Haryana Chunav Result:130 दिन पहले जब लोकसभा चुनाव के नतीजे आए थे, तब बीजेपी के खिलाफ बड़ी एंटी इनकंबेंसी देखने को मिली थी. हालांकि, विधानसभा चुनाव के रिजल्ट ने एंटी इनकंबेंसी को धत्ता बता दिया है. सवाल उठ रहा है कि आखिर बीजेपी और आरएसएस ने इतनी बड़ी एंटी इनकंबेंसी को कैसे मैनेज किया?
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आपको बता दे कि 4 जून 2024 को जब लोकसभा के नतीजे आए तो हरियाणा में बीजेपी की सरकार के खिलाफ भयंकर एंटी इनकम्बेंसी देखने को मिली. लोकसभा सीटों के आंकड़ों में जहां बीजेपी हाफ हो गई, वहीं विधानसभा वाइज भी पार्टी का परफॉर्मेंस फिसड्डी ही रहा. हालांकि, इस नतीजे के 130 दिन बाद आए विधानसभा चुनाव के परिणाम ने सबको चौंका दिया है.
4 महीने पहले ग्राउंड में उतरे RSS के पदाधिकारी। haryana election results 2024
आपको बता दे कि 2023 में मध्य प्रदेश चुनाव के दौरान जिस तरह से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पदाधिकारी फील्ड में उतरे थे, उसी तरह हरियाणा में संघ के पदाधिकारियों ने मोर्चा संभाला. जुलाई के मध्य में संघ के पदाधिकारियों ने सीधे तौर पर हरियाणा की कमान संभाली.
इसके साथ ही संघ के फीडबैक के आधार पर ही बीजेपी ने रणनीति तैयार की. कई मौके ऐसे आए, जब बीजेपी के संगठन और सरकार के बड़े लोगों को फैसले की जानकारी भी नहीं मिल पाती थी.
जाट बनाम गैर-जाट की रणनीति तैयार किया। vidhan sabha election result 2024
RSS के सूत्रों के मुताबित , पहले की तरह ही बीजेपी ने हरियाणा में जाट बनाम गैर जाट की रणनीति तैयार की इसके साथ ही संघ के पदाधिकारियों ने गांव-गांव घूम कर गैट-जाट वोटरों को साधते रहे. हरियाणा की राजनीति में 2014 से ही जाट बनाम गैर-जाट वोटों का ट्रेंड चल रहा है.
कहा जाता है कि हरियाणा के 36 में से जाट एक तरफ हैं, जबकि 35 बिरादरी एक तरफ. इन 35 बिरादरी में दलित अहीर, गुर्जर और ब्राह्मण जैसे बड़ी आबादी वाली जातियां भी है.
हरियाणा के परिणाम पर भी इसका असर देखने को मिला. अहीरवाल और गुर्जर लैंड में एंटी इनकम्बेंसी के बावजूद बीजेपी ने बढ़िया प्रदर्शन किया है.
खट्टर को साइड कर कोर वोटर्स को जोड़ा। haryana election results
इस पूरे चुनाव में बीजेपी का खट्टर फैक्टर भी काफी अहम रहा। जिस तरह से हरियाणा में बीजेपी के कोर वोटरों में सबसे ज्यादा नाराजगी मनोहर लाल खट्टर को लेकर ही थी. कार्यकर्ताओं का कहना था कि खट्टर किसी की सुनते नहीं हैं. बीजेपी ने चुनाव से पहले सीएम कुर्सी से खट्टर को तो हटा दिया, लेकिन लोकसभा के टिकट बंटवारे में खट्टर का दबदबा कायम रहा.
इसके साथ ही विधानसभा चुनाव में आरएसएस ने खट्टर के दबदबे को पूरी तरह से खत्म कर दिया. खट्टर सिर्फ एक बार कुरुक्षेत्र की रैली में प्रधानमंत्री मोदी के साथ मंच पर दिखे. इसके बाद बड़े नेताओं ने खट्टर के साथ कोई रैली नहीं की.
टिकट वितरण में भी खट्टर के करीबियों को तरजीह नहीं दी गई.
कांग्रेस की गुटबाजी वाली सीटों पर फोकस
गौरतलब है कि कांग्रेस हरियाणा चुनाव में 3 धड़ो में बंट गई थी. एक धड़ा भूपिंदर सिंह हुड्डा और उदयभान का था. दूसरा धड़ा कुमारी सैलजा और रणदीप सुरजेवाला का और तीसरा धड़ा कैप्टन अजय यादव का, जिसमें कुछ अहीर और गुर्जर नेता शामिल थे.
कांग्रेस के टिकट बंटवारे में हुड्डा गुट ने बाजी मार ली, जिसके बाद से पार्टी के भीतर गतिरोध शुरू हो गया. आरएसएस ने इस मौके को तुरंत लपका. संघ ने उन सीटों पर विशेष फोकस किया, जहां कांग्रेस गुटबाजी की वजह से फंसी हुई थी.
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