Hariyalika Teej 2025 Ki Katha: दक्ष का अहंकार,शिव का अपमान और सती के पुनर्जन्म की पौराणिक कथा

Haritalika Teej 2025 Ki Katha Hindi Meiदक्ष का अहंकार,शिव का अपमान और सती के पुनर्जन्म की पौराणिक कथा हिंदू पौराणिक कथाओं में दक्ष प्रजापति और भगवान शिव के बीच का संघर्ष एक प्रसिद्ध प्रसंग है। यह कथा अहंकार, भक्ति और दैवीय न्याय के विषयों को गहराई से दर्शाती है।

दक्ष, जो स्वयं ब्रह्मा के पुत्र और एक प्रतापी राजा थे, शिव को अपनी पुत्री सती (और बाद में पार्वती) के योग्य नहीं मानते थे। इस विवाद ने एक भीषण ट्रेजडी को जन्म दिया, जिसमें सती ने आत्मदाह किया और पुनर्जन्म लेकर पार्वती के रूप में शिव से पुनः विवाह किया।

इस लेख में हम इस पूरी जनश्रुतियों के आधार पर परी घटनाक्रम को विस्तार से बता रहे हैं, जिसमें दक्ष का अहंकार, सती का बलिदान, पार्वती का पुनर्जन्म और अंततः दक्ष का पतन शामिल है। जबकि हरितालिका तीज से भी इस घटनाक्रम का गहरा संबंध है क्योंकि सती ने अपने पुनर्जन्म में भी पति के रूप में जब शिव के अपमान का बदला लेने और पुनः भगवान शिव को पति रूप में पानें जो जप किया था तभी से हरितालिका तीज व्रत कर महिलाएं अखंड सौभाग्य प्राप्त करने इसे हर वर्ष बड़ी श्रद्धा भाव से इसे करतीं आ रही हैं।

Haritalika Teej 2025 Ki Katha Hindi | अहंकारी राजा दक्ष और उनकी विशेषता

दक्ष प्रजापति, ब्रह्मा के मानस पुत्रों में से एक थे और उन्हें सृष्टि के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका दी गई थी। वे एक शक्तिशाली राजा और यज्ञों के विशेषज्ञ थे। उनकी गिनती प्रजापतियों में होती थी, जो सृष्टि के विस्तार के लिए उत्तरदायी थे। उपरोक्त विभिन्न विशेषताओं के चलते ही राजा दक्ष में अहंकार आ गया था।

राजा दक्ष हमेशा ही अपने पद और प्रतिष्ठा को लेकर अत्यधिक गर्वित होते। उनका मानना था कि शिव, जो एक साधु बल्कि जोगी हैं और श्मशान में निवास करते हैं, उनके राजसी परिवार के अनुरूप नहीं हैं। वे शिव की तपस्या और उनके रहन-सहन को “असभ्यता का सूचक” मानते थे।

राजा दक्ष का शिव से द्वेष का कारण

– एक कथा के अनुसार, ब्रह्मा के एक यज्ञ में दक्ष ने शिव का अपमान किया था, जिसके कारण शिव ने उन्हें श्राप दिया । दक्ष ने शिव को “अघोरी” और “असामाजिक” कहकर उनकी निंदा की। इसी द्वेष के कारण दक्ष ने अपनी पुत्री सती के शिव से विवाह का विरोध किया।

सती-शिव विवाह और दक्ष का विरोध

सती, दक्ष की पुत्री थीं, जिन्होंने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। शिव ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया और उनसे विवाह कर लिया।

शिव-सती विवाह पर राजा दक्ष की प्रतिक्रिया

दक्ष इस विवाह से बहुत नाराज हुए, क्योंकि वे शिव को अपनी पुत्री के लिए अयोग्य समझते थे। उन्होंने सती को मनाने का प्रयास किया, लेकिन सती शिव की अनन्य भक्त थीं अतः वे अपने निर्णय पर अडिग रहीं और अंततः अपने आराध्य भगवान भोलेनाथ का वरण कर लिया। यह जानकर राजा दक्ष अति क्रोधित हुए। इसके बाद राजा दक्ष ने शिव और सती को अपने राज्य में हमेशा के लिए आने से मना कर दिया।

राजा दक्ष का यज्ञ और सती का आत्मदाह

शिव-सती के विवाहोपरांत राजा दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने समस्त ब्रह्माण्ड के देवी-देवताओं को आमंत्रित किया लेकिन द्वेषवश नहीं अपमान करने जानबूझकर शिव और सती को नहीं बुलाया और इस तरह शिव-सती विवाह जो उनकी इच्छा के विरुद्ध हुआ था उसे दक्ष अपना अपमान मानते थे और इसी बात का बदला लेने उन्होंने राजा महायज्ञ में शिव और सती को न बुलाकर समूचे ब्रह्मांड में उन्हें अपमानित किया।

सती ने सुना कि उनके पिता एक भव्य यज्ञ कर रहे हैं, लेकिन उन्हें आमंत्रित नहीं किया गया। तब उन्हें इस बात से न सिर्फ दुःख व कष्ट हुआ बल्कि वो अत्यंत क्रोधित हो उठीं और अपने पिता से मिलने जाने लगी शिव ने उन्हें जाने से मना किया, लेकिन सती जिद करके चली गईं। जब सती यज्ञ में पहुंची तो यज्ञस्थल पर राजा दक्ष ने अपनी पुत्री सती का स्वागत नहीं किया और शिव के प्रति अपमानजनक शब्द कहे।

दक्ष ने कहा, “तुम्हारे पति एक भिखारी हैं, जो श्मशान में रहते हैं। तुम्हारा विवाह हमारे कुल के लिए कलंक है।” अपने पिता से ही अपने पति के लिए ऐसे कठोर वचन सती ,सहन न कर सकीं उन्होंने तत्काल ही महायज्ञ के अग्नि कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए। इस घटना ने समस्त ब्रह्मांड को हिला दिया और शिव को क्रोधित कर दिया।

भगवान शिव का क्रोध और दक्ष का पतन

जब शिव को सती के आत्मदाह का पता चला, तो उनका क्रोध भयानक रूप लेकर प्रकट हुआ। क्रोधित हो शिव ने अपने जटाओं से वीरभद्र नामक एक भयंकर रुद्रावतार को उत्पन्न किया। वीरभद्र ने राजा दक्ष के यज्ञ को नष्ट कर दिया और दक्ष का सिर काट दिया। बाद में, दक्ष को पुनर्जीवित किया गया, लेकिन उनका सिर बकरे का लगा दिया गया।

अभिमानी राजा दक्ष का पश्चाताप

इस घटना के बाद दक्ष को अपनी गलती का एहसास हुआ। उन्होंने शिव की महिमा को स्वीकार किया और उनसे क्षमा याचना कर अपनी भूल का पश्चाताप किया।

सती का पुनर्जन्म और शिव-पार्वती विवाह

सती का पार्वती के रुप में पुनर्जन्म हुआ । राजा हिमालय के यहां पार्वती के रूप में सती पुनः जन्म ले लेती हैं और पुनः भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या करती हैं बस लंबे समय तक उनके तप को देख भगवान शिव ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार कर उनसे विवाह कर लिया। राजा दक्ष ने शिव की महिमा को खूब समझ लिया था और यही वजह थी कि यह जानकर कि सती ही पार्वती के रूप में जन्मी हैं लेकिन इस बार राजा दक्ष ने शिव और पार्वती के विवाह का विरोध नहीं किया।

विशेष – राजा दक्ष और भगवान शिव की यह कथा हमें अहंकार के परिणाम और भक्ति की शक्ति के बारे में सिखाती है। दक्ष का अहंकार उनके पतन का कारण बना, जबकि सती और पार्वती की भक्ति ने उन्हें शिव का हृदय सम्राज्ञी बना दिया। यह कथा आज भी हमें यह संदेश देती है कि अहंकार मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है, जबकि प्रेम और समर्पण सर्वोच्च सत्य है यह मानव समाज के रहवासियों के लिए अनुकरणीय है जबकि हमारे शास्त्रों में इस कथा का वर्णन आध्यात्मिक शक्ति को स्थापित करता है।

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