History Of Balochistan: पाकिस्तान से अलग हो होना चाहता है बलूचिस्तान?

बलूचिस्तान का इतिहास: ये बात सन 1505 की है, जब मुग़ल आक्रांता बाबर के बेटे हुमायूं को शेरशाह सूरी ने भारत से खदेड़ दिया था. भारत से भागकर हुमायूं ईरान पहुंच गया था. जब सन 1545 में शेरशाह सूरी की मौत हुई तो मौका देकते हुए हुमायूं वापस भारत लौटा और उसकी वापसी के लिए बलूचिस्तान में रहने वाले कबीलाई सरदारों ने उसकी मदद की. इन्ही बलूच सरदारों की मदद से हुमायूं ने सन 1555 में दिल्ली पर कब्जा जमा लिया।

साल 1659 में जब मुग़ल सल्तनत की कमान क्रूर आक्रांता औरंगजेब के हाथ में आई तबतब मुग़लिया सल्तनत की सीमा ईरान तक बढ़ गई. इसी बीच बलूचिस्तान में मुग़लों का विरोध शुरू हो गया. बलूच के नेता मीर अहमद ने औरंगजेब से बलूच का कलात और क्वेटा छीन लिया।

बलूचिस्तान की कहानी

Story Of Balochistan: बलूचिस्तान का इतिहास करीब 9 हजार साल पुराना है, यह कभी सिंधु सभ्यता का प्रमुख इलाका था. जब सिंधु सभ्यता खत्म होने की कगार पर आई तब यहां के लोगों ने सिंध और पंजाब में पलायन किया। बलूचिस्तान वैदिक सभ्यता का भी साक्षी रहा, यहां हिन्दुओं का प्रमुख शक्तिपीठ ‘हिंगलाज माता मंदिर’ भी है. इसके अलावा यहां कालांतर में बौद्धों का भी प्रभाव रहा. मगर सातवीं सदी में जब इस्लामिक आक्रांताओं का आना हुआ तो बलूच भी इसकी चपेट में आ गया.

बलूचिस्तान के लोग कौन हैं कहाँ से आए?

Balochistani People Are Aryans: ऐसा माना जाता है कि बलूच के मूल निवासी ईरानी आर्यन थे. मध्य एशिया में रहने वाले आर्य आर्मेनिया और अजरबैजान पहुंचे। वे अजरबैजान के ब्लासगान इलाके में रहने लगे। यहां आर्यों की भाषा और लहजा मिलाकर नई जुबान बनाई गई, जिसे बलशक या बलाशोकी नाम दिया गया। आर्यों को बलाश कहा जाने लगा।

बलूचिस्तान का नाम कैसे पड़ा?

How Balochistan Named : कहा जाता है कि आर्य लग-अलग इलाकों में जा बसे। कुछ ईरान के जनूबी गए और कुछ लोग ईरान के मगरिब चले गए। जनूबी की तरफ गए आर्यन्स वहां से और आगे ईरान के कमान और सीस्तान पहुंच गए। यहां इनका नाम बदल कर बलाश से बलूच और बोली का नाम बलाशोकी से बदल कर बलूची हो गया। धीरे-धीरे इन बलूच लोगों ने सीस्तान से आगे के इलाके में दाखिल होते गए। इसी इलाके को बाद में बलूचिस्तान कहा गया.

बलूचिस्तान का आधुनिक इतिहास

Morden History Of Balochistan: 1876 में बलूचिस्तान में कलात रियासत का शासन था. यहां ब्रिटिशर्स का कब्जा था. मगर कलात रियासत के मामलों में अंग्रेज ज्यादा दखल नहीं देते थे. जब बात भारत की आज़ादी की घडी आई तब पाकिस्तान को भारत से अलग किया गया और इसी के साथ बलूचिस्तान में भी आजादी की मांग शुरू हो गई. तब बलूच के नेता मीर अहमद खान ने मोहम्मद अली जिन्ना को अपना पक्ष रखने के लिए वकील नियुक्त किया। भारत की आज़ादी के ठीक 11 दिन पहले 4 अगस्त 1947 को दिल्ली में बैठक हुई, जिसमे लार्ड माउंटबेटन भी मौजूद थे. उनका यह कहना था कि बलूचिस्तान को न भारत के साथ रहने की जरूरत है न पाकिस्तान के साथ. जिन्ना ने भी कलात, खरान, लास बेला और मकरान को मिलाकर एक आजाद बलूचिस्तान बनाने की वकालत की, 11 अगस्त को बलूचिस्तान एक आजाद मुल्क बन गया मगर जिन्ना ने यहीं बलूच के लोगों को धोखा दे दिया।

यह तय हुआ कि बलूचिस्तान की सुरक्षा पाकिस्तान करेगा, 12 सितंबर को ब्रिटेन ने एक प्रस्ताव पारित करते हुए यह कहा कि बलूचिस्तान फ़िलहाल एक अलग देश बनने के लायक नहीं है. बलूच के शासक को लगा कि जिन्ना उनकी मदद करेंगे मगर जिन्ना ने मीर अहमद के सामने पाकिस्तान से बलूच का विलय करने के लिए कह दिया।

बलूच में इस प्रस्ताव का खूब विरोध हुआ, इधर पाकिस्तान का दबाव बढ़ता गया. मगर जिन्ना ने अपनी चाल चलते हुए बलूच के सरदारों को अपनी तरफ कर लिया, मीर अहमद खान अकेले पड़ गए. 26 मार्च 1948 को पाकिस्तान की सेना बलूच में घुस गई. मीर अहमद के पास अब कोई विकल्प नहीं बचा. और बलूचिस्तान में पाकिस्तान ने कब्जा कर लिया।

इस घटना के बाद से ही बलूच के लोग पाकिस्तान से नफरत करने लगे. Mir Ahmed Khan के भाई करीम खान ने बलूच राष्ट्रवादियों का एक ग्रुप बनाया जिसने 1948 से ही पहला विद्रोह शुरू किया मगर पाकिस्तानी सेना के आगे वह टिक न पाए. मगर विद्रोह फिर भी जारी रहा. 1950, 1960 और 1970 के दशक में वे पाकिस्तान सरकार के लिए चुनौती बनते रहे। 2000 तक पाकिस्तान के खिलाफ चार बलूच विद्रोह हुए।

रेप की घटना से हुआ पांचवा विद्रोह

अबतक बलूचियों की तरफ से 4 बार अपने देश की आजादी के लिए विद्रोह किया गया हर बार उन्हें हार मिली मगर एक घटना ने बलूचिस्तान के अंदर जल रही लो को ज्वाला बना दिया। साल 2005 में बलूच के सुई इलाके में एक अस्पताल में काम करने वाली डॉक्टर शाजिया खालिद का पाकिस्तनि सेना के कैप्टन ने रेप कर दिया, बलूच के लोगों ने इसका विरोध किया तो पाकिस्तानी सरकार ने अपने रेपिस्ट अफसर का बचाव किया, वह अफसर Pervez Musharraf का खास आदमी था.

तब बुगती जनजाति के मुखिया नवाब अकबर खान बुगती (Akbar Khan Bugti) ने इसे अपने कबीले के संविधान का उल्लंघन बताया। बुगती पहले पाकिस्तान के रक्षा मंत्री रहे चुके थे। लेकिन इस वक्त वे बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) के लीडर बन चुके थे और बलूचिस्तान के अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे थे।

इस घटना ने Akbar Khan Bugti को पाकिस्तान सरकार से बदला लेने का मौका दे दिया। उन्होंने किसी भी कीमत पर बदला लेने की कसम खाई। BLA ने सुई गैस फील्ड पर रॉकेटों से हमला कर दिया। कई पाकिस्तानी सैनिक मारे गए। जवाब में परवेज मुशर्रफ ने मुकाबले के लिए 5000 और सैनिक भेज दिए। इस तरह बलूचों के पांचवें विद्रोह की शुरुआत हुई।

17 मार्च की रात, पाकिस्तानी सेना ने Akbar Khan Bugti के घर पर बमबारी की। इसमें 67 लोग मारे गए। बुगती के घरों के लोगों के मारे जाने से बलूच और भड़क गए। उनका पाकिस्तान सरकार के खिलाफ संघर्ष और तेज हो उठा। हालांकि, 26 अगस्त 2006 को भांबूर पहाड़ियों में छुपे Akbar Khan Bugti और उनके दर्जनों बलूच साथियों की बमबारी कर हत्या कर दी गई।

बुगती की हत्या ने बलूचिस्तान की सभी जनजातियों को एकजुट कर दिया। बलूच लड़ाकों ने इसके बदले पाकिस्तान के कई इलाकों पर हमले किए। तत्कालीन राष्ट्रपति Pervez Musharraf की हत्या की भी कोशिश की गई।

बुगती के बाद BLA का नेतृत्व नवाबजादा बालाच मिरी (Nawabzada Balach Miri) ने संभाला, लेकिन साल 2007 में उसे भी पाकिस्तानी सेना ने मार डाला। BLA ने साल 2009 से पंजाबियों को निशाना बनाना शुरू किया। इस साल बलूचिस्तान में 500 से ज्यादा पंजाबी मार दिए गए। इसके बाद पाकिस्तान की सेना ने सिस्टमैटिक तरीके से बलूचों को गायब करना शुरू किया।

बलूच की जमीन में बेशकीमती खनिज हैं, और पाकिस्तान इसी की वजह से बलूचियों की जान के पीछे पड़ा है. लेकिन BLA के लड़ाकों ने पाकिस्तानी सेना के नाक में दम कर रखा है. उन्हें सिर्फ अपने देश की आजादी से मतलब है जिसे पाकिस्तान से धोखे से छीन लिया था.

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