Death Anniversary Of Lyricist Rajendra Krishan: काग़ज़ क़लम के साथ उसका नाता पुराना था ,
नहीं कोई रिवाज उसने दुनिया का माना था ,अच्छा सुनना और लिखना बस यही धर्म निभाना था,
मेरा तुम्हारा हर जज़्बात उसे लब्ज़ों में पिरोना था ,हर लम्हा खूबसूरत है ये हमको बताना था ,
हां वो उर्दू का , दिलनशी़ एहसासों का दीवाना था।।
फ़िराक़ गोरखपुरी और एहसान दानिश के साथ निराला और पंत को भी पढ़ने वाले ये शायर ,अफसाना और नग़्मा निगार थे, राजेंद्र कृष्ण जिन्होंने सन 1965 में आई फिल्म ‘ख़ानदान’ के गीत “तुम्हीं मेरे मंदिर, तुम्हीं मेरी पूजा” के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फिल्मफेयर पुरस्कार जीता ।
कैसे लिखने लगे थे कविताएं/ How Did You Start Writing Poems?
6 जून 1919 को गुजरात ज़िले, वर्तमान पाकिस्तान के जलालपुर जट्टान में एक दुग्गल परिवार में जन्मे राजिंदर कृष्ण जब आठवीं कक्षा में पढ़ रहे थे, तब से कविताएं उन्हें आकर्षित करती थीं पर आपने इस बात को कभी इतनी संजीदगी से नहीं लिया और पढ़ाई के बाद शिमला में नगरपालिका कार्यालय में क्लर्क की नौकरी करने लगे जहाँ उन्होंने 1942 तक काम किया पर इस दौरान, उन्होंने पूर्वी और पश्चिमी लेखकों को खूब पढ़ा फिर उन्हीं से प्रेरणा लेकर कविताएँ भी लिखने लगे , वो फ़िराक़ गोरखपुरी और अहसान दानिश की शायरी से बहोत मुतासिर थे तो साथ-साथ पंत और निराला की हिंदी कविताओं के प्रति भी अपना आभार व्यक्त करते थे । उन दिनों, दिल्ली-पंजाब के समाचार पत्र विशेष परिशिष्ट निकालते थे और कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर कविता प्रतियोगिताएँ भी आयोजित करते थे, जिनमें राजेंद्र जी नियमित रूप से भाग लेते थे और दूसरी तरफ़ पटकथा भी लिखने लगे थे ।
कैसे आ पहुँचे माया नगरी :-
अपने हुनर के सहारे 40 के दशक में वो अपनी क़िस्मत आज़माने मुंबई चले आए, खुशक़िस्मती से उन्हें काम भी मिल गया उनकी पहली पटकथा 1947 की फिल्म ‘जनता’ थी। गीतकार के रूप में उनकी पहली फिल्म 1947 की ‘ज़ंजीर’ थी। पर उन्हें पहचान मिली मोतीलाल – सुरैया अभिनीत 1948 की फिल्म ,’आज की रात’ की, पटकथा और गीतों से ,इसमें महात्मा गांधी की हत्या के बाद , कृष्ण ने एक गीत लिखा जो बहोत लोकप्रिय हुआ , बोल थे , “सुनो सुनो ऐ दुनियावालों, बापू की ये अमर कहानी …” ये गीत मोहम्मद रफ़ी ने गाया गया था और हुस्नलाल भगतराम ने इसे संगीतबद्ध किया था फिर उन्होंने 1949 की फिल्म ,’बड़ी बहन’ और ‘लाहौर’ , के साथ बतौर गीतकार बड़ी सफलता का स्वाद चखा।
कैसे बन गए सबसे अमीर रचनाकार :-
राजेंद्र कृष्ण के ज़्यादातर गीत संगीतकार सी. रामचंद्र के संगीत निर्देशन में हैं पर उन्होंने उस दौर के क़रीब क़रीब सभी संगीतकारों के साथ काम किया और देखते ही देखते उन्हें हिंदी सिनेमा का सबसे अमीर लेखक माना जाने लगा इसकी एक बड़ी वजह ये भी मानी जाती है कि वो घुड़दौड़ में 4600,000 रुपये का जैकपॉट जीत गए थे और सत्तर के दशक के आखिर में ये रकम बहुत बड़ी थी।
कैसे देते थे उनके गीत मोहब्बत के मारों को हौसला :-
उनके कुछ गानों में ये ख़ासियत है कि वो दिल के हाथों मजबूर हुए लोगों को हिम्मत देते हैं,वाक़िफ़ कराते हैं इश्क की फितरत से ,कैसे? तो उनके कुछ गीत याद करिए , जैसे:- “हम प्यार में जलने वालों को चैन कहां, आराम कहां…” ,”ये ज़िंदगी उसी की है…” ,”जाग दर्द ए इश्क जाग…” , “ज़िंदगी प्यार की दो चार घड़ी होती है….” , “ये हवा ये रात ये चांदनी ….”,”मेरा दिल ये पुकारे आजा …”,”यूं हसरतों के दाग़ मुहब्बत में …”,”जाना था हमसे दूर …”,”उनको ये शिकायत है कि हम कुछ नही कहते…” ,”जो उनकी तमन्ना है …” , “मैं तेरी नज़र का सुरूर हूं …”,”रंग दिल की धड़कन भी लाती तो होगी…”,”पल पल दिल के पास तुम रहती हो.. “.ये वो गीत हैं जो ग़म को इश्क़ की दौलत बताते हैं और जीना सिखाते हैं।
देशभक्ति गीतों से लेकर भजनों तक सब कुछ था उनके गीतों में :-
राजेंद्र कृष्ण के कुछ और बेमिसाल गीत तो ऐसे हैं कि हर भारतवासी के मन की आवाज़ हैं जी हां, जैसे -“जहां डाल-डाल पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा वो भारत देश है मेरा..” ,”सुख के सब साथी दुख में न कोई…”।रोमांटिक सांग्स की बात करें तो ,”इतना न मुझसे तू प्यार बढ़ा….”जैसे गाने आज की युवा पीढ़ी को भी आकर्षित करते हैं तो वहीं हँसाता गुदगुदाता ‘पड़ोसन’ फिल्म का गीत तो सबको भाता ही है “मेरे सामने वाली खिड़की में एक चाँद का टुकड़ा रहता हैं. …”.
क्यों ज़्यादा लोग उन्हें नहीं पहचानते थे :-
दरअसल इतने खूबसूरत गीतों को हमें देने वाले,राजेंद्र कृष्ण को उनके चाहने वाले कम ही पहचानते और मिल पाते थे क्योंकि उन्हें अपने कामों का प्रचार करना पसंद नहीं था इसलिए वो ज़्यादा तस्वीरें भी नहीं खिंचवाते थे वो केवल ज़िंदगी को समझने की कोशिश में रहते थे ,इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए वो अपने गीतों के ज़रिए हमें बहोत कुछ सिखा कर दिलनशीं लफ्ज़ों का ताना बाना हमारे नाम कर गए ।
आख़री वक़्त तक चलती रही क़लम :-
राजेंद्र कृष्ण 23 सितंबर 1987 को इस फानी दुनिया को अलविदा कह गए पर अपनी ज़िंदगी के आख़री दिनों में भी उनकी क़लम चल रही थी और वो फिल्म ‘आग का दरिया’ के लिए गीत लिख रहे थे जो उनके जाने के दो साल बाद 1990 में प्रदर्शित की गई।उनकी याद में म्यूज़िक कम्पनी एचएमवी ने उनके 12 गानों वाला एक एलपी निकाला जो हमारे लिए बहुत क़ीमती है , और संगीत प्रेमियों के लिए तो उनका हर एक गीत अमूल्य धरोहर है।
एवीएम स्टूडियो के लिए उन्होंने 18 तमिल फिल्मों के लिए भी गीत और संवाद लिखे। उनकी आखरी फ़िल्म ‘अल्ला रक्खा’ 1986 में आई और अनुराधा पौड़वाल का गाया गीत ‘रिश्ता ये मोहब्बत का’ फिल्म आग का दरिया के लिए उनका आख़िरी गीत माना जाता है जो उनके इस दुनिया से जाने के बाद आया ,लेकिन राजेंद्र कृष्ण अपने गीतों के ज़रिये एक सुरीली धड़कन बनके हमेशा अपने चाहने वालों के दिलों में धड़कते रहेंगे ।