हसदेव अरण्य की स्थिति का जिम्मेदार कौन,कैसे होगी भरपाई?

छत्तीसगढ़ में स्थित हसदेव अरण्य 170,000 हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैला है. ये चर्चा में इसलिए है क्योंकि कोयले के लिए यहाँ के पेड़ों की कटाई हो रही है जिसका यहाँ का जनजातीय समुदाय बड़े स्तर पर विरोध कर रहा है.

अभी तक 30 हज़ार से ज्यादा पेड़ काटे जा चुके हैं और 2 लाख और कटने हैं.लेकिन ये पेड़ कट क्यों रहे हैं? दरअसल राजस्थान में रौशनी करने के लिए इस राज्य को अँधेरे की गर्त में धकेला जा रहा है.

कैसे?

2021 में इंडियन कौंसिल ऑफ़ फॉरेस्ट्री रिसर्च एंड एजुकेशन,मिनिस्ट्री ऑफ़ एनवायरनमेंट,फारेस्ट एंड क्लाइमेट चेंज की एक रिपोर्ट के मुताबिक हसदेव अरण्य मध्य भारत का  लार्जेस्ट अन फ्रैग्मेण्टेड फारेस्ट है यानी ये देश का पहला सबसे गैर विभाजित जंगल है बाकि के जंगल कई हिस्सों में बिखरे हुए हैं लेकिन इसमें ऐसा नहीं है..ये बायोडायवर्सिटी रिच एरिया है.छत्तीसगढ़ के उत्तरी भाग में ये जंगल तीन जिलों कोरबा,सूजापुर और सुरगुजा से होते हुए गुजरता है। जंगल बहुत घना है. यहाँ कई तरह के पेड़ों और जानवरों की प्रजातियां पाई जाती हैं. क्षेत्र में आदिवासियों की बड़ी संख्या है जो इस जंगल पर आश्रित हैं. भारतीय वन्यजीव संस्थान की एक रिपोर्ट में यह भी अनुमान लगाया गया है कि स्थानीय समुदायों की वार्षिक आय का लगभग 60-70% वन आधारित संसाधनों से आता है.हसदेव का जंगल का नाम यहाँ से बहने वाली नदी हसदेव के नाम पर है जो महानदी की सहायक है. इन सब के अलावा यहाँ हाथियों की संख्या भी रहती है और जंगलों की कटाई से हाथियों ने पलायन करना भी शुरू कर दिया है जिससे मैन एनिमल कनफ्लिक्ट की घटनाओं में इजाफा होगा। हालाँकि छत्तीसगढ़ में हाथियों की 1 फ़ीसदी जनसँख्या ही रहती है लेकिन उनपर होने वाली हिंसा की घटनाएं ज्यादा हैं।2022 में icfre और वाइल्डलाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करती है कि माइनिंग के कारण एरिया की बायोडायवर्सिटी बड़े स्तर पर प्रभावित होगी।।।

जंगल की कटाई क्यों हो रही है?

बायोडायवर्सिटी रिच एरिया होने के अलावा ये एरिया मिनरल रिच है.कोल मिनिस्ट्री के मुताबिक इसकी जमीन के नीचे 2032 टन यानि 203 करोड़ टन कोयले का अनुमान लगाया गया है और ये सिर्फ अनुमान है. कई जानकारों के मुताबिक यहाँ 5000 टन से ज्यादा का कोयला है.हसदेव अरण्य कोल फील्ड का कुल क्षेत्रफल 11880 स्क्वायर किलोमीटर है जिनमे 23 कोल ब्लॉक्स हैं.इस कोयले के खनन की मंजूरी  सरकार ने दे दी है और पेड़ों की कटाई शुरू हो गईं है और ये कोयला राजस्थान राज्य विद्युत् निगम लिमिटेड को जाएगा जिससे राजस्थान में बिजली उत्पादन होगा।यहां से कुछ सवाल खड़े होते हैं कि राजस्थान जहाँ दिन भर सूर्य की रौशनी होती है वहां बिजली उत्पादन के लिए सोलर एनर्जी का इस्तेमाल क्यों नहीं हो रहा है.सरकार का कहना है कि ये अपने तरह का आख़िरी खनन है और ये कांग्रेस सरकार द्वारा शुरू किया गया था.अब आगे ऐसा नहीं किया जाएगा  लेकिन एक डाटा के मुताबिक भारत में 60 फ़ीसदी बिजली उत्पादन कोयले के जरिये होता है.जो ग्रीनहाउस एमिशन का एक बड़ा कारण है और जिस तरह से जनसँख्या बढ़ रही है और शहरीकरण हो रहा है जाहिर सी बात है बिजली का उपयोग बढ़ेगा ही तो क्या ऐसे ही खनन होते रहेंगे?क्या आर्थिक विकास के लिए पर्यावरणीय और सांस्कृतिक विकास को लगातार दरकिनार करते रहा जाएगा?और भी कई सवाल हैं. जिनके जवाब आने वाले समय में साफ हो जाएंगे।

जंगल की कटाई का इतिहास 10 साल पुराना

साल 2010 में छत्तीसगढ़ में बीजेपी की सरकार थी और उस सरकार ने माइनिंग के लिए फारेस्ट क्लीयरेंस का रिकमेन्डेशन दिया था parsa east and kanta basan coal field के लिए.ये कोल फील्ड अडानी एंटरप्राइज के द्वारा रन किया जाता है.जब इसके बारे में वहां के लोकल्स को पता चला तो बड़े  स्तर पर प्रोटेस्ट शुरू हो गए.मामला कोर्ट तक पहुंच गया.अब साल 2011 में आते हैं केंद्र पर कांग्रेस की सरकार थी. सरकार के पर्यावरण मंत्रालय की फारेस्ट एडवाइजरी कमिटी ने माइनिंग के खिलाफ फैसला सुनाया लेकिन उस वक्त कांग्रेस के पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने डिसिशन को ओवररूल कर दिया और कहा कि माइनिंग होगी लेकिन ऐसे एरिया में होगी जो डेन्स नहीं है यानि वहां फारेस्ट कवर ज्यादा नहीं है.अब 2012 में पर्यावरण मंत्रालय के द्वारा माइनिंग का पहला फेज क्लियर कर दिया गया.जिसके अंदर 762 हेक्टेयर में माइनिंग होनी थी और इसमें 137 मिलियन टन कोयला निकाला जाना था फिर मार्च 2012 में दूसरे फेज की भी क्लीयरेंस मिली जिसके अंदर 1136 हेक्टेयर का एरिया कोल माइनिंग के लिए अलॉट किया गया.पिछले साल जब छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार थी उस वक्त मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा था कि आर्थिक विकास के लिए माइनिंग जरुरी है.2023 के विधानसभा चुनावों में सत्ता बदली और मुख्यमंत्री बने विष्णुदेव साय.13 दिसंबर को इन्होने शपथ ग्रहण की और मंत्रिमंडल का गठन भी नहीं हुआ कि शपथग्रहण के मात्र 1 हफ्ते बाद ही जंगल की कटाई शुरू हो गयी.इसमें बड़े स्तर पर स्थानीय प्रोटेस्ट कर रहे हैं.चिपको आंदोलन जैसा नज़ारा देखने को मिल रहा है.पुलिस ने यहाँ लोगों पर लाठीचार्ज भी किया।हम विकास की बात कर रहे हैं और जंगलों की कटाई को विकास के रूप में देखा जा रहा है तो इस बारे में भी बात कर लेना जरुरी है.

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दरअसल विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जो प्रगति और सकारात्मक बदलाव लाती है.अर्थशास्त्र में नोबेल प्राइज जीतने वाले अमर्त्य सेन के मुताबिक विकास का अर्थ स्वतंत्रता है.उनका तर्क है कि परस्पर संबंधित स्वतंत्रताएँ पाँच प्रकार की होती हैं, राजनीतिक स्वतंत्रता, आर्थिक सुविधाएँ, सामाजिक अवसर, पारदर्शिता और सुरक्षा। सार्वजनिक शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, सामाजिक सुरक्षा जाल, अच्छी व्यापक आर्थिक नीतियां, उत्पादकता और पर्यावरण की रक्षा करके स्वतंत्रता का समर्थन करने में राज्य की भूमिका है.इसमें पर्यावरण की सुरक्षा भी मेंशन की गयी है.विकास के जितने भी आयाम हैं उन सब पर काम करके ही सम्पूर्ण विकास किया जा सकता है.महज एक पक्ष पर ध्यान देकर दुसरे पक्ष को नजरअंदाज करने से एक सामाजिक असंतुलन फैलता है जिसका उदाहरण है हसदेव के जंगलों की कटाई।

सबसे बड़ी बात कि ये क्षेत्र संविधान की पांचवी अनुसूची में है यानि किसी भी तरह के खनन से पहले यहाँ की ग्रामसभाओं से अनुमति लेना जरुरी है लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं किया गया. कांग्रेस और बीजेपी एक दुसरे पर दोषरोपण कर रही हैं पर ये कोई जरुरी मुद्दा नहीं है. मुद्दा ये है कि इन सबके बीच पिस रहे हैं यहाँ के स्थानीय,आदिवासी जिनका जीवन इस जंगल पर आश्रित है.लोगों के लिए हो सकता है ये एक राजनीतिक मुद्दा लेकिन इनके लिए ये मामला जल,जीवन और जंगल का है.

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