केंद्र सरकार ने देश की राजधानी दिल्ली में कई जगहों के नाम बदले, जैसे औरंगजेब रोड का नाम बदलकर। डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम रोड किया गया, दिल्ली के डलहौजी रोड का नाम दारा शिकोह रोड कर दिया गया, इसी तरह रॉबर्ट क्लाइव रोड का नाम बदलकर त्यागराज मार्ग रख दिया गया, इसके अलावा किंग्सवे कैम्प का नाम गुरु तेग बहादुर नगर, रेसकोर्स रोड को लोक कल्याण मार्ग, मोहम्मदपुर गाँव को मधुकरपुर और सबसे हालिया राजपथ का नाम बदलकर कर कर्तव्य पथ रख दिया। इस सभी जगहों के नाम बदलने के पीछे की वजह ऐसी मानी जाती है कि केंद्र सरकार देश से मुग़लिया आक्रांताओं और हमें गुलाम रकने वाले अंग्रेजों की निशानियों को हटाना चाहती है और इसी आधार पर अब दिल्ली में स्थापित इंडिया गेट का नाम बदलने की मांग उठाई जा रही है.
भारतीय जनता पार्टी के अल्पसंख्यक मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जमाल सिद्दीकी ने इंडिया गेट का नाम बदलने की मांग की है. उन्होंने पत्र जारी करते हुए देश के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी से यह अपील की है कि इंडिया गेट का नाम बदलकर इसे भारत माता द्वार कर दिया जाए. जमाल सिद्दीकी का कहना है कि इंडिया गेट को भारत माता द्वार करने से उस स्तंभ पर दर्ज हजारों शहीद देशभक्तों के नाम को सच्ची श्रद्धांजलि मिलेगी।
जमाल सिद्दीकी का कहना है कि जिस प्रकार केंद्र सरकार ने मुगल आक्रांता और लुटेरे अंग्रेजों के दिए घाव को भरा है, और गुलामी के दाग को धोया है, उसी तरह इंडिया गेट का नाम बदलकर भारत माता द्वार कर देना चाहिए। उनकी इस मांग का सोशल मीडिया में लोग समर्थन भी कर रहे हैं. वहीं कुछ लोग ये भी कुतर्क कर रहे हैं कि रेल भी अंग्रेजों की देन है तो गुलामी की निशानियां मिटाने के लिए रेल बंद कर दीजिये। खैर अगर हम दिल्ली के इंडिया गेट के इतिहास की बात करें तो यह पहले या आज कभी भी गुलामी का प्रतीक नहीं बल्कि बलिदान की निशानी रहा है।
इंडिया गेट एक वॉर मेमोरियल है, जिसे 1914 से 1921 के दौरान हुए प्रथम विश्व युद्ध और तीसरे अफ़ग़ान युद्ध में शहीद हुए भारतीय सैनिकों के लिए बनवाया गया था. इन दोनों युद्ध में 70 हजार से ज्यादा भारतीय सैनिक शहीद हुए थे. इंडिया गेट में 13 हजार 516 सैनिकों के नाम लिखे हुए जिनमे कई ब्रिटिश भारत के सैनिक थे.
इंडिया गेट को ऐसा डिज़ाइन देने के पीछे ब्रिटिश आर्किटेक्ट सर एडविन लुटियंस की भूमिका थी. वही एडवरट लुटियंस जिन्होंने, राष्ट्रपति भवन से लेकर, वाइसरॉय हॉउस, लुटियंस बंगलो, हैदराबाद हॉउस, बीकानेर हॉउस, जैसी इमारतें बनाई, आप ये कह सकते हैं कि नई दिल्ली को लुटियंस ने ही डिजाइन किया था. खैर इंडिया गेट के निर्माण का नाम 1921 में शुरू हुआ और इसे पूरा करने में 10 साल लग गए. 42 मीटर ऊँचे इंडिया गेट को बनाने में लाल और पीले बलुआ पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है.
भारत-पाकिस्तान युद्ध 1971 के बाद इंडिया गेट में अमर जवान ज्योति को जोड़ा गया, यहां अनंत जलने वाली अमर ज्योति स्थापित की गई. यह ज्योति गुमनाम सैनिकों की स्मृति में जलती रहती है। और इसके ऊपरी हिस्से में इंडिया लिखा हुआ है. इंडिया गेट भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और उसके बाद के बलिदानों का प्रतीक है, यहीं 2019 में केंद्र सरकार ने शास्त्र बलों के शहीदों के सम्मान में नेशनल वॉर मेमोरियल भी बनाया है. वैसे इंडिया गेट नाम में न तो कोई खराबी है, न ही ये गुलामी का प्रतीक है, न ही इसका नाम किसी आक्रांता पर रखा गया है फिर भी इंडिया गेट का नाम बदलने की मांग की जा रही है। वैसे इस मामले में आपकी क्या राय है, क्या इंडिया गेट का नाम बदलकर भारत माता द्वार किया जाना चाहिए ? और क्या सरकार ऐसा करेगी ? अपनी राय हमें कमेंट बॉक्स में जरूर दें