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हिंदी दिवस विशेष: ‘कविता’ -: विपुल श्रीवास्तव

कविता ने ही मुझे बचपन याद दिलाया है,
माँ बनकर मुझे अपनी गोद में खिलाया है,
कविता ने ही बहन बनकर रक्षालूत्र बांधा,
ललाट पर टीके से निज बन्धु को आराधा
जवां होने पर, मानो यह भी जवां हो गई,
जीवन-संगिनी बनकर, मेरे साथ हो गई,
प्रौढ होने पर, मानो यह भी प्रौढ हो गई,
बचपन से लेकर आज तक की दौड़ हो गई,
किन्तु बुढापा आते ही बूढी मत हो जाना,
जवां विचारों की स्याही कलम में भर जाना,
आशुतोष भी तू ही व मोहन भी तू ही है,
विचारों का मंथन और दोहन भी तू ही है,
तुझे ही परब्रह्म मान, तेरी वन्दना करूॅ,
तेरे सगुण व निर्गुण रूपों की अर्चना करूॅ,
जीवनथारा का, तू ही तो महाकाव्य है,
नर, मानव बन जाये, सहज संभाव्य है

कवि-:विप्लव

हिंदी कविता पर यह मधुर कविता लिखने वाले कवि हैं बी.एस.एन.एल, नई दिल्ली सहायक महाप्रबंधक ‘विपुल श्रीवास्तव (विप्लव)’. ‘सत्य की मशाल’ पत्रिका के द्वारा “लेखन विधा सम्मान” से सम्मानित विप्लव ने ‘ऑसू हैं मुस्कान’, ‘यूँ ही हालाहल नहीं पिया मैने’, ‘आदियोगी नीलकंठ’ जैसी कविताओं की रचना की है.

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