जानें कैसे हुई भारत के परमाणु कार्यक्रम की शुरुआत

India’s Nuclear Program In Hindi: भारत का न्यूक्लियर प्रोग्राम विश्व के सबसे महत्वपूर्ण और कठिन वैज्ञानिक प्रयासों में से एक है। इसकी शुरुआत स्वतंत्रता के तुरंत बाद हुई और यह देश की वैज्ञानिक, तकनीकी और रणनीतिक आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। 1950 के दशक में, भारत ने परमाणु अनुसंधान के लिए बुनियादी ढांचा तैयार करना शुरू किया था। भारत के न्यूक्लियर प्रोग्राम का प्रारंभिक लक्ष्य परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग पर आधारित था। जैसे- बिजली उत्पादन, चिकित्सा अनुसंधान और कृषि में उपयोग। लेकिन बाद में इसका एक और प्रमुख उद्देश्य राष्ट्रीय सुरक्षा को भी सुनिश्चित करना था।

भारत में कैसे हुई न्यूक्लियर प्रोग्राम की शुरुआत

भारत का न्यूक्लियर प्रोग्राम स्वतंत्रता के बाद के युग में शुरू हुआ, जब देश ने विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को प्राथमिकता दी। इसकी नींव डालने में डॉ. होमी जहांगीर भाभा की भूमिका सर्वोपरि थी। भाभा, जिन्हें भारतीय न्यूक्लियर प्रोग्राम का जनक माना जाता है, एक विश्व प्रसिद्ध भौतिकशास्त्री थे। उन्होंने परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण और रणनीतिक उपयोग की संभावनाओं को पहचाना और भारत को इस क्षेत्र में अग्रणी बनाने का सपना देखा।

डॉ होमी भाभा का सक्रिय योगदान

1944 में, भाभा ने टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च की स्थापना की, जो भारत में वैज्ञानिक अनुसंधान का आधार बना। 1945 में, उन्होंने तत्कालीन ब्रिटिश सरकार को एक पत्र लिखकर भारत में परमाणु ऊर्जा अनुसंधान की आवश्यकता पर बल दिया। स्वतंत्रता के बाद, 1948 में, भारत सरकार ने परमाणु ऊर्जा अधिनियम पारित किया और परमाणु ऊर्जा आयोगकी स्थापना की। इसका नेतृत्व भाभा को सौंपा गया। BARC यानि भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र की स्थापना 1954 में, भाभा ने ट्रॉम्बे (मुंबई) मेंकी। यह भारत के न्यूक्लियर प्रोग्राम का केंद्र बन गया, जहां अनुसंधान रिएक्टरों, ईंधन चक्र और परमाणु हथियारों के विकास पर काम शुरू हुआ।

ब्रिटेन और कनाडा की मदद से तैयार हुई प्रारंभिक संरचना

1956 में, भारत ने अपना पहला अनुसंधान रिएक्टर अप्सरा शुरू किया, जो ब्रिटेन की सहायता से निर्मित हुआ। यह भारत का पहला कदम था, जिसने स्वदेशी न्यूक्लियर तकनीक की नींव रखी। अप्सरा ने न्यूट्रॉन भौतिकी और रेडियोआइसोटोप के उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1950 के दशक में, भारत ने कनाडा के साथ सहयोग किया और CIRUS रिएक्टर का निर्माण किया गया, जो 1960 में चालू हुआ। यह रिएक्टर भारत के न्यूक्लियर प्रोग्राम में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था, क्योंकि इसने प्लूटोनियम उत्पादन की क्षमता प्रदान की।

भारत के परमाणु कार्यक्रम में सुरक्षा और आत्मनिर्भरता भी शामिल

1960 के दशक में भारत की भू-राजनीतिक स्थिति ने न्यूक्लियर प्रोग्राम को एक नया आयाम दिया। 1962 में भारत-चीन युद्ध और 1964 में चीन के परमाणु परीक्षण ने, भारत को भी अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने के लिए सजग कर दिया। जिसके बाद भाभा ने परमाणु हथियारों की संभावना पर विचार करना शुरू किया, हालांकि उनका प्राथमिक जोर शांतिपूर्ण उपयोग पर था। 1965 में भाभा ने ऑल इंडिया रेडियो को दिए एक इंटरव्यू में कहा था, अगर उन्हें इजाजट मिले तो वह 18 महीने में परमाणु बम बना सकते हैं।

डॉ भाभा की असमायिक मृत्यु

24 जनवरी 1966 में एक विमान दुर्घटना में, डॉ भाभा की असामयिक मृत्यु हो गई। अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA पर यह आरोप लगा, कि भारत के परमाणु प्रोग्राम को रोकने के लिए अमेरिका ने ही उनकी हत्या करवाई थी। बाद में डॉ. विक्रम साराभाई और बाद में डॉ. राजा रमन्ना ने प्रोग्राम का नेतृत्व संभाला। इस दौरान भारत ने थोरियम-आधारित न्यूक्लियर प्रोग्राम पर ध्यान देना शुरू किया, क्योंकि भारत के पास थोरियम के विशाल भंडार थे, लेकिन यूरेनियम की कमी थी। यह भारत की आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।

पोखरण में स्माइलिंग बुद्धा

भारत के न्यूक्लियर प्रोग्राम का सबसे महत्वपूर्ण क्षण 18 मई 1974 को आया, जब भारत ने राजस्थान के पोखरण में अपना पहला परमाणु परीक्षण किया, जिसे स्माइलिंग बुद्धा (Smiling Buddha) नाम दिया गया। यह एक शांतिपूर्ण परमाणु विस्फोट के रूप में प्रस्तुत किया गया, लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से यह भारत की परमाणु हथियार क्षमता का प्रदर्शन ही था। इस परीक्षण में 8-12 किलोटन का प्लूटोनियम-आधारित उपकरण उपयोग किया गया, जो CIRUS रिएक्टर से प्राप्त प्लूटोनियम पर आधारित था।

परमाणु परीक्षण के बाद आई कठोर वैश्विक प्रतिक्रिया

भारत द्वारा किए गए, इस परीक्षण ने वैश्विक समुदाय को चौंका दिया। पूरे वैश्विक जगत ने भारत के परमाणु कार्यक्रम की निंदा की, कनाडा और अमेरिका ने भारत के साथ परमाणु सहयोग समाप्त कर दिया, और विश्व समुदाय ने भारत पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए गए।

विदेशों पर निर्भर रहने की जगह भारत ने चुनी आत्मनिर्भरता की राह

1974 के बाद भारत ने अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों का सामना किया, जिसने विदेशी तकनीक और सामग्री पर निर्भरता को कम करने के लिए स्वदेशी अनुसंधान को बढ़ावा दिया। भारत ने थोरियम-आधारित फास्ट ब्रीडर रिएक्टर प्रोग्राम शुरू किया। 1985 में, फास्ट ब्रीडर टेस्ट रिएक्टर (FBTR) कलपक्कम में शुरू हुआ। इसके बाद भारत ने 1969 में तारापुर, 1973 में रावतभाटा और 1984 में कलपक्कम में न्यूक्लियर पावर प्लांट्स स्थापित किए, जो भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में महत्वपूर्ण रहे।

भारत ने पोखरण में किया द्वितीय परीक्षण

लेकिन भारत को परमाणु हथियार तैयार करने में दो दशक लग गए। 1996 में भारत पर CTBT अर्थात कॉम्प्रिहेंसिव टेस्ट बैन ट्रीटी पर साइन करने का दबाव डाला गया, पर भारत ने इंकार कर दिया। 1998 में भारत ने ऑपरेशन शक्ति के तहत पांच परमाणु परीक्षण किए, जिसमें थर्मोन्यूक्लियर डिवाइस यानि हाइड्रोजन बम भी शामिल था। इसके बाद भारत ने खुद को एक परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्र घोषित किया। लेकिन इस परीक्षण के बाद फिर से विश्व समुदाय ने कई तरह के प्रतिबंध भारत पर लगा दिए।

भारत का वर्तमान परमाणु कार्यक्रम और भविष्य की योजनाएं

आज भारत का न्यूक्लियर प्रोग्राम ऊर्जा उत्पादन और रणनीतिक सुरक्षा दोनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारत ने 2008 में भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते के बाद अंतरराष्ट्रीय परमाणु समुदाय में अपनी स्थिति मजबूत की। हालांकि न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (NSG) में भारत की सदस्यता का मुद्दा अभी भी चर्चा में है। भारत में अभी 22 न्यूक्लियर रिएक्टर हैं, जो लगभग 6,780 मेगावाट बिजली उत्पादन करते हैं। भारत का लक्ष्य इसे 2032 तक 22,480 मेगावाट तक पहुंचना है।

भविष्य के ऊर्जा जरूरतों को देखते हुए, भारत का तीन-चरण का न्यूक्लियर प्रोग्राम (PHWR, FBR, और AHWR) थोरियम के उपयोग पर केंद्रित है, जो भारत को लंबे समय तक ऊर्जा सुरक्षा प्रदान कर सकता है। भारत की नो फर्स्ट यूज नीति और न्यूनतम विश्वसनीय प्रतिरोध नीति इसे एक जिम्मेदार परमाणु शक्ति के रूप में स्थापित करती है।

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