Hemant Kumar Birth Anniversary | न्याज़िया बेगम: आनंद मठ फिल्म के वंदे मातरम गीत से लेकर नागिन के मन डोले मेरा तन डोले, तक आते आते अलग अलग पायदानों पर अमित छाप छोड़ते हुए हेमंत मुखोपाध्याय की आवाज़ दिग्गजों को भी मंदिर में बैठे पुजारी की भांति लगने लगी और जहां उनका गीत संगीत दोनों मिल गए, वो फिल्म ही कामयाब हो गई, लोग गानों के लिए फिल्म देखने जाने लगे इतना आकर्षण था हेमंत कुमार के संगीत निर्देशन और गायन में।
कई भारतीय भाषाओं में रचा बसा है उनका संगीत और स्वर
वो बंगाली और हिंदी के साथ-साथ मराठी, गुजराती, ओडिया, असमिया, तमिल, पंजाबी, भोजपुरी, कोंकणी, संस्कृत और उर्दू जैसी कई भाषाओं में गाने गाए। वो बंगाली और हिंदी फिल्म संगीत, रवींद्र संगीत और कई अन्य शैलियों के महारथी थे। उन्हें सर्वश्रेष्ठ पुरुष पार्श्व गायक के लिए दो राष्ट्रीय पुरस्कार मिले।
पिता जी के मना करने पर भी संगीत को अपनाया
हेमंत का जन्म 16 जून 1920 को वाराणसी में उनके नाना के घर हुआ था, जो एक चिकित्सक थे। उनका पैतृक परिवार जयनगर माजिलपुर शहर से आया था। अपने पिता की आपत्तियों के बावजूद वो संगीत में अपना करियर बनाने लगे। उन्होंने साहित्य के साथ प्रयोग किया और बंगाली पत्रिका देश में एक लघु कहानी प्रकाशित की और 1930 के दशक के अंत तक संगीत पर पूरी तरह से ध्यान केंद्रित किया।
इप्टा से मिला सचिन देव बर्मन का साथ
1940 के दशक के मध्य में हेमंत IPTA यानी भारतीय जन नाट्य संघ के सदस्य बने जहां उन्हें गीतकार, संगीतकार सलिल चौधरी मिले और दोनों ने साथ मिलकर काम करना शुरू किया। हेमंत का पहला फ़िल्मी गाना 1940 में रिलीज़ हुई बंगाली फ़िल्म राजकुमारेर निर्ब्बासन में था, जिसे एसडी बर्मन ने संगीतबद्ध किया था। इसके बाद 1941 में फिल्म निमाई सन्यास आई, जिसमें हरिप्रसन्ना दास ने संगीत दिया था। हेमंत 1943 में बंगाली गैर-फ़िल्मी गीत “कथा कायोनाको शुद्धो शोनो” और “अमर बिरहा आकाशे प्रिये” भी बनाए जिसे अमिया बागची ने लिखा था।
बंगाली फिल्मों से की शुरुआत
उनके हिंदी फ़िल्मी गीत 1942 की फिल्म मीनाक्षी और उसके बाद 1944 में आई फिल्म इरादा में पहली बार आए थे, हेमंत को रवींद्र संगीत का सबसे बड़ा प्रतिपादक माना जाता है और उनका पहला रिकॉर्ड किया गया रवींद्र संगीत हमें, (1944) की बंगाली फ़िल्म प्रिया बंधबी में सुनने मिलता है। यह गीत था “पथेर शेष कोठाये”। उन्होंने 1944 में कोलंबिया लेबल के तहत अपनी पहली गैर-फ़िल्मी रवींद्र संगीत डिस्क भी रिकॉर्ड की, गाने थे “आमार आर हबे ना देरी” और “केनो पंथा ई चंचलता”। संगीत निर्देशक के रूप में क़दम रखते हुए उनकी पहली फ़िल्म 1947 की बंगाली फ़िल्म अभ्यात्री थी जिसे बेहद पसंद किया गया। 1947 में हेमंत ने “गणयेर बधु” यानी “ग्रामीण दुल्हन” नाम का एक गैर-फिल्मी गीत सलिल चौधरी के साथ बनाया जिसे 78 आरपीएम डिस्क के दो तरफ़ रिकॉर्ड किया गया, छह मिनट के इस गीत को अलग-अलग गति से गाया गया था। जिसमें बंगाली गीत की पारंपरिक संरचना और रोमांटिक थीम का अभाव था, फिर भी ये अपनी ओर आकर्षित करता था, क्योंकि इसमें एक सुखी, समृद्ध और देखभाल करने वाली ग्रामीण महिला के जीवन और परिवार को बड़ी बारीकी से दर्शाया गया था। तो फिर गीत में कशिश होना तो लाज़मी था, फिर क्या था इस गीत ने पूर्वी भारत में हेमंत और सलिल के लिए अप्रत्याशित लोकप्रियता पैदा कर दी और एक तरह से हेमंत को अपने पुरुष समकालीनों से आगे भी स्थापित कर दिया। जिसके बाद हेमंत और सलिल ने अगले कुछ सालों में कई गानों में अपनी जोड़ी बनाए रखी, जिसमें लगभग सभी गाने बहुत लोकप्रिय साबित हुए।
बंगाली सिनेमा में भी रहे सबके पसंदीदा गायक
इसके बाद ही उन्हें आनंदमठ फिल्म मिली जिसने अपने संगीत और आवाज़ से सबका दिल जीत लिया। एसडी बर्मन के संगीत निर्देशन में अभिनेता देव आनंद के लिए गाए उनके गीतों ने जैसे (1952) की फिल्म जाल में (“ये रात ये चांदनी फिर कहाँ”),(1955) की हाउस नंबर 44 में (“चुप है धरती” और “तेरी दुनिया में जीने से”), 1958 की सोलवा साल में (“है अपना दिल तो आवारा”) और (1962) की फिल्म बात एक रात की में (“ना तुम हमें जानो”) ने ऐसी लोकप्रियता हासिल की कि वो आज भी सदाबहार है। फिर 1950 के दशक में उन्होंने प्रदीप कुमार की फिल्म (नागिन, जासूस) और सुनील दत्त की (दुनिया झुकती है) जैसी फिल्मों के साथ अन्य नायकों के लिए भी पार्श्व गायन किया। जिनमें बीस साल बाद, बिन बादल बरसात, कोहरा और अनुपमा नागिन के गाने लगातार दो साल तक चार्ट-टॉपर रहे और आज भी पसंद किए जाते हैं। 1955 में हेमंत को फ़िल्मफ़ेयर में सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक का पुरस्कार मिला। उसी वर्ष, उन्होंने एक बंगाली फ़िल्म शप मोचन के लिए चार गानों का संगीत रचा और अगले दशक में बंगाली सिनेमा में भी सबसे लोकप्रिय गायक बन गए ।
1950 के दशक के उत्तरार्ध में, हेमंत ने कई बंगाली और हिंदी फिल्मों के लिए संगीत तैयार किया और गाने गाए साथ ही रवींद्र संगीत और बंगाली गैर-फिल्मी गाने भी रिकॉर्ड किए। इनमें से लगभग सभी, खासकर उनके बंगाली गाने, बहुत लोकप्रिय हुए। इस अवधि को उनके करियर के चरम के रूप में देखा जा सकता है पर अभी एक सफर और बाक़ी था, 1950 के दशक के अंत में हेमंत दा ने अपने स्वयं के बैनर हेमंत-बेला प्रोडक्शंस के तहत फिल्म निर्माण में क़दम रखा और इस बैनर के तहत पहली फिल्म मृणाल सेन द्वारा निर्देशित एक बंगाली फिल्म- “नील आकाशेर नीचे “बनाई, कहानी भारत के स्वतंत्रता संग्राम की पृष्ठभूमि में कलकत्ता के एक चीनी सड़क विक्रेता के कष्टों पर आधारित थी। इस फिल्म ने उन्हें राष्ट्रपति का स्वर्ण पदक दिलाया।
हेमंत जी की कंपनी और उनका संगीत
अगले दशक में हेमंत की प्रोडक्शन कंपनी का नाम बदलकर गीतांजलि प्रोडक्शंस कर दिया गया और इसने कई हिंदी फिल्में बनाईं जैसे बीस साल बाद, कोहरा, बीवी और मकान, फरार, राहगीर और खामोशी जिनमें से सभी में हेमंत का संगीत था, जिनमें बीस साल बाद और खामोशी बेहद सफल रहीं। हेमंत ने 1963 में पलटक नाम की फिल्म के लिए संगीत तैयार किया, जिसमें उन्होंने बंगाली लोक संगीत और सुगम संगीत को मिलाने का प्रयोग किया। ये उनकी एक बड़ी सफलता साबित हुई और हेमंत की रचना शैली बंगाल में उनकी कई भावी फिल्मों जैसे बाघिनी और बालिका बधू के लिए उल्लेखनीय रही। उनकी बंगाली फिल्मों मनिहार और अद्वितिया को भी सफलता प्राप्त हुई, इन रचनाओं में हल्का शास्त्रीय रंग था जो लोगों को खूब भाया।
26 सितंबर 1989 को हुआ हेमंत कुमार का निधन
1961 में, रवींद्रनाथ टैगोर की जन्म शताब्दी के उपलक्ष्य में, ग्रामोफोन कंपनी ऑफ इंडिया ने अपने स्मारक आउटपुट के बड़े हिस्से में, हेमंत द्वारा रचे रवींद्रसंगीत को शामिल किया, इस तरह अपना पूरा जीवन संगीत को समर्पित करते हुए,
हमें अपने अनुपम सुर और संगीत का तोहफा देकर 26 सितंबर 1989, को इस दुनियां को वो अलविदा कह गए। चलते चलते आपको ये भी बता दें कि आपके दो बेटे जयंत मुखर्जी और रानू मुखर्जी हैं, और जयंत मुखर्जी की पत्नी दिग्गज अभिनेत्री मौसमी चटर्जी हैं ।