हरिवंशराय बच्चन और जीवन दर्शन सिखाती उनकी मधुशाला

न्याज़िया बेग़म

Harivansh rai bachchan ki madhushala: आज हम उनकी पुण्यतिथि के मौके पर क्या भूलें क्या याद करें, मधुशाला में मदहोश रहे या एकांत संगीत सुनें जाने कैसे पथरीली राहों में वो फूलों की सेज सजाते थे वो, कल्पना के सागर से बरसों की प्यास बुझाते थे वो, जी हां, अपनी रचनाओं में हालावाद को उजागर करते हरिवंश राय बच्चन ने हर दफा कुछ अलग कुछ अनमोल रचा है अपनी लेखनी से, मधुशाला ने तो जाने किस-किस को राह दिखाई है आशा की नई जोत जगाई है
जीवन का दर्शन कराती इस रचना में एक सौ पैंतीस रूबाइयां हैं, इसमें हर पाठकगण को पीने वाला और अपनी पुस्तक को मधुशाला बताया गया है जो आभास है जीवन के माधुर्य का, ज़रा गुनगुना के देखिए :-
मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला,
प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला,
पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा,
सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला।

प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर पूर्ण निकालूँगा हाला,
एक पाँव से साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला,
जीवन की मधुता तो तेरे ऊपर कब का वार चुका,
आज निछावर कर दूँगा मैं तुझ पर जग की मधुशाला।

प्रियतम, तू मेरी हाला है, मैं तेरा प्यासा प्याला,
अपने को मुझमें भरकर तू बनता है पीनेवाला,
मैं तुझको छक छलका करता, मस्त मुझे पी तू होता,
एक दूसरे की हम दोनों आज परस्पर मधुशाला।

बच्चन जी ने इस कविता में मधु, मदिरा, हाला, प्याला, साकी, और मदिरालय जैसे शब्दों को प्रतीक बनाकर जीवन की जटिलताओं का सुंदर चित्रण किया है.
सरल शब्दों में जीवन के असली उद्देश्य की तरफ़ इशारा किया गया है.
रूहानी शराब के लुत्फ़ में खुद को पाने का रास्ता दिखाया गया है
इस मधुशाला में उनका ही स्वागत है जिनके लिए परमात्मा एक है
जो कण-कण में ईश्वर को देखने की इच्छा रखते हैं,

देखें ! उन्होंने मधुशाला की गागर में जीवन के सागर को भर लिया है इसलिए हम तो यही कहेंगे कि इन पंक्तियों में सिमट के न रह जाइए बल्कि इसे पूरा पढ़िए और साहित्य की इस अनुपम रचना के इस अथाह सागर में गोते लगाइए ।
उनकी कृति दो चट्टानें को 1968 में हिन्दी कविता के साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इसी वर्ष उन्हें सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार तथा एफ्रो एशियाई सम्मेलन के कमल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। बिड़ला फाउण्डेशन ने उनकी आत्मकथा के लिए उन्हें सरस्वती सम्मान दिया था। बच्चन को भारत सरकार द्वारा 1976 में साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया ।
सर्वाधिक लोकप्रिय कवियों में गिने जाने वाले हरिवंश जी ने
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेजी में एम. ए. किया और हिंदी में ऐसी निपुणता थी कि भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में हिन्दी विशेषज्ञ रहे, अनन्तर राज्य सभा के मनोनीत सदस्य रहे।
भारतीय फिल्म उद्योग के अभिनेता और उनके सुपुत्र
अमिताभ बच्चन जी ने भी उनकी रचनाओं को गुनगुनाया है, हम तक बखूबी पहुंचाया है तो क्यों न आज उन्हें और क़रीब से जानें ,
27 नवम्बर 1907 को प्रयाग में एक कायस्थ परिवार में जन्में हरिवंश राय बच्चन के पूर्वज मूलरूप से अमोढ़ा ,उत्तर प्रदेश के निवासी थे। आपके पिता प्रताप नारायण श्रीवास्तव और मां सरस्वती देवी बचपन में इन्हें प्यार से ‘बच्चन’ कह कर पुकारते थे और हम इसे उनका आशीर्वाद ही कह सकते हैं कि वो बड़े होकर इसी नाम से मशहूर हुए।
१९२६ में १९ वर्ष की उम्र में उनका विवाह श्यामा बच्चन से हुआ जो उस समय १४ वर्ष की थीं।
सन १९३६ में टीबी के कारण श्यामा की मृत्यु हो गई। पाँच साल बाद १९४१ में बच्चन ने पंजाबन तेजी सूरी से विवाह किया जो रंगमंच तथा गायन से जुड़ी हुई थीं ये वही वक्त था जब उन्होंने ‘नीड़ का निर्माण फिर’ जैसी कविताओं की रचना की।

प्रमुख कृतियों को हम याद करें तो हमारे ज़हेंन में फौरन दस्तक देती हैं कुछ कालजई कृतियां जैसे :-

तेरा हार, मधुकलश, निशा निमंत्रण, एकांत संगीत, आकुल अंतर, सतरंगिनी, हलाहल, बंगाल का काल, खादी के फूल, सूत की माला, मिलन यामिनी, प्रणय पत्रिका, धार के इधर-उधर, आरती और अंगारे बुद्ध और नाचघर, त्रिभंगिमा, चार खेमे, चौंसठ खूंटे दो चट्टानें, बहुत दिन बीते, कटती प्रतिमाओं की आवाज़, उभरते प्रतिमानों के रूप ,जाल समेटा और नई से नई-पुरानी से पुरानी।
काव्य संग्रह की बात करें तो आज भी हमारे दिलों के पास हैं :-
क्या भूलूँ क्या याद करूँ, नीड़ का निर्माण, फिर बसेरे से दूर, दशद्वार से सोपान तक और प्रवासी की डायरी।
18 जनवरी 2003 को वो इस फ़ानी दुनिया को अलविदा कह गए पर हमें दे गए जीवन के गूढ़ रहस्यों से पर्दा हटाती अमर रचनाएं :-

हरा भरा रहता मदिरालय, जग पर पड़ जाए पाला,
वहाँ मुहर्रम का तम छाए, यहाँ होलिका की ज्वाला,
स्वर्ग लोक से सीधी उतरी वसुधा पर, दुख क्या जाने,
पढ़े मर्सिया दुनिया सारी, ईद मनाती मधुशाला।।

एक बरस में, एक बार ही जगती होली की ज्वाला,
एक बार ही लगती बाज़ी, जलती दीपों की माला,
दुनियावालों, किन्तु, किसी दिन आ मदिरालय में देखो,
दिन को होली, रात दिवाली, रोज़ मनाती मधुशाला।।

नहीं जानता कौन, मनुज आया बनकर पीनेवाला,
कौन अपिरिचत उस साकी से, जिसने दूध पिला पाला,
जीवन पाकर मानव पीकर मस्त रहे, इस कारण ही,
जग में आकर सबसे पहले पाई उसने मधुशाला।।

यक़ीन मानिए इस मधुशाला में आकर यदि आपने जीवन रूपी मदिरा पान कर लिया तो अंतरात्मा तृप्त हो जाएगी और फिर किसी सांसारिक भ्रम में लिप्त नहीं होगी ।
यहां हम आपको ये भी बताते चलें कि मधुशाला लिखने के बाद उन्हें सबको ये सफाई देना पड़ा कि वो शराब नहीं पीते और मधुशाला जीवन दर्शन को उजागर करती है आप इसमें डूब के देखिए ,एक बार तो गांधी जी ने भी उनसे शराब की कैफियत के बारे में उनसे पूछ लिया था क्योंकि उन्हें भी पता चला था कि आजकल वो मधुशाला का बखान कर रहे हैं और तो और उनके मेज़बान भी खुसूसी तौर पर शराब का इंतजा़म करते थे।

खुद में इतना ज्ञान संजोने वाले, हरिवंश राय बच्चन पर भी कई किताबें लिखी गई हैं। इनमें उनपर हुए शोध, आलोचना एवं रचनावली शामिल हैं। बच्चन रचनावली जो 1983 में आई इसके नौ खण्ड हैं और दूसरी पुस्तक है ‘गुरुवर बच्चन से दूर’ जिनका संपादन अजितकुमार ने किया है, कुछ और भी प्रमुख हैं जैसे- बिशन टण्डन की ‘हरिवंशराय बच्चन’ ।

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