जिस तरह एक सुहागन के माथे की शान है बिन्दी, उसी तरह भारत माँ की आन, बान और शान है हिन्दी, जिस तरह हमारे शरीर में वास करते हमारे प्राण हैं, उसी तरह सभी भाषाओं में हिन्दी की पहचान है, जिस तरह हर नमाज के पहले होती एक अजान है, उसी तरह हर पूजा, प्रार्थना में हिन्दी का आव्हान है, तिरंगे के तीन रंगों का बेजोड़ बयान है राजभाषा हिन्दी, जन, गण, मन का राष्ट्रीय गान है हमारी राजभाषा हिन्दी, मन के मूक भावों का शाश्वत बयान है राजभाषा हिन्दी, सभी के लिये बोलने में बहुत आसान है राजभाषा हिन्दी, संगीत के सात सुरों की मधुर तान है राजभाषा हिन्दी, देवभाषा संस्कृत का अनुपम संधान है राजभाषा हिन्दी, बचपन में बोलने को आतुर शिशु का मधुर गान है हिन्दी, यौवन में विचारों का उफान है राजभाषा हिन्दी, वृद्धावस्था में उम्र का अलौकिक बखान है हिन्दी, अंत समय मूक भावों का वाचाल बयान है हिन्दी, अंतिम यात्रा में राम नाम की पहचान है हमारी हिन्दी, माँ की पवित्र लाल चुनरी से पीर के हरे चादर की दुआ, राजभाषा हिन्दी ने सभी आस्थाओं के मर्म को है छुआ, भाषा के ठेकेदारों, इसकी हालत पर कुछ तो रहम खाओ, इसे इसकी विदेशी सौत के असहनीय दर्द से बचाओ, तुम इसके अपने होकर भी इसे इस तरह न ठुकराओ, जब हिन्दी में सारे काम करने का सपना फलीभूत होगा, तब हिन्द ही नहीं, सारा विश्व भी इससे अभिभूत होगा।
कवि-विपुल "विप्लव"
हिंदी भाषा के महत्त्व पर कविता लिखने वाले कवि हैं बी.एस.एन.एल, नई दिल्ली सहायक महाप्रबंधक ‘विपुल श्रीवास्तव (विप्लव)’. ‘सत्य की मशाल’ पत्रिका के द्वारा “लेखन विधा सम्मान” से सम्मानित विप्लव ने ‘ऑसू हैं मुस्कान’, ‘यूँ ही हालाहल नहीं पिया मैने’, ‘आदियोगी नीलकंठ’ जैसी कविताओं की रचना की है.