहता था. 1974 से 1976 के बीच उस समय भारत की पीएम इंदिरा गांधी थीं जिन्होंने श्रीलंका के पीएम सिरिमाव भंडारनायके के साथ चार समुद्री जल समझौता किया। इस समझौते के तहत भारत ने अपने द्वीप श्रीलंका को सौंप दिया। तब से श्रीलंका इस द्वीप पर अपना दावा ठोकने लगा.
यह जमीन सिर्फ एक जमीन का टुकड़ा नहीं था, इंदिरा गांधी की जागीर नहीं थी. यह भारत का हिस्सा था, रामनाद साम्राज्य की निशानी थी. तमिलनाडु सरकार ने इस फैसले का विरोध किया, तत्कालीन सीएम एम करूणानिधि ने अपनी नाराजगी जाहिर की.
दोनों देशों के बीच हुए समझौते के तहत कच्चाथीवू द्वीप में दोनों देशों के मछुआरे जाल सुखाने के लिए जा सकते थे. मगर साल 2009 में श्रीलंका की आर्मी ने यहां भारतीय मछुआरों पर प्रतिबंध लगा दिया, उनकी गिरफ़्तारी शुरू कर दी. तभी से तमिलनाडु सरकार ने कच्चाथीवू द्वीप वापस मांगने की मांग शुरू कर दी. तमिलनाडु में राजनीति करने वाली हर सरकार यही मांग करती है.
कच्चाथीवू द्वीप में क्या है
What Is In Kachchatheevu Island: रामेश्वरम से हजारों लोग कच्चाथीवू द्वीप पर बने सेंट एंथोनी चर्च में प्रार्थना करने के लिए जाते हैं। इस चर्च को तमिलनाडु के एक तमिल कैथोलिक श्रीनिवास पदैयाची ने 110 साल पहले बनवाया था।