Hariyalika Teej – हरतालिका तीज और सोलह श्रृंगार – पार्वती स्वरूपा नारी की दिव्यता का उत्सव – भारतीय संस्कृति में स्त्री के श्रृंगार को केवल बाह्य सजावट नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और पारिवारिक परंपरा से जोड़ा गया है। विशेषतः हरतालिका तीज, जिसे सुहागिन स्त्रियां अखंड सौभाग्य,पति की लंबी आयु और पारिवारिक समृद्धि हेतु व्रत और उपवास के साथ मनाती हैं-इस दिन “सोलह श्रृंगार” का विशेष महत्व है। यह श्रृंगार केवल सजने-संवरने का उत्सव नहीं, बल्कि मां पार्वती के आदर्श को जीवन में उतारने का प्रयास है। यह उस स्त्री-शक्ति की स्मृति है, जिसने कठोर तप कर भगवान शिव को अपने आराध्य रूप में प्राप्त किया और संपूर्ण नारी शक्ति,समूचे सांसारिक व्यवस्थाओं और मानव समाज को धैर्य, समर्पण, प्रेम और आत्मबल की सशक्त प्रमाण दिया ।
हरतालिका तीज – एक दिव्य व्रत, एक अद्भुत प्रतीक
हरतालिका तीज भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। यह पर्व विशेष रूप से संपूर्ण भारत सहित उत्तर भारत, मध्य भारत और नेपाल के कुछ हिस्सों में अत्यंत श्रद्धा और उत्साह से मनाया जाता है। यह व्रत मुख्यतः सुहागिन महिलाओं द्वारा किया जाता है, इस व्रत को कन्याएं भी यह व्रत करती हैं क्योंकि माता पार्वती ने इच्छित वर पाने ही इस व्रत को किया था जो सार्थक ऐसी कामना से ही जहां सुहागने अपने सौभाग्य की रक्षा हेतु तीजा का उपवास करती हैं वहीं किशोरियां भी इसे माता पार्वती को प्रशन्न करने हरितालिका तीज का व्रत करतीं हैं ताकि उन्हें एक आदर्श,सात्विक और शिवस्वरूप जीवनसाथी मिले। हरतालिका शब्द दो शब्दों हरत यानि हरण करना और ‘आलिका’ यानि सखी से बना है। कथा के अनुसार, देवी पार्वती जी की सखियों ने उन्हें उनके पिता हिमालय से छुपाने, चुपचाप अगवा किया और एक निर्जन वन में ले जाकर तपस्या के लिए स्थान दिलवाया ताकि वे अपनी तपस्या निर्विघ्न पूर्ण हो और उनका विवाह शिव जी से हो सके।
यही वह अवसर है जब माता पार्वती ने अपने आराध्य पति के नाम से सोलह श्रृंगार करके भगवान शिव को अपने समर्पण और प्रेम का प्रतीक दिखाया।
सोलह श्रृंगार – सौंदर्य, श्रद्धा और संकल्प का संगम
भारतीय नारी के श्रृंगार को सोलह प्रकार की श्रेणी में रखा गया है जो केशविन्यास से शुरू होकर पैर के महावर तक गिनें जाते , जिन्हें “सोलह श्रृंगार” कहा जाता है। यह श्रृंगार केवल शारीरिक आकर्षण नहीं, बल्कि उसमें छिपी आध्यात्मिकता, प्रतीकात्मकता और ऊर्जा संतुलन का भी प्रतीक है। विशेषतः हरतालिका तीज के दिन किया गया श्रृंगार पार्वती जी के प्रति भक्ति, शिव-पार्वती के आदर्श विवाह की स्मृति और अपनी वैवाहिक जिम्मेदारियों के प्रति निष्ठा ,प्रेम का प्रतीक होता है।
नीचे सोलह श्रृंगार और उनके धार्मिक, सांस्कृतिक एवं प्रतीकात्मक अर्थों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत है।
माथे की बिंदी – यह आज्ञा चक्र (तृतीय नेत्र) का जागरण करने का प्रतिक है जिसका भाव नारी की मानसिक शक्ति और विवेक को जागृत करता है,मान्यता है कि इससे मां पार्वती की तरह नारी अधिकार और अपने को निर्णय की क्षमता प्राप्त को प्राप्त करती हैं। मांग का कुमकुम सिंदूर – सौभाग्य का स्थायी चिन्ह,मानव समाज सभ्यता और पारिवारिक अनुशासन व्यवस्था और नारी सम्मान का प्रतिक व इसका महत्वपूर्ण भाव पति के प्रति समर्पण और अपने दाम्पत्य जीवन की परवाह।
मांग का टीका – भाल का सौंदर्य और ऊर्जा संतुलन सहित जीवन में संतुलन, मर्यादा और प्रेम बनाए रखने का भाव उत्पन्न करता है। आंखों का काजल (अंजन) – आंखों व चेहरे की सुंदरता सहित दृष्टि की पवित्रता और बुरी नजर से बचाव का परिचायक।नाक की नथनी – सौंदर्य व रिश्तों की परवाह और संयम के भाव सहित पारंपरिकता और गृहस्थ जीवन के प्रति नारीत्व का आदर का प्रतीक मन जाता है।कान के झुमके – कानों व चेहरे की सुंदरता और सुंदरता से उपजी सकारात्मकता से प्रवीण व्यव्हार के भावों सहित केवल शुद्ध वाणी , शुभ वचनों का उच्चारण और सद्गुणों का श्रवण कर सद-व्यव्हार की सोच ।
गले का हार या मंगलसूत्र – हार्दिक प्रशन्नता-सौंदर्य और सौभाग्य-वैवाहिक जीवन की पवित्रता और प्रेम और निष्ठा का भाव।
बाजुओं यानि बाहों का श्रृंगार बाजूबंद – शक्ति और सौंदर्य का संगम के साथ देवी पार्वती जैसी आंतरिक शक्ति का बोध।
कलाइयों की शान चूड़ियां – सुख-शांति और समृद्धि ,जीवन में रंग, रचनात्मकता और माधुर्य का प्रवेश। मेहंदी , हाथों की शोभा – सुंदरता और सृजनात्मकता के साथ पति से प्रेम और सौभाग्य का प्रतिक व पीटीआई – पत्नी के प्रेम की गहराई।
करधनी (कमरबंद) – संयम-दृढ़ता और सशक्तता का प्रतीक और गृहस्थ धर्म का आदर और कर्तव्यों के प्रति सजगता।
पैरों की पायल (घुंघरू वाली) – सौंदर्य के साथ-साथ जीवन संगीत का मेल और घर को आनंदित व सकारात्मक ऊर्जा से संचारित करने वाला भाव।पांव की शोभा बिछुए – पैरों की सज़ावट,विवाहित होने का प्रतीक सहित जिम्मेदारी और आत्मविस्मृति का भाव।सुगन्धित इत्र – अच्छाई भरी सोच, पवित्रता से परिचय ,आत्मा की शुद्धता और सकारात्मक विचारों तथा ऊर्जा का प्रसार। केश सज्जा में बालों का गजरा – स्त्री का सम्पूर्ण व्यक्तित्व,सुंदरता की पूर्णता व संतुलन, गरिमा और आत्मविश्वास। आलता महावर – श्रृंगार की पूर्णता , आरंभ से लेकर सुखद परिणाम स्वरूप।
पार्वती जी और सोलह श्रृंगार – एक प्रेरणास्रोत
मां पार्वती ने कठिन तप और अडिग श्रद्धा से शिवजी को प्राप्त किया,उन्होंने जो श्रृंगार किया, वह मात्र सौंदर्य प्रदर्शन नहीं, आत्मा के संपूर्ण समर्पण का प्रतीक था। उनका सोलह श्रृंगार उनकी साधना, स्त्रीत्व और शक्ति का समन्वय था। हरतालिका तीज का व्रत उसी दिव्यता का स्मरण है। जब स्त्री सोलह श्रृंगार करती है, वह केवल सुंदर नहीं दिखना चाहती, वह देवी पार्वती की शक्ति को अनुभव करती हैं , साक्षात्कार करती हैं बल्कि वो स्वयं पारवती का ही स्वरुप धारण करना चाहती है ताकि उनकी तरह उनके दाम्पत्य जीवन में सभी सुहागिनें सहनशील, आत्मनिर्भर, प्रेममयी और तेजस्व का निर्वाहकर अपने वैवाहिक जीवन को सार्थकता प्रदान कर सकें।
आधुनिक सन्दर्भ में सोलह श्रृंगार का स्थान
आज के बदलते समाज में श्रृंगार को केवल फैशन या दिखावे से जोड़ दिया गया है। परंतु हरतालिका तीज हमें यह याद दिलाती है कि श्रृंगार एक संस्कार है,स्त्री के व्यक्तित्व को गढ़ने का, उसके भीतर छिपी देवीशक्ति को जागृत करने का। यह स्त्री को उसके आध्यात्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों से जोड़ता है।
विशेष – हर नारी में छिपी है पार्वती – हरतालिका तीज केवल एक पर्व नहीं, एक विचार है,कि स्त्री अगर चाहे तो संसार की सबसे कठोर परिस्थितियों में भी प्रेम, धैर्य, और आत्मबल से विजय प्राप्त कर सकती है। सोलह श्रृंगार कोई “लुक” नहीं, बल्कि एक स्त्री की जीवन यात्रा, उसकी आस्था और उसकी आत्मा का श्रृंगार है। यह पर्व हमें सिखाता है कि श्रद्धा और स्त्रीत्व का सही अर्थ क्या है,शक्ति, समर्पण और संस्कार।