Harchhath Mata Ki Kahani, Harchhath Maharani Ki Katha | भारतीय संस्कृति में त्योहार और व्रत केवल रीति-रिवाज़ नहीं, बल्कि जीवन मूल्यों की शिक्षा देने वाले साधन भी हैं। Halashshti (Har Chhath) का त्योहार भी एक ऐसी ही पावन परंपरा है, जो कृषि प्रधान समाज में पशुधन के प्रति कृतज्ञता, ईमानदारी और प्रकृति संरक्षण का संदेश देता है। यह कथा न केवल धार्मिक आस्था को दर्शाती है, बल्कि सामाजिक सदाचार, स्वास्थ्य सजगता और बुजुर्गों के आदेश का पालन करने की प्रेरणा भी देती है।
Harchhath Maharani Ki Katha | हरछठ महारानी की कथा | Halashshti Ki Katha
एक गांव में एक यदुवंशी यानी यादव समाज का परिवार था रहता था। उस परिवार का व्यवसाय खेती किसानी और पशुपालन था जो उनकी पुश्तैनी पहचान और आजीविका का एक मात्र साधन था। परिवार के पुरुष जहां खेतों में काम करके अनाज उगाते वहीं घर की महिलाएं गाय-भैंस का दूध-दही और घी बेचकर परिवार चलाने में आर्थिक सहयोग करतीं। सावन के जाते ही भादों का महीना लगा तो घर की महिलाओं को आनेवाले तीज-त्योहार के खर्चे की चिंता सताने लगी।
क्योंकि पहले से ही बारिश के चलते दूध-दही की बिक्री होती ही नहीं थी । घर की महिलाओं ने विचार कर दूर गांव जाकर दूध-दही बेचने का प्लान बनाया और क्रमश: कभी सास तो कभी जेठानी और कभी सबसे छोटी बहू जो गर्भवती भी थी गांव में दूध-दही बेचने जाते और अपने पैसे इकट्ठे करते और परिवार को भी देती। धीरे-धीरे बहू की झुकी के दिन करीब आ गए तो उसकी सास और जेठानी ने मना कि कि अब तुम दूध-दही बेचने मत जाओ क्योंकि कभी भी बच्चा हो सकता है तो छोटी बहू ने बात मानी और घर पर रह गई।
एक दिन सास और जेठानी को दूध-दही बेचने से अच्छी आमदनी हुई तो यह देख छोटी बहू के मन में लालच आ गया कि पहले ही इसकी आमदनी अच्छी हो रही है और मेरी कम , जबकि कुछ दिन बाद बच्चा भी होगा तो ज्यादा पैसों की आवश्यकता होगी। ऐसा विचार कर उसने अपनी सास और जेठानी से कहा कि मैं भी जाऊंगी तो उन्होंने पहले की तरह उसकी हालत को देखकर मना किया। जबकि उस दिन हलषष्ठी का दिन भी था सास-जेठानी ने व्रत भी रखा था।
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छोटी बहू ने सोचा आज तो हर घर में दूध-दही खरीदा जाएगा ऐसा सोचते हुए छोटी बहू दूध-दही की मटकी सिर पर रखकर गांव जाने लगी। यह देखकर उसकी जेठानी और सास ने देखा तो मना किया और ज़िद करके चलती बनी। उस दिन हलषष्ठी के चलते सांस और जेठानी ने भी हरछठ महारानी की पूजा करने और अपने खान-पान के लिए भैंस का दूध-दही और घी रख लिया जिससे भैंस वाले दूध-दही और घी के मटके आधे-आधे ख़ाली हो गए यह जब छोटी बहू ने देखा तो चालाकी से गाय का दूध-दही और घी मिलाकर सारी मटकियां भरीं और बेचने निकले गई।
उसकी सास और जेठानी ने उसकी चालाकी समझ ली लेकिन वो छोटी बहू की ज़िद के आगे हार गईं। एक तरफ सांस और बड़ी बहू हरछठ महारानी की पूजा में व्यस्त हो गई तो दूसरी तरफ़ छोटी बहू हरछठ महारानी को पीछे छोड़ गाढ़ी आमदनी की लालच में अपने और अपने बच्चे की चिंता छोड़ गांव के पास पहुंची ही थी की उसके प्रसव पीड़ा होने लगी। ग्वालिन बहू ने सोचा अब क्या करें लगता है बच्चा पैदा होने को है और इतना सारा दूध दही घी सब ख़राब हो जाएगा और पैसे भी नहीं मिल पाएंगे। ग्वालिन बहू अपने मन में विचार कर ही रही थी कि प्रसव तेज हुआ और वहीं गांव के रास्ते में ग्वालिन ने एक सुंदर स्वस्थ पुत्र को जन्म दिया लेकिन इस पर भी ग्वालिन की लालच कम न हुई उसने बच्चे को छुरियां और जरिया के पेड़ के नीचे एक कपड़े में लपेटकर रखा और गांव जाकर दूध-दही और घी बेचने लगी।
जो हरछठ महारानी की व्रती महिलाएं थीं सब दूध-दही, घी ले लो की आवाज सुनकर दौड़ी आतीं और ग्वालिन बहू दूध-दही और घी हैं का है न,वो सबसे कहती कि हां-हां बिल्कुल भैंस का है, बल्कि पड़वा वाली भैंस का है, ऐसा सुनकर महिलाएं दौड़-दौड़ कर उसका दूध-दही और घी खरीदने लगीं। देखते ही देखते उसका पूरा दूध-दही और घी बिक गया और उन्हीं मटकियों में उसने,उस दिन की आमदनी के पैसे भरे और अपने पुत्र को उठाने लौट पड़ी।
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दूसरी तरफ ग्वालिन के जाते ही उसी रास्ते से किसान भी अपने खेत में हल की पूजा करने निकले और अंजाने में ग्वालिन बहू का नवजात शिशु हल की चपेट में आ गया और उसका पेट फट गया जिससे उसके प्राण निकल गए। यह देखकर किसान डर गए और उस शिशु का पेट जरिया के कांटे,छुलिया के पत्ते रखकर कांस से सिल दिया और उसी कपड़े में लपेटकर पहले की तरह जरिया की झाड़ी में छुपाकर वहां से चले गए। ग्वालिन बहू जब अपने पुत्र के पास पहुंची तो देखा कि उसका सुंदर-स्वस्थ बेटा मृत पड़ा है। वह, वहीं बैठकर विलाप करने लगी और अपनी चलाकी की कहानी खुद बताते हुए इसे हरछठ महारानी का क्रोध का परिणाम और बेईमानी का बुरा अंजाम बता-बता कर अपनी गोद में मृत पुत्र को लेकर दहाड़े मार-मार कर रोने लगी। उसका रोना सुनकर गांव के लोग वहां एकत्र होने लगे उन्हीं में से कुछ ने ग्वालिन बहू के घर जाकर पूरा किस्सा बहू की सास-जेठानी को सुनाया।
उस समय सास-बड़ी बहू दोनों हरछठ पूज कर उठी थी कि गांव वासियों की बात सुनकर पुनः हरछठ महारानी के चरणों में गिरकर पड़ी और छोटी बहू की बेईमानी को उसकी नादानी समझ कर क्षमा प्रार्थना करके वहां पहुंच गई जहां छोटी बहू अपने मृत पुत्र के साथ बैठी रो रही थी तभी वहां गांव की वो सारी महिलाएं भी लोगों की बात सुनकर पहुंच गई जिन्हें ग्वालिन बहू ने झूठ बोलकर गाय-भैंस का मिक्स दूध-दही और घी बेचा था।
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ग्वालिन बहू की दयनीय दशा, पश्चाताप और उसका सुंदर पुत्र देख सभी महिलाओं का दिल पिघल गया और सब हरछठ महारानी को मनाने लगी कि हे मां और इस नादान की चालाकी को क्षमा करें आप तो मां हैं ऐसा कष्ट दूर करें। सब महिलाओं का यह दया भाव देखकर छोटी बहू अपनी की ग़लती की सबसे और हरछठ महारानी से क्षमा मांगने लगी तभी सब महिलाओं की याचना पर हरछठ महारानी प्रगट हुई और ग्वालिन बहू को पुत्रवती होने का आशीर्वाद देकर कहा कि अब कभी ऐसी लालच में न पड़ना और हरछठ को केवल पड़वा वाली भैंस का ही दूध-दही और घी, बेचना, पूजना और सेवन करना और इतना कहकर हरछठ महारानी, तथास्तु कह कर अंतर्ध्यान हो गई।
उनके अंतर्ध्यान होते ही ग्वालिन बहू की गोद में कुछ हलचल सी हुई उसने अपने मृत पुत्र के ऊपर से कपड़ा हटाया तो देखा उसका पुत्र जीवित था यह देख सभी हरछठ महारानी की जय-जयकार करने लगे और सब उनकी महिमा का गुणगान करते हुए घर चले गए।