Story of Maharaj Chhatrasal and Peshwa Bajirao in Hindi: महाराज छत्रसाल और इलाहाबाद के मुग़ल सूबेदार मुहम्मद खान बंगश के मध्य जब युद्ध हो रहे थे, यह संघर्ष बहुत लंबा चला और तब महाराज ने पेशवा बाजीराव से सैनिक सहायता मांगी थी। मराठे धन के बदले में अपनी सेनाएं दिया करते थे। आइए जानते हैं इस ऐतिहासिक घटना के बारे में।
जब महाराज छत्रसाल ने मांगी पेशवा से मदद
17 वीं शताब्दी के भारत में महाराज छत्रसाल ने मुग़लों से विद्रोह कर बुंदेलखंड की नींव रखी थी, उनके कई बार और बार-बार युद्ध मुग़लों से चल रहा था, उन्होंने मुग़लों जो हराते हुए अपनी अस्मिता और स्वतंत्रता बनाए रखी। लेकिन महाराज छत्रसाल जब वृद्ध हो गए, और परिवार में उत्तराधिकार के प्रश्न पर खींच-तान भी चल रही थी, तो उस समय उनकी राजनैतिक स्थिति थोड़ी कमजोर हो गई, जिसके कारण इलाहाबाद के मुग़ल सूबेदार मुहम्मद खान बंगश ने उन पर आक्रमण कर दिया, उन्होंने उससे सतत संघर्ष किया, पर बाद में उन्होंने पेशवा बाजीराव से सैनिक सहायता मांगी थी
कैसे मदद मांगी गई
2015 में आई संजय लीला भंसाली की फिल्म में दिखाया गया था, कि मस्तानी पेशवा के पास मदद मांगने जाती हैं, पर इतिहास में इसका दूर-दूर तक नहीं है। ऐतिहासिक रूप से देखें तो महाराज छत्रसाल और पेशवा बाजीराव के मध्य पत्र व्यवहार दादो भीमसेन नाम के व्यक्ति के माध्यम से हुआ था, जो उत्तर में पेशवा के प्रतिनिधि के तौर पर थे। कुछ विद्वान रघुनाथ पंडित नाम के व्यक्ति का जिक्र करते हैं। ऐसा भी नहीं था पेशवा तुरंत मदद के लिए निकल आए अपनी थाली छोड़कर, जैसा कि आजकल कहानियों में बताया जाता है।
एक साहित्यिक पत्र का जिक्र
कुछ प्रचलित कहानियों के हिसाब से एक कविता का जिक्र होता है जो महाराज छत्रसाल ने पेशवा को लिखी थी। कुछ लोग कहते हैं यह 100 छंद की कविता थी। कहा जाता है जब महाराज छत्रसाल बंगश द्वारा जैतपुर में घेर लिए गए तब उन्होंने पेशवा को एक पत्र लिखा कविता के साथ – ” जो गति ग्राह गजेंद्र की सो भई हमरी आज, बाजी जात बुंदेल की राख्यो बाजी लाज। ” अर्थात जो स्थिति गजेंद्र की हो गई थी, वही आज हमारी हो गई। बुंदेलों की या बुंदेलखंड की स्थिति अब डांवाडोल है, तुम्ही हमारी लाज बचाओ।
लेकिन यह कहानी अधूरी है उसके बाद पेशवा ने भी महाराज छत्रसाल को पत्र लिखा और उन्होंने भी एक कविता लिखी – ” वो होंगे छत्ता-पता तुम होगे छतसाल, वे दिल्ली की ढाल हैं तुम दिल्ली ढाहनवार। ” अर्थात वो तितिर बितिर हो जायेंगे लेकिन तुम छत्रसाल (शासक) ही रहोगे, अगर वो दिल्ली के रक्षक हैं तो तुम तो दिल्ली को ढहाने वाले हो ( महाराज छत्रसाल ने मुगलों से विद्रोह कर बुंदेलखंड की नींव रखी थी )।
इस कहानी में ऐतिहासिक का आभाव
लेकिन इतिहास के कई विद्वान कविता द्वारा पत्र लिखकर मदद मांगने की कथा को निर्मूल मानते हैं। इस कहानी में ऐतिहासिकता का आभाव है। ऐतिहासिक रूप से देखा जाए तो, क्योंकि पहली बात उस समय के राजा और शासकों के मध्य राजनैतिक पत्र व्यवहार फ़ारसी भाषा में हुआ करते थे। इसके अलावा आज की हिंदी या खड़ी बोली तब व्यावहारिक और इतनी व्यापक नहीं थी, कविताएं मुख्यतः ब्रजभाषा में लिखी जाती थीं। महाराज छत्रसाल की भाषा बुंदेली थी और पेशवा मराठी भाषी इसीलिए इन भाषाओं में सम्भव ही नहीं था। उस समय भारत में फ़ारसी भाषा आज के इंग्लिश की तरह ही प्रभावशाली थी। महाराज छत्रसाल सिद्धहस्त कवि थे उनकी रचनाएं भी प्राप्त होती हैं। लेकिन पेशवा द्वारा कविता लिख कर जवाब देना इत्यादि सत्य प्रतीत नहीं होता है। इसीलिए इतिहासकार इन कहानियों को सत्य नहीं मानते, विद्वानों का मत है यह बाद के दौर के किसी कवि की रचना है जो महाराज छत्रसाल और पेशवा के साथ जोड़ दी गई।
पेशवा की दुविधा
दरसल महाराज छत्रसाल का संदेश पाकर भी पेशवा दुविधा में थे, उन्हें धन की जरुरत थी, और महाराज छत्रसाल उन्हें धन दे भी रहे थे, पेशवा मुग़ल साम्राज्य पर अपनी धाक के लिए मदद करना भी चाहते थे, पर दिक्कत यह थी, मराठा सेना उस समय दो जगह व्यस्त थी। पहली पेशवा के भाई चीमा जी के नेतृत्व में मालवा में मुग़ल सूबेदार राजा गिरधर बहादुर के विरुद्ध। और दूसरा खुद पेशवा के नेतृत्व में देवगढ़ के गोंडों के विरुद्ध। शुरूआत में पेशवा महाराज छत्रसाल की मदद के लिए कुछ खास इच्छुक नहीं थे, लेकिन इसी बीच गोंडों से संधि हो गई और पेशवा बुंदेलखंड की तरफ कूच कर गए।
इसी तरह एक कविता का जिक्र होता है जो महाराज छत्रसाल ने पेशवा को लिखी थी। कुछ लोग कहते हैं यह 100 छंद की कविता थी।