Hindi Short Story | Author: Nazia Begum | आज वो आए थे ,मुझे देखने, भाभी लेके गईं थीं मुझे उनसे मिलवाने,सोचा कुछ सवाल जवाब होंगे,कुछ बातें होंगी उनसे, उनके भाई से भी कुछ पहचान हो जाएगी ,पर उन्होंने मुझसे कोई बात ही नहीं कि मैं नज़रें झुकाए उनके पास गई और थोड़ी देर में नजरें झुकाए चली आई, उन्होंने भी चाय नाश्ता किया और वो चले गए अब इंतज़ार था उनके जवाब का पर मेरे घर वालों को यक़ीन था कि मै इतनी प्यारी हूँ कि मुझे कोई मना ही नहीं कर सकता और मेरी होने वाली सासू मां को तो मैं पहले से बहुत पसंद थी ऐसे ही थोड़ी वो एक साल से मेरे घर आ रही थी कि किसी तरह मेरे घर वाले उनके बेटे के लिए मेरा हाथ दे दें। ख़ैर कुछ दिनों में उनके यहां से जवाब आया और मुझे पता चला कि उनके बेटे यश ने मुझे पसंद कर लिया है , सगाई तय हुई और एक महीने बाद ही बड़े धूम धाम से मेरी शादी हुई।
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और जब यश से मिलने की बारी आई तो उसने मुझसे बड़ी मोहब्बत से बात की और मैने भी उसे दिल से अपना मान लिया कुछ दिन ज़िंदगी ठीक से चली ,क्योंकि मैं इनके परिवार के संग थी मुझे पता था कि यश मुम्बई में सर्विस करते हैं और शादी के बाद हम मुंबई जाकर ही रहेंगे मगर ये जाने का नाम हो नहीं ले रहे थे फिर घर में ज़रा बहस हुई तो मुझे पता चला कि ये नौकरी छोड़ चुके हैं, एक दिन सासू मां ने भी इनसे कुछ घर खर्च देने को कहा ये जानते हुए भी कि वो नौकरी छोड़कर आ गए हैं तो उनसे भी इनकी बहस हो गई और अम्मा ने कह दिया कि घर के लिए कुछ नहीं कर सकते तो अपनी घर गृहस्थी अलग कर लो और मुझे भी उनका फैसला सही लगा इसलिए मैने भी अपना चूल्हा चौका अलग कर लिया, ये सोचकर कि अब शायद यश को अपनी ज़िम्मेदारी का एहसास हो हालांकि ये वक़्त नहीं था मेरा परिवार से अलग होने का क्योंकि एक नई ज़िम्मेदारी मुझ पर आने वाली थी मै मां बनने वाली थी, ख़ैर कुछ दिन तो मुझे कोई परेशानी नहीं हुई क्योंकि मेरे घर से मुझे इतना दहेज और कैश मिला था और फिर मायका भी पास ही में था तो कोई ज़रूरत महसूस होने के पहले ही वो पूरी कर देते थे लेकिन अचानक यश ने कहा कि कुछ पैसे हों तो मुझे दे दो हम अगले बुधवार को मुंबई चल रहे हैं वहां मैने अपनी नौकरी की बात कर ली है, मै भी खुश हो गई पर मेरे पास ज़्यादा पैसे नहीं बचे थे इसलिए जो थे वो दे दिए और आलमारी की चाभी ताख़ में रख कर मायके ये खुशखबरी देने चली गई कि यश की नौकरी लग गई है और हम 4- 5 दिन में मुंबई जा रहे हैं।
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जब शाम को घर लौटी तो यश नहीं आए थे कि मै उनसे और कुछ बात करती तो सोचा कपड़े ही पैक कर लूं तो अलमारी खोली और एक दो सूट रखे कि याद आया ज़ेवर भी निकाल कर सासू मां को दे दूं और और बता भी दूं कि हम जा रहे हैं तो वो इन्हें हिफाज़त से रख लें ,ये सोचकर मैने वो बॉक्स खोला जिसमें मै लॉकर की चाभी रखती थी पर उसमें चाभी नहीं थी मैने सोचा यश ने कहीं रख दी होंगी तो और सब जगह भी ढूंढ ली पर चाभी कहीं नहीं मिली ,फिर लगा कहीं सासू मां को ही न दे दी हो तो उनसे पूछने चली गई,मैने बहोत सफाई दी, कहा ,”अम्मा मुझे लगा कि हम जा रहे हैं न तो यश ने आपको रखने के लिए दे दी होंगी” पर अम्मा ने तो मुझे बहोत खरी खोटी सुनाई इतने में यश आ गए तो मैने उनसे भी चाभी के बारे में पूछा, तो वो साफ मना कर गए कहने लगे “मुझे क्या पता तुमने ही रखी थी तुम जानों “अब मेरे पास कहने को कुछ नहीं था तो मैने तसल्ली कर ली कि हो सकता है कि मैने ही किसी और संदूक में रख दी हो और मुझे याद न हो! अब कल ढूंढेगी।
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अगले दिन मैने इनके कुछ संदूक खोले तो देखा मेरे ज़ेवरों के चमकदार शीशे से नग उनमें पड़े हैं ये देखकर मैं परेशान हो गई और ये जानने के लिए कि ये मेरे ही नग हैं के नहीं एक ताला चाभी वाले को बुला लाई और लॉक तोड़वा दिया जब लॉकर खुला तो उसमें ज़ेवर नहीं थे मैने अम्मा से कहा तो अम्मा ने फिर मुझे सुना लिया कहने लगी कि “अपने मायके में रख आई होगी और यहां चोरी लगाती है”, ये सुनकर मै चुप रह गई जब मेरे घर वालों को पता चला तो उन्होंने भी कह दिया हो गया,” रिपोर्ट लिखवाने की कोई ज़रूरत नहीं, पुलिस पूछताछ करेगी घरवालों पे ही शक़ जाएगा छोड़ो जाने दो”, हालांकि मुझे यक़ीन हो गया था कि यश ने ज़ेवर बेचे हैं और सोनार ने उन्हें नग वापस कर दिया है और सोने के पैसे इन्हें दे दिए हैं पर मैने फिर भी यश को माफ कर दिया कि चलो उसे पैसों की बहोत ज़रूरत थी अगर उसने मेरे ज़ेवर बेच भी दिए तो क्या हुआ कल जब मुझे या मेरे बच्चों को इसकी ज़रूरत होगी तो वही दिलाएगा ,पर दिल में बस ये दुख था कि यश ने मुझसे कुछ कहा क्यों नहीं!
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वो मुझसे मांग के तो देखते मै तो यूं ही उन्हें दे देती , और एक चाहत भी थी कि ,चुरा भी लिए हैं तो एक बार वो अपने मूँ से कह दे कि हां मैने तुम्हारे ज़ेवर लिए हैं ख़ैर कुछ दिन बाद मै चुप चाप यश के साथ मुंबई चली गई और खुद को नई ज़िंदगी में ढालने की कोशिश करने लगी क्योंकि यश सब काम अच्छे से कर रहे थे, शायद उनके पास बहुत पैसे थे इसलिए, एक दिन मेरी तबियत ज़रा खराब लग रही थी तो मुझे खाना बनाके भी खिलाया मेरा बहुत ध्यान रख रहे थे, मै बहोत खुश थी ,फिर मुझे डॉक्टर के यहां भी ले गए उन्होंने जो दवाइयां लिखी वो सब लेकर आए मुझे अपने हांथ से खिलाया भी पर दो चार दिन के बाद मेरी तबियत बहुत ज़्यादा खराब हो गई फिर वही दवाइयां खिलाई पर मेरा दर्द रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था जबकि अभी तो पांचवां महीना ही था मेरा, यश जल्दी से मुझे उन्हीं डॉक्टर साहब के यहां ले गए और डॉक्टर ने मुझे एडमिट कर लिया मुझे थोड़ा होश था जब यश मेरे घर वालों से बात कर रहे हैं कि मेरी हालत क्रिटिकल है और वो उन्हें पैसे भेज दें मेरा ऑपरेशन होने वाला है इतना सुनते ही एक सन्नाटे को चीरती हुई तीखी सी आवाज़ मुझे हमेशा के लिए ख़ामोश कर गई अब मैं नहीं हूं कहीं नहीं हूं ।